जानाँ ! ...
तीसी मेरी चाहत की
और दाल तुम्हारी हामी की
मिलजुल कर संग-संग ,
समय के सिल-बट्टे पर
दरदरे पीसे हुए , रंगे एक रंग ,
सपनों की परतों पर पसरे
घाम में हालात के
हौले-हौले खोकर
रुमानियत की नमी
हम दोनों की ;
बनी जो सूखी हुईं ..
मिलन के हमारे
छोटे-छोटे लम्हों-सी
छोटी-छोटी .. कुरकुरी ..
तीसीऔड़ियाँ।
हैं सहेजे हुए
धरोहर-सी आज भी
यादों के कनस्तर में ,
जो फ़ुर्सत में ..
जब कभी भी
सोचों की आँच पर
नयनों से विरह वाले
रिसते तेल में
लगा कर डुबकी
सीझते हैं मानो
तिलमिलाते हुए।
जीभ पर तभी ज़ेहन के
है हो जाता
अक़्सर आबाद
एक करारा .. कुरकुरा ..
सोंधा-सा स्वाद .. बस यूँ ही ...
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज शनिवार 27 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (28-02-2021) को "महक रहा खिलता उपवन" (चर्चा अंक-3991) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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जी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteप्रशंसनीय ।
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteबेहतरीन रचना।
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteसुन्दर भावों का सृजन ।
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteवाह , ग़ज़ब के रूपक से सजी रचना । पढ़ कर आनंद आया ।
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteबेहतरीन तरीके से आपने जीवन की व्याख्या की है आदरणीय सुबोध जी। मंत्रमुग्ध हूँ। ।।।
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ... :)
Deleteअनूठे बिंब और चमत्कृत भावों से सुसज्जित बेहद सोंधी रचना।
ReplyDeleteतीसी और दाल से बनी रचना सुस्वादु है सच में।
सादर।
जी ! नमन संग आभार आपका ... :)
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