" हम होंगे कामयाब एक दिन "... जैसा मधुर , कर्णप्रिय और उत्साहवर्द्धक समूहगान जिसे हम में से शायद ही कोई होगा, जिसने जन्म लेने और बोलना शुरू करने के बाद विद्यालय जाने वाले बचपन से लेकर अब तक ..चाहे वह जिस किसी भी आयुवर्ग का हो, वह लयबद्ध गाया ना हो या फिर सुना या गुनगुनाया ना हो। जब कभी भी हम निजी जीवन में भी नकारात्मक भाव से ग्रसित होते हैं तो यह समूहगान हमें तत्क्षण ऊर्जावान कर देता है। कई बार तो इस गाने को हम गुनगुनाते हुए स्वयं को और कभी कभार अपनों या अन्य को भी आशावान बना देते हैं। उम्मीद के पौधों को कुम्हलाने से बचाने का प्रयास करते हैं।
इसके विषय में कुछ अन्य बातों की चर्चा आगे बढ़ाने के पहले , उस गाने को हम गा या गुनगुना या सुन नहीं सकते तो कम से कम आइए एक बार हम सब मिल कर पढ़ ही लेते हैं -
"होंगे कामयाब, होंगे कामयाब
हम होंगे कामयाब एक दिन
हो-हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
हम होंगे कामयाब एक दिन
होंगी शांति चारो ओर
होंगी शांति चारो ओर
होंगी शांति चारो ओर एक दिन
हो-हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
होंगी शांति चारो ओर एक दिन
नहीं डर किसी का आज
नहीं भय किसी का आज
नहीं डर किसी का आज के दिन
हो-हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
नहीं डर किसी का आज के दिन
हम होंगे कामयाब एक दिन ... "
दरअसल यह समूहगान अंग्रेजी भाषा की रचना (जिसकी चर्चा आगे करते हैं) से हिन्दी में अनुवाद भर है, जिसका अंग्रेजी रूप इस प्रकार है -
"We shall overcome,
We shall overcome,
We shall overcome,
We shall overcome,
We shall overcome, some day.
We shall overcome, some day.
Oh, deep in my heart,
Oh, deep in my heart,
I do believe
I do believe
We shall overcome, some day.
We shall overcome, some day.
We'll walk hand in hand,
We'll walk hand in hand,
We'll walk hand in hand,
We'll walk hand in hand,
We'll walk hand in hand, some day.
We'll walk hand in hand, some day.
Oh, deep in my heart,
Oh, deep in my heart,
We shall live in peace,
We shall live in peace,
We shall live in peace,
We shall live in peace,
We shall live in peace, some day.
We shall live in peace, some day.
Oh, deep in my heart,
Oh, deep in my heart,
We shall all be free,
We shall all be free,
We shall all be free,
We shall all be free,
We shall all be free, some day.
We shall all be free, some day.
Oh, deep in my heart,
Oh, deep in my heart,
We are not afraid,
We are not afraid,
We are not afraid,
We are not afraid,
We are not afraid, TODAY
We are not afraid, TODAY
Oh, deep in my heart,
Oh, deep in my heart,
We shall overcome,
We shall overcome,
We shall overcome,
We shall overcome,
We shall overcome, some day.
We shall overcome, some day.
Oh, deep in my heart,
Oh, deep in my heart,
I do believe
I do believe
We shall overcome, some day.
We shall overcome, some day."
हम में से कई लोगों को इसके अंग्रेजी से हिंदी रूपांतरण वाली बात की सच्चाई का शायद पता भी हो ।
परन्तु शायद अधिकांश लोगों को ये ज्ञात हो कि ... इसे गिरिजा कुमार माथुर जी ने पहले हिन्दी में लिखा है और बाद में हिन्दी से अंग्रेजी में रूपांतरण हुआ है।
परन्तु ... इतिहास पर गौर करें तो इस विश्व-प्रसिद्ध समूहगान के अंग्रेजी भाषा से हिन्दी भाषा में रूपांतरण होने की बात की पुष्टि होती है। दरअसल .. इसे सर्वप्रथम अमेरिकी मेथोडिस्ट मंत्री ( American Methodist ( प्रोटेस्टेंट चर्च के एक सदस्य ) Minister ) - Charles Albert Tindley द्वारा अंग्रेजी में ईसामसीह के सुसमाचार भजन (Hymn) के रूप में लिखा गया था, वे संगीतकार भी थे। यह लगभग 1900 में प्रकाशित हुआ था। बाद में इसे 1954 से 1968 तक चलने वाले नागरिक अधिकारों के आंदोलन ( Civil Rights Movement ) में विरोध-गान (Protest-Anthem) के रूप में गाया गया था।
