(१)*
ठिकाना पाया इस दरवेश ने
तुम्हारे ख़्यालों के परिवेश में ...
(२)*
माना ..
घने कोहरे हैं
फासले के बहुत
दरमियां हमारे-तुम्हारे ...
है पर ..
रोशनी हर पल
'लैंप-पोस्ट' की
एहसास के तुम्हारे ...
(३)*
जब .. जहाँ हो जाऊँ
कभी भी मौन सनम!
हो जाना मत
चुप तुम भी ...
कर देना आरम्भ
उस पल ही
कुछ तुम ही बोलना ...
बस यूँ ही
पल भर भी
थमे नहीं
ताउम्र कभी भी ...
हमारे मन में प्यार की
सुरीली अंत्याक्षरी का
मधुर सुरीला सिलसिला ...
(४)*
नीले ..
खुले ..
आसमान में
दिख जाते हैं
जब कभी
उड़ते ..
रंग-बिरंगे ..
दो पतंग
इठलाते ..
गले मिलते ..
अक़्सर ...
अनायास
आते हैं
तब
याद
कुछ सगे ..
कुछ अपने ..
मिले थे
जो गले
कभी
मेरे
बनकर ...
(५)*
आस के आकाश में
संग कच्चे-धागे मन के
पतंग तुम्हारे स्वप्न के
उड़ते अविराम बारहा ...
साथ पल-पल तुम्हारे
अनवरत लिपटा रहूँ मैं
तेरे मन के कच्चे-धागे से
बना निगहबान मांझा ...
ठिकाना पाया इस दरवेश ने
तुम्हारे ख़्यालों के परिवेश में ...
(२)*
माना ..
घने कोहरे हैं
फासले के बहुत
दरमियां हमारे-तुम्हारे ...
है पर ..
रोशनी हर पल
'लैंप-पोस्ट' की
एहसास के तुम्हारे ...
(३)*
जब .. जहाँ हो जाऊँ
कभी भी मौन सनम!
हो जाना मत
चुप तुम भी ...
कर देना आरम्भ
उस पल ही
कुछ तुम ही बोलना ...
बस यूँ ही
पल भर भी
थमे नहीं
ताउम्र कभी भी ...
हमारे मन में प्यार की
सुरीली अंत्याक्षरी का
मधुर सुरीला सिलसिला ...
(४)*
नीले ..
खुले ..
आसमान में
दिख जाते हैं
जब कभी
उड़ते ..
रंग-बिरंगे ..
दो पतंग
इठलाते ..
गले मिलते ..
अक़्सर ...
अनायास
आते हैं
तब
याद
कुछ सगे ..
कुछ अपने ..
मिले थे
जो गले
कभी
मेरे
बनकर ...
(५)*
आस के आकाश में
संग कच्चे-धागे मन के
पतंग तुम्हारे स्वप्न के
उड़ते अविराम बारहा ...
साथ पल-पल तुम्हारे
अनवरत लिपटा रहूँ मैं
तेरे मन के कच्चे-धागे से
बना निगहबान मांझा ...
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 13 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteनमन आपको और हर बार की तरह पुनः आभार आपका रचना/विचार को मंच पर साझा करने के लिए ...
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (14-01-2020) को "सरसेंगे फिर खेत" (चर्चा अंक - 3580) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
-- लोहिड़ी तथा उत्तरायणी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर नमन आपको और आभार आपका मेरी रचना/विचार का मान अपने मंच पर साझा कर के बढ़ाने के लिए ...
ReplyDeleteभारतीय त्योहारों की परम्पराओं के निर्वहन से परे आपको सपरिवार ताउम्र हमारी शुभकामनाएं ... क़ुदरत हर पल आपके और आपके चाहने और आपके द्वारा चाहे जाने वाले लोगों के साथ सकारात्मक रहे ...
सुंदर
ReplyDeleteठिकाना पाया इस दरवेश ने
ReplyDeleteतुम्हारे ख़्यालों के परिवेश में ..
वह बहुत ही शानदार अनुभूतियों का शब्दांकन सुबोध जी | जो सरस हैं सरल हैं और अनुराग के चरम को छूती हुई आत्मा को स्पर्श करती हैं | सूफ़ियाना लहज़ा बेमिसाल है | हार्दिक शुभकामनायें | शब्दों का ये सफ़र जारी रहे | लोहड़ी और मकर संक्रांति पर्व पर सपरिवार आपकी कुशलता की कामना करती हूँ | सादर ----
बहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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