Thursday, April 18, 2024

पुंश्चली .. (३९) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)


प्रत्येक वृहष्पतिवार को यहाँ साझा होने वाली साप्ताहिक धारावाहिक बतकही- "पुंश्चली .. (१)" से "पुंश्चली .. (३८)" तक के बाद पुनः प्रस्तुत है, आपके समक्ष "पुंश्चली .. (३९) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" .. बस यूँ ही ...  :-

गतांक का आख़िरी अनुच्छेद :-

जज साहब - " नहीं माखन .. तुम्हारा मंगड़ा तो शारीरिक रूप से भले ही हिजड़ा हो सकता है, पर .. इस 'केस' में तो .. मानसिक रूप से सबसे बड़ा हिजड़ा तो .. सुगिया की लाश का 'पोस्टमार्टम रिपोर्ट' तैयार करने वाली 'डॉक्टरों' की 'टीम', इस 'केस' की तहकीकात करने वाली ख़ाकी वर्दीधारियों की 'टीम', मंगड़ा के विरुद्ध झूठी  गवाही देने वाले सारे गवाह, उसके विरुद्ध झूठे सबूत इकट्ठा करने वाले लोग, 'केस' लड़ने वाले दोनों पक्षों के वक़ील और वास्तव में उस नाबालिग सुगिया के साथ बलात्कार करने वाला बलात्कारी व उसका हत्यारा भी है .. इन सारे हिजड़ों से अपने समाज-देश को हम सभी को मिलकर मुक्त कराने की आवश्यकता है .. शायद ..."

 गतांक के आगे :-

जज साहब ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए ...

 जज साहब - " जिस प्रकार अप्रत्याशित रूप से मंगड़ा के नंगेपन ने समाज को नंगा करते हुए आज के इस 'केस' को एक नयी मोड़ की ओर क़दमताल करने के लिए मज़बूर कर दिया है .. जिस प्रकार नंगेपन की रोशनी में वर्षों से माखन द्वारा अपने बेटे मंगड़ा के जन्मजात हिजड़ा होने वाली बात या यूँ कहें कि उस भेद को दफ़नाने के प्रयास के बाद भी आज .. अभी .. मजबूरीवश ही सही पर .. उसी के द्वारा उजागर होना पड़ा है, तो .. अब न्यायपालिका को भी इस 'केस' को पुनः सत्यता के आलोक में सही से टटोलते हुए अवलोकन करने के लिए मजबूर होना होगा और .. इसके लिए कुछ और अतिरिक्त समय की भी आवश्यकता होगी .. "

जज साहब की इन बातों के मध्य यहाँ उपस्थित सभी आम और ख़ास लोगों के बीच उत्सुकतावश एक खुसुर-फुसुर व्याप्त हो गयी है। तभी जज साहब की रौबदार आवाज़ सभी के कानों के पर्दे से टकरा रही है। 

जज साहब - " इस 'केस' की और भी गहन जाँच की आवश्यकता है। इस की आज की सुनवाई को अगली सुनवाई तक के लिए मुल्तवी की जाती है। "

इसके बाद सभी की भीड़ छंटनी शुरू हो गयी है। पर मंगड़ा जड़वत खड़ा है। माखन को भी जज साहब की बातें .. कुछ-कुछ पल्ले पड़ी है और बहुत कुछ नहीं भी। अब हाथों में हथकड़ी लगाकर मंगड़ा को सिपाहियों की एक टोली पुनः कारागार के लिए ले जा रही है। मन्टू और रेशमा व उस की टोली भी माखन पासवान के साथ समानुभूति महसूस करते हुए मंगड़ा के निर्दोष होते हुए भी इतने दिनों तक 'जेल' में बन्द रह कर मानसिक और शारीरिक कष्ट झेलने और साथ में माखन की आर्थिक चोट से कुछ दुःखी हैं और .. उसके मृत्युदंड के मुँह से निकल कर कुशलता से वापस लौट आने की एक आशा से कुछ ख़ुशी भी महसूस कर पा रही है।

किसी भी हृदय विदारक घटना वाले दृश्य समाचारों के प्रकाशन-प्रसारण को देखने-सुनने का या फिर किसी के 'रील' बनाने का साधन मात्र हो सकता है, परन्तु जिस मजबूर और लाचार के साथ वह घटना विशेष घटित होती है, उसके लिए तो दुर्घटना ही है। अपने देश के कई राज्यों में किसी सरकार विशेष के संरक्षण में माफ़ियाओं की तूती बोलती नहीं, बल्कि हुँकारती रही थी या कहीं-कहीं आज भी हुँकार रही हैं .. शायद ...

