बोगनवेलिया की
शाखाओं की मानिंद
कतरी गईं हैं
हर बार .. बारम्बार ..
हमारी उम्मीदें .. आशाएं ..
संवेदनाएं .. ना जाने
कई-कई बार
पर हम भी ठहरे
ज़िद्दी इतने कि ..
हर बार .. बारम्बार
तुम्हारी यादों के बसंत
आते ही फिर से
पनपा ही लेते हैं
उम्मीदों की शाखाएं
फैला ही लेते हैं
अपनी बाँहें तुम्हारे लिए
ठीक बोगनवेलिया की
शाखाओं की मानिंद
माना कि ...
नहीं हैं पास हमारे
मनलुभावन दौलत .. रुतबे
या ओहदे के सुगन्ध प्यारे
पर मनमोहक .. मनभावन ..
प्यार का रंग तो है
जो तपती जेठ की
दुपहरी में भी
खिली-खिली रंगीन
बोगनवेलिया के फूलों की
पंखुड़ियों-सा दमकता है ...
कभी किया था जो
तुमसे प्यार और
हुआ था तुम्हारा मन से
हो ही नहीं पाते आज भी
किसी और के
ना मालों में गूंथा जाता हूँ
ना सजता हूँ
पूजा की थालियों में
ठीक बोगनवेलिया के
फूलों की तरह ... उपेक्षित-सा ...
और बोगनवेलिया की
शाखाओं की तरह
सिर को झुकाए
करता हूँ अनवरत
बस तुम्हारा इंतज़ार ...
केवल और केवल तुम्हारा इंतज़ार ...
शाखाओं की मानिंद
कतरी गईं हैं
हर बार .. बारम्बार ..
हमारी उम्मीदें .. आशाएं ..
संवेदनाएं .. ना जाने
कई-कई बार
पर हम भी ठहरे
ज़िद्दी इतने कि ..
हर बार .. बारम्बार
तुम्हारी यादों के बसंत
आते ही फिर से
पनपा ही लेते हैं
उम्मीदों की शाखाएं
फैला ही लेते हैं
अपनी बाँहें तुम्हारे लिए
ठीक बोगनवेलिया की
शाखाओं की मानिंद
माना कि ...
नहीं हैं पास हमारे
मनलुभावन दौलत .. रुतबे
या ओहदे के सुगन्ध प्यारे
पर मनमोहक .. मनभावन ..
प्यार का रंग तो है
जो तपती जेठ की
दुपहरी में भी
खिली-खिली रंगीन
बोगनवेलिया के फूलों की
पंखुड़ियों-सा दमकता है ...
कभी किया था जो
तुमसे प्यार और
हुआ था तुम्हारा मन से
हो ही नहीं पाते आज भी
किसी और के
ना मालों में गूंथा जाता हूँ
ना सजता हूँ
पूजा की थालियों में
ठीक बोगनवेलिया के
फूलों की तरह ... उपेक्षित-सा ...
और बोगनवेलिया की
शाखाओं की तरह
सिर को झुकाए
करता हूँ अनवरत
बस तुम्हारा इंतज़ार ...
केवल और केवल तुम्हारा इंतज़ार ...
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हार्दिक आभार आपका ....
Deleteसच्चे प्रेम की अभिव्यक्ति ,प्यारी रचना ,सादर
ReplyDeleteजी ! आभार आपका रचना-मर्म को स्पर्श करने हेतु ...
Delete