मेरी अतुकान्त कविताओं की
बेतरतीब पंक्तियों में
हर बार तुम
आ ही जाती हो
अपने बिखरे बेतरतीब
महमहाते बालों की तरह
और तुम्हारी
अतुकान्त कविताओं में
अक़्सर मैं
बेतुका बिम्ब गढ़ता-सा
अपनी बेतुकी
सोचों की तरह
मानो ... कहीं पास से ही
किसी दरवेश के
दरगाह से अक़्सर
सुलगती अगरबत्तियों के
सुगन्धित धुएँ के साथ
मन्नतों के पूरी होने के बाद
चढ़ाई गई बेली-चमेली की बुनी
चादरों की लिपटी ख़ुश्बूएँ ...
बस आ ही जाती हों
बंद कमरों में भी
खुले रोशनदानों से
हवा के झोंको के साथ
मज़हबी बेमतलब की
बातों में बिना भेद किये
ऐसे में ... बोलो ना भला..
जरुरी तो नहीं कि ...
इन सुगन्धों के लिए
क़रीब जाकर उस
दरगाह की सीढ़ियों पर
बैठा ही जाए ...
बेतरतीब पंक्तियों में
हर बार तुम
आ ही जाती हो
अपने बिखरे बेतरतीब
महमहाते बालों की तरह
और तुम्हारी
अतुकान्त कविताओं में
अक़्सर मैं
बेतुका बिम्ब गढ़ता-सा
अपनी बेतुकी
सोचों की तरह
मानो ... कहीं पास से ही
किसी दरवेश के
दरगाह से अक़्सर
सुलगती अगरबत्तियों के
सुगन्धित धुएँ के साथ
मन्नतों के पूरी होने के बाद
चढ़ाई गई बेली-चमेली की बुनी
चादरों की लिपटी ख़ुश्बूएँ ...
बस आ ही जाती हों
बंद कमरों में भी
खुले रोशनदानों से
हवा के झोंको के साथ
मज़हबी बेमतलब की
बातों में बिना भेद किये
ऐसे में ... बोलो ना भला..
जरुरी तो नहीं कि ...
इन सुगन्धों के लिए
क़रीब जाकर उस
दरगाह की सीढ़ियों पर
बैठा ही जाए ...
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-08-2019) को " मुझको ही ढूँढा करोगे " (चर्चा अंक- 3424) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
महोदया !
Deleteमेरे शब्दों के संकलन को "मुझको ही ढूँढा करोगे" जैसे ब्लॉग में साझा कर के ये मान देने के लिए आभार आपका ....
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 10 अगस्त 2019 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद
ReplyDeleteधन्यवाद तो आपका जो ... मेरी रचना को इतना मान दे रहीं हैं "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" में आज साझा कर के ... आभार आपका
Deleteज़ज्बातों को उकेरती हुयी,दिल छू जाने वाली रचना है
ReplyDeleteदिल को छू जाने वाले विश्लेषण के लिए शुक्रिया आपका ....
ReplyDeleteबेहद रुमानी एहसास गूँथे है आपने। भाव मन में गहरे उतर रहे है आपकी रचनाओं के बिंब बहुत अलग होते हैं सदैव अचंभित करते है। बहुत सुंंदर सृजन।
ReplyDeleteमेरे आम सृजन को "सुन्दर" विशेषता से सजाने के लिए आभार आपका ...
ReplyDeleteमन्त्रमुग्ध करती हैं आपकी रचनाएँ ।
ReplyDeleteसाभार आपका महोदया !
Deleteबस आ ही जाती हों
ReplyDeleteबंद कमरों में भी
खुले रोशनदानों से
हवा के झोंको के साथ
मज़हबी बेमतलब की
बातों में बिना भेद किये
वाह!!!!
रुमानियत भरी लाजवाब प्रस्तुति
सुधा जी ! धन्यवाद आपको ... सराहना कर मनोबल बढ़ाने के लिए ....
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