रेशमा - " चच्चा ! .. कबीर ने कितना ही सच कहा है ना ! कि .. जाको राखे साइयाँ, मार सके न कोय ... "

मन्टू - " ऐसा भी नहीं है रेशमा .. अगर ऐसी ही बात है तो .. सुगिया के बलात्कार और उसकी हत्या के वक्त ये तथाकथित साइयाँ कौन से तहखाने में अँधे-गूँगे और बहरे भी बने हुए पड़े थे, जो उन्हें नाबालिग सुगिया की चीखें नहीं सुनाई दी .. उसके अंग-प्रत्यंग के बहते लहू नहीं दिखायी दिए .. उन्हें क्या केवल बलि और क़ुर्बानी के ही ख़ून नज़र आते हैं ? "

रेशमा - " ख़ैर ! .. ये मंगड़ा का बच कर कारागार से बाहर आना भी तो तभी सम्भव है, जब जल्द से जल्द यथासमय सुनवाई हो जाए .. "

मन्टू - " अगर एक-सवा महीने के भीतर फ़ैसला हो पाया तो ठीक, वर्ना .. मई माह के अंत से लेकर जुलाई महीने के आरम्भ तक में सात सप्ताहों की इनकी गर्मी की छुट्टियाँ हर वर्ष होती हैं और इस वर्ष भी हो जायेगी .. "

रेशमा - " ये भी तो एक तरह की मुफ्तख़ोरी ही हुई ना ! .."

मन्टू - " बेशक़ .. आज अंग्रेजों के भारत से चले जाने के पश्चात भी अंग्रेजों द्वारा उस समय उनकी अपनी सुविधा और सहजता के लिए जो लम्बे ग्रीष्मावकाश के क़ायदे बनाए गए थे, वो आज कई दशकों के बाद भी अनुचित होते हुए भी उचित ठहरा कर लागू किया हुआ है .."

रेशमा - " वो भी तब, जबकि .. कई मामले आज भी वर्षों से लम्बित पड़े हैं अपने देश में .. "

सुषमा - " तभी तो सन्नी पा जी फ़िल्म में 'डॉयलॉग' बोलते हैं .. तारीख़ पर तारीख़ .. तारीख़ पर तारीख़ .. है कि नहीं ? ..."

रेशमा - " फिर ठिठोली सूझी तुमको ? .. आयँ ! .. "

सुषमा - " नहीं .. वो तो ऐसे ही .. मुँह से निकल गया .. 'सॉरी' दी' (दीदी) .. "

मन्टू - " और पता है .. संविधान के अनुसार सरकार को मिलने वाले सभी शुल्कों और करों जैसे राजस्वों या फिर ..  ऋणों की वापस से वसूली के द्वारा प्राप्त सारे के सारे धन संचित निधि में जमा किये जाते हैं .."

रेशमा - " हाँ .. ये सब .. थोड़ा-थोड़ा तो मालूम है .. मयंक और शशांक भईया बतलाए थे एक बार .."

मन्टू - " हम तुमको ये सब बतलाने के लिए नहीं बोल रहे .. बल्कि .. ये बतला रहे कि .. पूरे वर्ष भर में इनकी इतनी लम्बी-लम्बी छुट्टियों के बाद भी इन्हीं संचित निधि से इनके वेतनों का भुगतान किया जाता है .. "

रेशमा - " अच्छा ! .. मतलब सुबह से शाम तक हम जैसे आम लोग अपने इस्तेमाल किए गए साबुन-तेल की क़ीमत के साथ-साथ जो भी 'टैक्स' की भुगतान करते हैं .. वो भी दिन-रात ख़ून-पसीना एक कर के कमाए गए पैसों से .. उन्हीं से इनको वेतन मिलते हैं ? .. "

मन्टू - " हाँ .. ऐसा ही है .. और उस पर तुर्रा ये है कि .. पूरे साल ये लोग लम्बी-लम्बी छुट्टियों में ऐश करते हैं .. सात सप्ताह मतलब पौने दो माह की ग्रीष्मकालीन छुट्टी के अलावा ये लोग दो सप्ताह के शीतकालीन अवकाश को भी भोगते हैं .. जिन पर तीन सौ सत्तर और तीन तलाक़ की तरह ही पाबंदी लगनी ही चाहिए .. नहीं क्या ? .."

【आज बस .. इतना ही .. अब शेष बतकहियाँ .. आगामी वृहष्पतिवार को ..  "पुंश्चली .. (४०) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" में ... 】


2 comments:

  1. पुंश्चली .. (४2०) तक इंतज़ार करेंगे | लिखते रहिये |

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    1. जी ! .. नमन संग आभार आपका .. पर हम तब तक लिखने के लिए इस पावन धरती पर सशरीर उपलब्ध ना रहें .. शायद ...
      फिर भी कोई ना कोई .. किसी ना किसी शीर्षक के साथ लिखेगा अवश्य .. पुंश्चली .. भाग-४२० ... 😀😀😀

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