एक किसी दिन
आधी रात को
एक अजनबी शहर से
अपने शहर और फिर
शहर से घर तक की
दूरी तय करते हुए
सारे रास्ते गोलार्द्ध चाँद
आकाश के गोद से
नन्हे बच्चे-सा उचकता
मुलुर-मुलुर ताकता
एक सवाल मानो पूछता रहा
अनवरत .... कि ....
मेरे रौशन पक्ष केवल देखकर
एक वहम क्यों पाल लेते हो भला
कभी ईद का बहाना तो कभी
करवा चौथ मान लेते हो क्यों भला
मैं तो सदियों से जैसा था
रोज वही रहता हूँ
उजाले के साथ अँधेरे हिस्से को भी
मेरे किस्से से जोड़ो तो जरा
रोज ही मुकम्मल रहता हूँ मैं
मैं तो वही रहता हूँ ...
तुम ही वहम पाल लेते हो ...
आधी रात को
एक अजनबी शहर से
अपने शहर और फिर
शहर से घर तक की
दूरी तय करते हुए
सारे रास्ते गोलार्द्ध चाँद
आकाश के गोद से
नन्हे बच्चे-सा उचकता
मुलुर-मुलुर ताकता
एक सवाल मानो पूछता रहा
अनवरत .... कि ....
मेरे रौशन पक्ष केवल देखकर
एक वहम क्यों पाल लेते हो भला
कभी ईद का बहाना तो कभी
करवा चौथ मान लेते हो क्यों भला
मैं तो सदियों से जैसा था
रोज वही रहता हूँ
उजाले के साथ अँधेरे हिस्से को भी
मेरे किस्से से जोड़ो तो जरा
रोज ही मुकम्मल रहता हूँ मैं
मैं तो वही रहता हूँ ...
तुम ही वहम पाल लेते हो ...
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना गुरुवार १८ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
साधारण सी रचना को एक स्तरीय ब्लॉग-पटल "पांच लिंकों का आनंद" पर स्थान देने के लिए मन से धन्यवाद आपका ...
Deleteनयी सोच नयी दृष्टि ! बहुत कुछ चिंतन के लिए सौंपती एक सार्थक सुन्दर रचना !
ReplyDeleteरचना की सराहना के लिए शुक्रिया आपका !!!
Deleteचाँद तो चाँद ही है/था
ReplyDeleteजी!
Deleteबेहतरीन सृजन सर
ReplyDeleteसादर
रचना के लिए विशेषण का प्रयोग करने के लिए शुक्रिया आपका !!!
Deleteउजाले के साथ अँधेरे हिस्से को भी
ReplyDeleteमेरे किस्से से जोड़ो तो जरा
बहुत सुन्दर ..सटीक...
वाह!!!
शुक्रिया आपका !
Deleteइस वहम के साथ ही तो अनेक किस्से गढ़ जाए हैं मानव मन में ...
ReplyDeleteये न हो तो आधी रचनाएं व्यर्थ हो जायेंगी ...
अच्छी रचना है ...
पर वहम और यथार्थ को हमेशा रूबरू करते रहना भी हम रचनाकर्मियों का ही दायित्व है ना शायद !
Deleteनयी उर्जा भरती अच्छी सोच सुन्दर..सटीक...
ReplyDeleteधन्यवाद आपका !
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति .....
ReplyDeleteसराहना के लिए शुक्रिया आपका !
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