'बैनीआहपीनाला' को
स्वयं में समेटे
क्षितिज के कैनवास पर
प्यारा-सा इन्द्रधनुष ...
जिस पर टिकी हैं
जमाने भर की निग़ाहें
रंगबिरंगी जो है !!!... है ना !?
उसे पाने को आग़ोश में
फैली तुम्हारी बाँहें
एक भूल ....
और नहीं तो क्या है !?...
खेलने वाला सारा बचपन
कचकड़े की गुड़िया से
मचलता है अक़्सर
चाभी वाले या फिर
बैटरी वाले खिलौने की
कई अधूरी चाह लिए और ...
ना जाने कब लहसुन-अदरख़ की
गंध से गंधाती हथेलियों वाली
मटमैली साड़ी में लिपटी
गुड़िया से खेलने लगता है
विज्ञान के धरातल पर तो
ये इन्द्रधनुष क्या है बला !?
बस चंद बूँदें ही तो है
तैरती हुई हवा में
जो चमक उठती हैं
सूरज की आड़ी-तिरछी किरणों से
इन्द्रधनुष और मृगतृष्णा
हैं प्रतिबिम्ब एक-दुसरे के
प्यारे, लुभावने .. सबके लिए
मूढ़ है बस वो जो है ....
अपनाने की चाह लिए ....
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ३१ मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
पांच लिंकों का आनंद के 1414वें अंक में मेरी व्यथा रूपी रचना को स्थान प्रदान करने के लिए मन से धन्यवाद आपका ...
Deleteविज्ञान के धरातल पर तो
ReplyDeleteये इन्द्रधनुष क्या है बला !?
बस चंद बूँदें ही तो है
तैरती हुई हवा में
जो चमक उठती हैं
सूरज की आड़ी-तिरछी किरणों से
इन्द्रधनुष और मृगतृष्णा
हैं प्रतिबिम्ब एक-दुसरे के
प्यारे, लुभावने .. सबके लिए
मूढ़ है बस वो जो है ....
अपनाने की चाह लिए ....लाजबाब अभिव्यक्ति 👌
अभिव्यक्ति की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteरचना के लिए आपका दिया विशेषण प्रोत्साहन देता है
Deleteइन्द्रधनुष और मृगतृष्णा
ReplyDeleteहैं प्रतिबिम्ब एक-दुसरे के
प्यारे, लुभावने .. सबके लिए
मूढ़ है बस वो जो है ....
अपनाने की चाह लिए ..
बहुत ही सुंदर रचना ....
रचना की तारीफ़ के लिए शुक्रिया ...
Deleteइंद्र धनुष और जीवन की मृगतृष्णा।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति।
हार्दिक धन्यवाद आपका सराहना के लिए ...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर आदरणीय सुबोध जी | इन्द्रधनुष और मृगतृष्णा एक जैसे ही होते हैं | इसलिए कि इन्द्रधनुष अप्राप्य है | मन मुग्ध करेगा पर हाथ नहीं आता | हर वो चीज जो लालायित करती है अपर हाथ नहीं आती मृगतृष्णा है | जो अप्राप्य से अनुराग रखेगा वो मूढ़ ही तो है | सार्थकता से भरपूर भावपूर्ण रचना | हार्दिक शुभकामनायें|
ReplyDeleteबिल्कुल सही पकड़ी हैं रेणु जी।
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