गर्भ में नौ माह तक कहाँ रखा
झेला भी तो नहीं प्रसव-पीड़ा
नसीब नहीं था दूध भी पिलाना
ना रोज-रोज साथ खेलना
बेटा ! प्यार कर ही पाया कहाँ
मैं तुम्हारा एक पापा जो ठहरा...
ताउम्र 'सेल्स' की घुमन्तु नौकरी में
शहर-शहर भटकता रहा
फ़ुर्सत मिली कब इतनी
तुम्हें जरा भी समय दे पाता
बेटा ! प्यार कर ही पाया कहाँ
मैं तुम्हारा एक पापा जो ठहरा...
खुद पहन 'एच.एम्.टी.'की घड़ियाँ
तुम्हे 'टाईटन रागा' पहनाया
फुटपाथी अंगरखे पहन कर
तुम्हे अक़्सर 'जॉकी' ही दिलवाया
बेटा ! प्यार कर ही पाया कहाँ
मैं तुम्हारा एक पापा जो ठहरा...
उम्र गुजरी 'स्लीपर' में सफ़र कर
तुम्हे अक़्सर 'ए. सी.' में ही भेजा
घिसा अपना तो 'खादिम, श्रीलेदर्स' में
तुम्हें चाहा 'हश पप्पीज' खरीदवाना
बेटा ! प्यार कर ही पाया कहाँ
मैं तुम्हारा एक पापा जो ठहरा...
'नर्सरी' की नौबत ही ना आई
बिस्तर के पास तुम्हारे छुटपन में
जो तीन बड़े-बड़े वर्णमाला, गिनती
और 'अल्फाबेट्स' के 'कैलेंडर' था लटकाया
बेटा ! प्यार कर ही पाया कहाँ
मैं तुम्हारा एक पापा जो ठहरा...
'एल के जी' से तुम्हें नौकरी मिलने तक
कभी प्रशंसा के दो शब्द ना बोला
पर परिचितों, सगे-सम्बन्धियों को
तुम्हारी उपलब्धियाँ बारम्बार दुहराया
बेटा ! प्यार कर ही पाया कहाँ
मैं तुम्हारा एक पापा जो ठहरा...
ख़ास नहीं ... बस आम पिता-सा
अनिश्चित वृद्ध-भविष्य की ख़ातिर
जुगाड़े हुए चन्द 'एफ डी' , 'आर. डी'
और 'एस आई पी' , तुम्हारी पढ़ाई की ख़ातिर
परिपक्व होने के पूर्व ही तुड़वाया
बेटा ! प्यार कर ही पाया कहाँ
मैं तुम्हारा एक पापा जो ठहरा ...
अब तुम्हारा ये कहना कि
"कभी मेरे बारे में भी सोचिए जरा !!!"
या फिर ये उलाहना कि
"आप मेरे लिए अब तक किए ही क्या !?"
बिल्कुल सच कह रहे हो तुम
इसमें भला झूठ है क्या !!!!
बेटा ! प्यार कर ही पाया कहाँ
मैं तुम्हारा एक पापा जो ठहरा ...
झेला भी तो नहीं प्रसव-पीड़ा
नसीब नहीं था दूध भी पिलाना
ना रोज-रोज साथ खेलना
बेटा ! प्यार कर ही पाया कहाँ
मैं तुम्हारा एक पापा जो ठहरा...
ताउम्र 'सेल्स' की घुमन्तु नौकरी में
शहर-शहर भटकता रहा
फ़ुर्सत मिली कब इतनी
तुम्हें जरा भी समय दे पाता
बेटा ! प्यार कर ही पाया कहाँ
मैं तुम्हारा एक पापा जो ठहरा...
खुद पहन 'एच.एम्.टी.'की घड़ियाँ
तुम्हे 'टाईटन रागा' पहनाया
फुटपाथी अंगरखे पहन कर
तुम्हे अक़्सर 'जॉकी' ही दिलवाया
बेटा ! प्यार कर ही पाया कहाँ
मैं तुम्हारा एक पापा जो ठहरा...
उम्र गुजरी 'स्लीपर' में सफ़र कर
तुम्हे अक़्सर 'ए. सी.' में ही भेजा
घिसा अपना तो 'खादिम, श्रीलेदर्स' में
तुम्हें चाहा 'हश पप्पीज' खरीदवाना
बेटा ! प्यार कर ही पाया कहाँ
मैं तुम्हारा एक पापा जो ठहरा...
'नर्सरी' की नौबत ही ना आई
बिस्तर के पास तुम्हारे छुटपन में
जो तीन बड़े-बड़े वर्णमाला, गिनती
और 'अल्फाबेट्स' के 'कैलेंडर' था लटकाया
बेटा ! प्यार कर ही पाया कहाँ
मैं तुम्हारा एक पापा जो ठहरा...
'एल के जी' से तुम्हें नौकरी मिलने तक
कभी प्रशंसा के दो शब्द ना बोला
पर परिचितों, सगे-सम्बन्धियों को
तुम्हारी उपलब्धियाँ बारम्बार दुहराया
बेटा ! प्यार कर ही पाया कहाँ
मैं तुम्हारा एक पापा जो ठहरा...
ख़ास नहीं ... बस आम पिता-सा
अनिश्चित वृद्ध-भविष्य की ख़ातिर
जुगाड़े हुए चन्द 'एफ डी' , 'आर. डी'
और 'एस आई पी' , तुम्हारी पढ़ाई की ख़ातिर
परिपक्व होने के पूर्व ही तुड़वाया
बेटा ! प्यार कर ही पाया कहाँ
मैं तुम्हारा एक पापा जो ठहरा ...
