साहिब !
ये तो इन्सानी फ़ितरत है
कि जब उसकी जरूरत है
तो होठों से लगाता है
नहीं तो ... ठोकरों में सजाता है
ये देखिए ना हथेलियों के दायरे में मेरे
बोतल बदरंग-सा
ये रहता है जब-जब भरा-भरा
रंगीन मिठास भरा शीतल पेय से
तब नर्म-नाजुक उँगलियों के
आगोश में भरकर अपने होठों से
लगाया करते हैं सभी
होते हैं तृप्त इनके तन और मन भी
ख़त्म होते ही मीठी रंगीन तरल
जमीं पर फेंका जाता है बोतल
और गलियों-सड़कों पर लावारिस-सा
लुढ़कता रहता है बस्ती -शहर के
या पाता है चैन किसी नगर-निगम के
कूड़ेदान के बाँहों में। हाँ, साहिब !
लोग कहते हैं
मैं पगली हूँ
इस बोतल का दर्द ...
मैं तो समझती हूँ ...
पर ... साहिब ! ... आप !???
ये तो इन्सानी फ़ितरत है
कि जब उसकी जरूरत है
तो होठों से लगाता है
नहीं तो ... ठोकरों में सजाता है
ये देखिए ना हथेलियों के दायरे में मेरे
बोतल बदरंग-सा
ये रहता है जब-जब भरा-भरा
रंगीन मिठास भरा शीतल पेय से
तब नर्म-नाजुक उँगलियों के
आगोश में भरकर अपने होठों से
लगाया करते हैं सभी
होते हैं तृप्त इनके तन और मन भी
ख़त्म होते ही मीठी रंगीन तरल
जमीं पर फेंका जाता है बोतल
और गलियों-सड़कों पर लावारिस-सा
लुढ़कता रहता है बस्ती -शहर के
या पाता है चैन किसी नगर-निगम के
कूड़ेदान के बाँहों में। हाँ, साहिब !
लोग कहते हैं
मैं पगली हूँ
इस बोतल का दर्द ...
मैं तो समझती हूँ ...
पर ... साहिब ! ... आप !???