अक़्सर हम ...
स्वयं को धर्मनिरपेक्ष बता,
सब से यही उम्मीद करते।
धर्म के भेदभाव सारे हम
मिटाने की हैं बात करते।
तो क्यों ना ...
मिल कर कभी उर्दू में भी,
हम हनुमान चालीसा पढ़ें।
एक बार कभी अंग्रेजी में,
वज्रासन लगा कुरान पढ़ें।
तो क्यों ना ...
चर्च में मिलकर ईसा की,
संस्कृत में गुणगान करें।
मंदिर में कभी टोपी पहन,
तो धोती में मस्जिद चढ़ें।
अक़्सर हम ...
स्वयं को धर्मनिरपेक्ष बता,
सब से यही उम्मीद करते।
धर्म के भेदभाव सारे हम,
मिटाने की हैं बात करते।
तो क्यों ना ...
सत्यनारायण स्वामी की
कथा हो कभी फ़ारसी में,
और क्यों ना आरती हम,
मिलकर अंग्रेजी में गाएं।
तो क्यों ना ...
पगड़ी और पटके पहन के,
मजलिस में सारे ही पधारें।
शाम-ए-ग़रीबाँ के दर्द को,
हिंदी ही में दोहराए जाएं।
अक़्सर हम ...
स्वयं को धर्मनिरपेक्ष बता,
सब से यही उम्मीद करते।
धर्म के भेदभाव सारे हम,
मिटाने की हैं बात करते।
तो क्यों ना ...
कभी भगवान के लिए हम,
मंदिर में सूफी कव्वाली गाएं।
कभी अल्लाह को भी मिल,
एक भक्ति के भजन सुनाएं।
तो क्यों ना ...
उतार कर सलीब से कभी,
ईसा को पीताम्बर पहनाएं।
कान्हा हों सलीब पर कभी,
गिरजे में भी शंख बजाएं।
अक़्सर हम ...
स्वयं को धर्मनिरपेक्ष बता,
सब से यही उम्मीद करते।
धर्म के भेदभाव सारे हम,
मिटाने की हैं बात करते।
तो क्यों ना ...
कभी शिवरात्रि की रात,
ज़र्दा पुलाव प्रसाद चढ़ाएं।
या शब-ए-बारात में कभी,
सोंधी मीठी पँजीरी बनाएं।
तो क्यों ना ...
मुरीद बन, कभी बक़रीद में
भतुए की क़ुर्बानी दी जाए।
मंदिरों में टूटे फूलों के बजाय,
गमले समेत ही चढ़ाए जाएं।
अक़्सर हम ...
स्वयं को धर्मनिरपेक्ष बता,
सब से यही उम्मीद करते।
धर्म के भेदभाव सारे हम,
मिटाने की हैं बात करते।
अगर जो ...
सभी भाषा का ही है ज्ञाता,
वो ऊपर वाला, हैं ऐसा सुने।
फिर हमारे बीच ही क्यों भला
भेदभाव, क्यों हैं ये फ़ासले ?
अगर जो ...
ऊपर में हमारे ही पालनहार,
हैं भगवान रचयिता बने बैठे।
फिर रूस, पाकिस्तान हो या
यहाँ कौन लाता है जलजले ?
【मजलिस = इमाम हुसैन की याद में आयोजित होने वाला कार्यक्रम।】
【शाम-ए-ग़रीबाँ = दस मुहर्रम को कर्बला के वाक़िया पर होने वाली एक शोक सभा विशेष।】
असल में धर्मनिरपेक्ष बता कर हम सबसे ज्यादा कट्टर बन जाते हैं ।
ReplyDeleteगहन विचार ।
जी ! नमन संग आभार आपका .. बिलकुल शत्-प्रतिशत सही कहा आपने ...
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