अब तुम्हारा ये कहना कि
"कभी मेरे बारे में भी सोचिए जरा !!!"
या फिर ये उलाहना कि
"आप मेरे लिए अब तक किए ही क्या !?"
बिल्कुल सच कह रहे हो तुम
इसमें भला झूठ है क्या !!!!
बेटा ! प्यार कर ही पाया कहाँ
मैं तुम्हारा एक पापा जो ठहरा ...
मार्मिक सत्य!
ReplyDeleteजी ! ख़ुद की जी हुई ज़िन्दगी सी ....
Deleteएक पिता की असाधारण,मर्मस्पर्शी... बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.. गज़ब लिखा है आपने...मन भीग गया..एक पिता के लिए अव्यक्त भावों को शब्द दे दिये आपने...बहुत बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना..सादर प्रणाम।
ReplyDeleteप्रकृत्ति का आशीष आप पर बना रहे सदैव ... शब्दों को महसूस करने के लिए आभार आपका ...
Deleteव्वाहहहहह..
ReplyDeleteजबरदस्त आत्मकथ्य..
उड़ेल दिया मन की पीड़ा..
वाह सुबोध वाह...
सादर...
आपके मन से फूटी वाहवाही के लिए आभार आपका ...☺
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार, जुलाई 23, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteशुक्रिया यशोदा जी इस तरह मेरी रचना को प्रस्तुत करने के लिए ...
Deleteवाह !वाह !बेहतरीन सृजन सर आज आप का ब्लॉग पढ़कर बहुत अच्छा लगा
ReplyDeleteसादर
मेरे ब्लॉग में झाँकने के लिए धन्यवाद अनीता जी!
Deleteवाह!!एक पिता के मन की व्यथा का बहुत खूबसूरती के साथ चित्रण किया है आपने ।
ReplyDeleteशुक्रिया शुभा जी !
Deleteबहुत ही सुन्दर सटीक...
ReplyDeleteवाकई पापा का प्यार पापा बनकर ही समझ आता है...तब तक सिर्फ माँ...
बहुत लाजवाब
वाह!!!
सबुक्रिया सुधा जी भाव की व्याख्या के लिए ..
Deleteपितृ दिवस की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteजी! आपको भी पितृ दिवस की शुभकामनाएं .. संग आपका आभार ...
Deleteफ़िर से एक बार और शुभकामनाएं पितृ दिवस पर।
Deleteजी ! आपको भी नमन संग शुभकामनाएं ..
Deleteआपके लिए एक नारा लिखा है हमने - "जो 'उलूक' है, वही 'मलूक' है" ...:)
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 20 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteपिता अपने परिवार को समय दे नही पाता
ReplyDeleteसमय दे भी दे अगर तो फिर परिवार का गुजरा कैसे हो.. ये दुविधा हर पिता की है.
बहुत स्टिक बात को कविता में रखा है आपने.
मैंने ऐसे विषय पर; जो आज की जरूरत है एक नया ब्लॉग बनाया है. कृपया आप एक बार जरुर आयें. ब्लॉग का लिंक यहाँ साँझा कर रहा हूँ- नया ब्लॉग नई रचना
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteसुबोध जी ,
ReplyDeleteएक कटु सत्य को आपने शब्दों में बांधा है , पिता क्या है इसे मर्म से समझाया है ।
पिता की भावनाओं को बखूबी रचा है ।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
जी ! नमन संग आभार आपका .. रचा या समझाया कुछ भी नहीं, जो जिया है, उसी को लिख दिया .. बस यूँ ही ...
Deleteसुबोध जी, निशब्द हूं। सच कहूं तो आपने एक पीढ़ी के पिता की मार्मिक भावनाओं को शब्दों में उतारा है। मां के महिमामंडन से किताबें भरी पड़ी हैं पर पिताजी। सदैव हाशिए से बाहर ही दिखते हैं। बाहर से उनका रूखा व्यक्तित्व उनके भीतर की कोमलता को बाहर दिखने ही नहीं देता। पर उनके भीतर भी भावों का प्रबल झरना निर्बाध बहता है। एक पिता की मजबूरियों और दबी भावनाओं को शब्दांकित करती रचना के लिए आपको आभार और शुभकामनाएं। इस छुपे स्नेह का कोई सानी नहीं। जब हम इसे खो देते हैं तब इसकी कीमत पता चलती है। समस्त पितृ सत्ता को सादर नमन 🙏🙏
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका .. एक विस्तृत प्रतिक्रिया से रचना/विचार को सम्बल देने के लिए ...
Deleteएल के जी' से तुम्हें नौकरी मिलने तक
ReplyDeleteकभी प्रशंसा के दो शब्द ना बोला
पर परिचितों, सगे-सम्बन्धियों को
तुम्हारी उपलब्धियाँ बारम्बार दुहराया
बेटा ! प्यार कर ही पाया कहाँ
मैं तुम्हारा एक पापा जो ठहरा...
आह,!!!!
एक पिता के जाने के साथ ही गर्व से फूलने वाले निस्वार्थ व्यक्ति की विदाई हो जाती हैं। आँखें नम करते उद्गार!!!🙏
जी ! नमन संग आभार आपका .. रचना से बेहतर प्रतिक्रिया के लिए ...
Deleteबेहद हृदयस्पर्शी सृजन
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
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