दुबकी जड़ें मिट्टियों में
कुहंकती तो नहीं कभी,
बल्कि रहती हैं सींचती
दूब हो या बरगद कोई।
ना ग़म होने का मिट्टी में,
ना ही शिकायत कोई कि
बेलें हैं या वृक्ष विशाल
सजे फूल-फलों से कई।
जड़े हैं तो हैं वृक्ष जीवित
और वृक्ष हैं तो जड़े भी,
अन्योन्याश्रय रिश्ते इन्हें
है ख़ूब पता औ' गर्व भी।
पुरुष बड़ा, नारी छोटी,
बात किसने है फैलायी?
नारी है तभी हैं वंश-बेलें
और मानव-श्रृंखला भी।
बँटना तो क्षैतिज ही बँटना,
यदि हो जो बँटना जरुरी।
ऊर्ध्वाधर बँटने में तो आस
होती नहीं पुनः पनपने की।
है नारी संबल प्रकृति-सी,
सार्थक पुरुष-जीवन तभी।
फिर क्यों नारी तेरे मन में
है भरी हीनता मनोग्रंथि ?
कितनी सही और सच्ची बात । जड़ है तो वृक्ष है , नारी है तो सृष्टि है ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 10 मार्च 2021 को साझा की गई है......"सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" परआप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी! नमन संग आभार आपका ...
Deleteबहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteशिव त्रयोदशी की बहुत-बहुत बधाई हो।
जी ! नमन संग आभार आपका ... ( मुझ नास्तिक को शिव त्रयोदशी की बधाई !!☺☺ :):)
Deleteस्त्री-पुरूष समानता पर उकेरी गयी
ReplyDeleteआपके विचारों की गहनता की छाप पाठकों के मन को छू पाने में सक्षम है।
बेहद सराहनीय सृजन।
बँटना तो क्षैतिज ही बँटना,
यदि हो जो बँटना जरुरी।
ऊर्ध्वाधर बँटने में तो आस
होती नहीं पुनः पनपने की।
इन पंक्तियों ने विशेष प्रभावित किया।
स्त्री-पुरुष अन्योन्याश्रित संबंध पर आधारित है ऐसा अगर सभी समझ सके तो स्त्रियों की स्थिति में बदलाव को कोई नहीं रोक पाये।
सादर।
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक ११-०३-२०२१) को चर्चा - ४,००२ में दिया गया है।
ReplyDeleteआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteहै नारी संबल प्रकृति-सी,
ReplyDeleteसार्थक पुरुष-जीवन तभी।
फिर क्यों नारी तेरे मन में
है भरी हीनता मनोग्रंथि
बहुत सटीक सुन्दर एवं सारगर्भित सृजन।
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteपुरुष बड़ा, नारी छोटी,
ReplyDeleteबात किसने है फैलायी?
नारी है तभी हैं वंश-बेलें
और मानव-श्रृंखला भी।
बहुत सुंदर सृजन, सुबोध भाई।
जी ! नमन संग आभार आपका ज्योति बहन ! ...
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ मार्च २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी !आभार आपका मंच में शामिल करने के लिए ...
Deleteहीनता की ग्रंथि?छोटे बड़े की बात भी बेमानी है -पूरक हैं एक दूसरे के .
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteकिसी सामाजिक या भौगोलिक परिवेश का मानव-मन, मानसिकता और दृष्टिकोण पर गहन प्रभाव पड़ता है .. शायद ... तभी ये "एक-दूसरे के पूरक" वाली बात किसी समाज में समझता जाता है और कहीं बिल्कुल भी नहीं .. ये वैसे ही समाज के लिए लिखा गया है .. बस यूँ ही ...
हीनता नहीं ये बराबर आने की जदोजहद है। नारी और पुरुष क्रमशः जड़ व पेड़ की तरह नहीं है।
ReplyDeleteअगर नारी जड़ है तो पुरुष भी जड़ है और समाजिक मूल्य/ नैतिक मूल्य/ समानता की भावना/ आदर्शवाद उन दोनों पर खड़ा पेड़।
नई रचना
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteआपका कथन शत्-प्रतिशत सही है और मेरी सोचों के क़रीब है .. शायद ...
"जड़" की उपमा से उन्हें नवाज़े जाने का सन्दर्भ या तात्पर्य मेरा ये हैं कि जड़ की तरह वह परिवार को सींचती हैं। हम लाख समानता के अधिकार की बात कर लें , पर क़ुदरत ने जहाँ उन्हें हम से इतर बना कर एक अलग गुण या शक्ति का जो वरदान दिया है - गर्भधारण करने और प्रसव पीड़ा झेलने की विशेष क्षमता - उसी बात के संदर्भ में "जड़" कहा गया है, जो सब कुछ झेल कर, मिट्टी में दबी रह कर दूब से दरख़्त तक को सम्भाले रहती है, मानो मादा/ महिला अब पीड़ा सह कर वंश-बेल गढ़ती है .. शायद ...
अतः जड़ शब्द से मर्माहत ना हों महाशय .. ये आग्रह है हमारी आपसे .. बस यूँ ही ...