(१) रिवायतें तगड़ी ...
कहीं मुंडे हुए सिर, कहीं जटाएँ, कहीं टिक्की,
कहीं टोपी, कहीं मुरेठे-साफे, तो कहीं पगड़ी।
अफ़सोस, इंसानों को इंसानों से ही बाँटने की
इंसानों ने ही हैं बनायी नायाब रिवायतें तगड़ी।
(२) विदेशी पट्टे ...
देखा हाथों में हमने अक़्सर स्वदेशी की बातें करने वालों के,
विदेशी नस्ली किसी कुत्ते के गले में लिपटे हुए विदेशी पट्टे।
देखा बाज़ारों में हमने अक़्सर "बाल श्रम अधिनियम" वाले,
पोस्टर चिपकाते दस-ग्यारह साल के फटेहाल-से छोटे बच्चे।
(३) चंद चिप्पियों की ...
रिश्ते की अपनी निकल ही जाती
हवा, नुकीली कीलों से चुप्पियों की,
पर मात देने में इसे, करामात रही
तुम्हारी यादों की चंद चिप्पियों की।
(४) सीने के वास्ते ...
आहों के कपास थामे,
सोचों की तकली से,
काते हैं हमने,
आँसूओं के धागे .. बस यूँ ही ...
टुकड़ों को सारे,
सीने के दर्द के,
सीने के वास्ते,
अक़्सर हमने .. बस यूँ ही ...
(५) एक अदद इंसान ...
मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारे या गिरजा के सामने,
कतारों में हो तलाशते तुम पैगम्बर या भगवान .. बस यूँ ही ...
गाँव-शहर, चौक-मुहल्ले, बाज़ार, हरेक ठिकाने,
ताउम्र तलाश रहे हम तो बस एक अदद इंसान .. बस यूँ ही ...
वाह!क्या बात है ,बहुत खूब ।
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 07 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
जी ! नमन संग आभार आपका .. अपनी आज की नायाब प्रस्तुति में मेरी बतकही को स्थान देने के लिए ...
Deleteआहों के कपास थामे,
ReplyDeleteसोचों की तकली से,
काते हैं हमने,
आँसूओं के धागे .. बस यूँ ही ...
व्वाहहहह
सादर
जी ! नमन संग आभार आपका .. अतिरिक्त आभार आपके "व्वाह्ह्ह्ह" के लिए ...
Deleteये सारी चिप्पियाँ बहुत मारक हैं ।बस यूँ ही नहीं हैं ये ।
ReplyDeleteबेहतरीन
जी ! नमन संग आभार आपका .. आपकी ज़र्रानवाज़ी के लिए ...
DeleteBahut sundar!
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
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