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Wednesday, August 23, 2023

वांछा की विसर्पी लताएँ ...

जीवन-डगर के 

एक अर्थहीन 

मोड़ पर किसी,

मिल जाना 

अंजाना 

किसी का कभी,

बस यूँ ही ...

चंद पल,

चंद बातें,

चंद मंद-मंद 

मुस्कुराहटें,

चंद स्पंदन की 

अनसुनी आहटें,

पनपा जाती हैं

क्षणांश में

हौले से

एक कोमल 

अर्थपूर्ण अंकुरण

अंजाना अपनापन का

मन में,

पनपने के लिए,

चंद सम्भावनाएँ लिए

भावनाओं की 

आरोही लताएँ,

वांछा की 

विसर्पी लताएँ,

भरसक .. 

बरबस .. 

तत्पर ...

लिपट जाने के लिए

अपने सुकुमार

लता-तंतु के सहारे

अथक ..

अनायास ..

अनवरत ...

सोचों के ठूँठ पर .. बस यूँ ही ...