आज भले ही
हों हम दोनों
एक-दूजे से
पृथक-पृथक,
वृहद् जग में ..
हो हमारा
भले ही तन पृथक;
तन वृद्ध और
थका हुआ भी ..
ना हों अब शेष वो
मिलापों की हरियाली,
ना ही ..
कामातिरेक के धूप,
ना बचे हों शेष
गलबहियों के पुष्प .. शायद ...
पर .. है आज भी
मन अथक
और मन-मृदा में
आज भी ..
हैं जड़ें जमीं
यादों की तुम्हारी,
हों जैसे
सुगंध लुटाती,
महमहाती ..
शेष बची
जड़ें ख़स की ..
क्योंकि .. मेरे लिए तो
ख़ास थीं तुम कल भी,
हो आज भी और ..
रहोगी ताउम्र कल भी .. बस यूँ ही ...
चिरयौवन प्रेम ,भावपूर्ण,मन छूती सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ०९ अप्रैल २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी ! .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका ...
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteजी ! .. नमन संग आभार आपका ...
Deleteसुन्दर रचना| हिन्दुओं के नववर्ष की शुभकामनाएं |
ReplyDeleteजी ! .. नमन संग आभार आपका .. हिन्दुओं के नववर्ष , जो आज एक दिन पुरातन हो गया है , की तो नहीं, वरन् समस्त स्वस्थ जीवन की आपको और आपके मन से अपनों को प्रकृति के मार्फ़त असीम व अपार शुभकामनाएँ .. बस यूँ ही ...🙏
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteजी ! .. नमन संग आभार आपका ...
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteजी ! .. नमन संग आभार आपका ...
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