अनूप अभी सुबह के कुछ घरेलू रोजमर्रा के सामानों मसलन - हरी सब्ज़ियाँ, फल, पाँच वर्षीया बिटिया मिताली के लिए 'डेरी- मिल्क', सात साल पहले सात फेरे लगा कर लायी गई धर्मपत्नी आम्रपाली के लिए पसंदीदा डाभ-पानी, उसी के लिए कुछ पूजन-सामग्री आदि - की खरीदारी कर बाज़ार से आकर अपनी सेकंड-हैंड खरीदी हुई स्कूटी घर के आगे स्टैंड पर खड़ी कर ही रहे थे कि मिताली अंदर से अपनी मम्मी का पकड़ा हुआ पल्लू छोड़कर आई और अपने पापा की दोनों टाँगों को अपनी दोनों छोटी-छोटी बाँहों के घेरे में घेरने की कोशिश करते हुए ठुनक कर बोली - "पापा! आप बले (बड़े) गन्दे हैं।"
अनूप यानि मिताली के पापा - "वो क्यों भला !? बोलो तो जरा !!"
मिताली - "आप ना तो मुजे (मुझे) प्याल (प्यार) कलते (करते) हैं ... ना ही मम्मी को।"
अनूप - "अले-अले (अरे-अरे) ऐसा क्यों लगा आपको भला!?" फिर हँसते हुए आम्रपाली की ओर मुख़ातिब होते हुए - "अम्मू! सुना अपनी बिट्टू रानी का इल्ज़ाम!?"
आम्रपाली सब कुछ सुन ही रही थी। वह बीच में मुस्कुराते हुए टपक अपनी बेटी से - "पापा हमदोनों को प्यार नहीं करते ये कैसे पता चला तुमको"
मिताली - "पलोच (पड़ोस) वाले चीन्हा (सिन्हा) अंकल .... मोनी दीदी के पापा हैं ना ... वो अपनी काल (कार) के पीछे नंबल (नंबर)-प्लेट पल (पर) मोनी दीदी का नाम लिखवाया हुआ है औल (और) जानती हो मम्मी !! ... मैंने देखा है कि अंकल अपने पल्छ (पर्स) में आंटी और मोनी दी' (दीदी) दोनों का एक 'पिक' (तस्वीर) भी रखते हैं।"
फिर पापा की ओर मुँह करके - "आप तो ये सब कुच (कुछ) भी नहीं कलते (करते).... गन्दे पापा.... गंदू !"
अब तक घर के अंदर आकर मोढ़े पर बैठ कर अनूप थैले से बाज़ार से लाये गए सारे सामान निकाल रहे थे सामने फर्श पर। मिताली चौके में अनूप के लिए 'ग्रीन टी' बनाते हुए पापा-बेटी की बातें सुन कर मुस्कुरा रही थी।
मिताली - "औल (और) पता है मम्मी .... अंकल के मोबाइल में भी आंटी के साथ सोनी दी' वाली 'पिक' का ही 'डीपी' है। कल आंटी के मोबाइल से सोनी दी' अपनी मम्मी के फेसबुक पर पोस्ट किए अपने जन्मदिन की ढेल (ढेर) साली (सारी) फोटो दिखा रही थी और .... अंकल-आंटी के मैलेज (मैरिज) -एनिभछलि (एनिवर्सरी) के पोस्ट किए फोटो भी ... अब बोलो !! ... पापा गंदू हैं ना मम्मी!?"
अनूप और मिताली दोनों एक दूसरे की आँखों में आँखें डाले मुस्कुरा रहे थे।
"हाँ ... भई ... हम बले बाले (बड़े वाले) गन्दे पापा हैं।"...
अनूप यानि मिताली के पापा - "वो क्यों भला !? बोलो तो जरा !!"
मिताली - "आप ना तो मुजे (मुझे) प्याल (प्यार) कलते (करते) हैं ... ना ही मम्मी को।"
अनूप - "अले-अले (अरे-अरे) ऐसा क्यों लगा आपको भला!?" फिर हँसते हुए आम्रपाली की ओर मुख़ातिब होते हुए - "अम्मू! सुना अपनी बिट्टू रानी का इल्ज़ाम!?"
आम्रपाली सब कुछ सुन ही रही थी। वह बीच में मुस्कुराते हुए टपक अपनी बेटी से - "पापा हमदोनों को प्यार नहीं करते ये कैसे पता चला तुमको"
मिताली - "पलोच (पड़ोस) वाले चीन्हा (सिन्हा) अंकल .... मोनी दीदी के पापा हैं ना ... वो अपनी काल (कार) के पीछे नंबल (नंबर)-प्लेट पल (पर) मोनी दीदी का नाम लिखवाया हुआ है औल (और) जानती हो मम्मी !! ... मैंने देखा है कि अंकल अपने पल्छ (पर्स) में आंटी और मोनी दी' (दीदी) दोनों का एक 'पिक' (तस्वीर) भी रखते हैं।"
फिर पापा की ओर मुँह करके - "आप तो ये सब कुच (कुछ) भी नहीं कलते (करते).... गन्दे पापा.... गंदू !"
अब तक घर के अंदर आकर मोढ़े पर बैठ कर अनूप थैले से बाज़ार से लाये गए सारे सामान निकाल रहे थे सामने फर्श पर। मिताली चौके में अनूप के लिए 'ग्रीन टी' बनाते हुए पापा-बेटी की बातें सुन कर मुस्कुरा रही थी।
मिताली - "औल (और) पता है मम्मी .... अंकल के मोबाइल में भी आंटी के साथ सोनी दी' वाली 'पिक' का ही 'डीपी' है। कल आंटी के मोबाइल से सोनी दी' अपनी मम्मी के फेसबुक पर पोस्ट किए अपने जन्मदिन की ढेल (ढेर) साली (सारी) फोटो दिखा रही थी और .... अंकल-आंटी के मैलेज (मैरिज) -एनिभछलि (एनिवर्सरी) के पोस्ट किए फोटो भी ... अब बोलो !! ... पापा गंदू हैं ना मम्मी!?"
अनूप और मिताली दोनों एक दूसरे की आँखों में आँखें डाले मुस्कुरा रहे थे।
"हाँ ... भई ... हम बले बाले (बड़े वाले) गन्दे पापा हैं।"...
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-08-2019) को "देशप्रेम का दीप जलेगा, एक समान विधान से" (चर्चा अंक- 3431) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
शुक्रिया आपको साझा करने के लिए ...!
Deleteआत्म मुग्ध करता वार्तालाप ।
ReplyDeleteनन्ही की सोच मासूम सी ।
शुक्रिया आपका !
Deleteआधुनिक जीवन की एक मर्मान्तक कौंच , जहाँ संघर्ष और स्नेह को दरकिनार कर दिखावे को प्यार और दुलार की संज्ञा दी जाने लगी है | दिखावा संस्कृति की पोल खोलती रोचक रचना सुबोध जी | सादर
ReplyDeleteधन्यवाद आपका .. रचना के भाव को उजागर करने के लिए ...
ReplyDeletevery nice thanks for shairng
ReplyDeleteThank you for positive reaction !!!
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