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चन्द पंक्तियाँ (६)
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Sunday, July 21, 2019
चन्द पंक्तियाँ - (६)- बस यूँ ही ....
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(१)# तुम साँकल बन दरवाज़े पर स्पंदनहीन लटकती रहना मैं बन झोंका पुरवाईया का स्पंदित करने आऊँगा... (२)# चलो .... माना है तुम्हा...
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