भारत में भी इसका भावान्तर रूप सहर्ष बिना भेद भाव किए अपनाया गया। मध्यप्रदेश के रहने वाले गिरिजा कुमार माथुर जी , जो स्वयं स्कूल-अध्यापक थे, ने इसका हिन्दी अनुवाद किया था। इस तरह यह भावान्तर-गीत एक समूह-गान के रूप में प्रचलित हो गया। हमारे रगों में रच-बस गया। तब से अब तक बंगला भाषा ( "आमरा कोरबो जॉय..." के मुखड़े के साथ) के साथ-साथ कई सारी भाषाओं में रूपांतरित किया जा चुका है। कहते हैं कि गिरिजा कुमार माथुर जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार के साथ-साथ व्यास सम्मान, शलाका सम्मान से भी सम्मानित किया गया था। उन्हें साहित्य और संगीत से काफी लगाव था। उन्होंने कई कविताएँ भी रची थी। कहते हैं कि वे एक लोकप्रिय रेडियो चैनल - विविध भारती - के जन्मदाता थे।
इस तरह अमेरिकी Charles Albert Tindley की लेखनी और सोचों से जन्म लेकर यह उत्साहवर्द्धक समूहगान गिरजाघर में शैशवास्था बीता कर और फिर भारतीय गिरिजा कुमार माथुर की लेखनी से रूपान्तरित हो कर विरोध-गीत और उत्साह-गान तक का यौवनावस्था का सफर तय कर .. आज भी हमारे देश-समाज का चिरयुवा समूहगान बन कर हमारा तन-मन अनवरत तरंगित करता आ रहा है।
दरअसल आज इसका उल्लेख उन बुद्धिजीवियों तक पहुँचाना जरूरी महसूस हुआ, जो लोग अक़्सर अपनी भाषा, बोली, जाति-धर्म, सभ्यता-संस्कृति की अक्षुण्णता बनाये रखने के नाम पर एक दायरे में बाँध कर उन्हें जकड़े रहने की कोशिश करते हैं या सपाट भाषा में कहें तो एक बाड़े में उन्हें घेरने की बात करते हैं। अपने से इतर इन्हें अन्य सभ्यता-संस्कृति, भाषा-बोली, जाति-धर्म सभी हेय लगते हैं।
ऐसे सोंचों पर तरस तो तब आती है, जब कुछ बुद्धिजीवी वर्ग विश्व में हजारों की संख्या में बोली जाने वाली किसी एक बोली या भाषा को लेकर मिथ्या भरी अपनी गर्दन अकड़ाते हैं। अपनी भाषा या बोली पर गर्व करना एक अच्छी बात है। करनी भी चाहिए और स्वभाविक भी है। पर समानान्तर में अपनी भाषा को बोलने वाली जनसंख्या को ज्यादा या कम की तुलनात्मक अध्ययन के होड़ में अन्य भाषा या बोली का तिरस्कार करना या उसे लघुतर व कमतर मानना, कहना या किसी मंच से बार-बार ऊँची आवाज़ में इसकी घोषणा करना .. शायद मेरी समझ से उस व्यक्ति विशेष की संकुचित मानसिकता को दर्शाता है।
खैर ! अब आते हैं - इस समूहगान .. जिसे गाते-गाते, सुनते-सुनते हम पीढ़ी-दर-पीढ़ी बड़े हो कर इस धरती से अनन्त, अंतहीन यात्रा पर गमन कर जाते हैं, पर ... सच में हम सभी जीवनकाल में पूर्णरूपेण कभी कामयाब हो भी पाते हैं क्या !?
हमें अगर कामयाबी का सही अर्थ जानना हो तो पूछना चाहिए उस आम युवा से या उसके आम गरीब अभिभावक से जो उच्च ब्याज़-दर पर कर्ज़ लेकर, अपने कुछ सपनों का गला घोंट कर, अपने बुढ़ाते भविष्य को असहाय कर के अपनी भावी पीढ़ी को उच्च शिक्षा दिलवाने का प्रबन्ध करता हो और ... ऐन मौके पर उसे एक मानसिक आघात तब लगता हो, जब उसे मालूम होता है कि उनकी संतान से बहुत कम प्राप्तांक के बावजूद .. एक औसत प्राप्तांक के आधार पर ही पड़ोस के या मुहल्ले या शहर के एक उच्च-अधिकारी दम्पति या फिर कोई धनाढ्य दम्पति की संतान का नामांकन देश के किसी उच्च शैक्षिक-संस्थान में हो गया या कोई यथोचित नौकरी मिल गई ... परन्तु उनकी संतान को नहीं ... कारण ... केवल और केवल जाति के आधार पर मिलने वाले आरक्षण के कारण। उस पल यह उत्साहवर्द्धक समूहगान उस युवा और उसके अभिभावक के कान में पिघले शीशे की तरह जलाता है। लगता है कि आखिर आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी कामयाबी का क्या यही मतलब है - आरक्षण ?
आज़ादी की रात विभाजन के आड़ में या फिर जाति-धर्म के नाम पर समाज, शहर, देश में होने वाले तमाम दंगों से हताहत परिवार .. चाहे दंगे की वजह जो भी रही हो .. को भी ये समूहगान मुँह चिढ़ाता लगता होगा।
सोचते होंगे कि आखिर इस गाने की पंक्तियाँ कब चरितार्थ होगी भला !!! है ना? यही हमारी कामयाबी है क्या ???
आज हमारी सामाजिक मानसिकता की मनःस्थिति बद-से-बदतर होने की वजह से अगर उस तेज़ाब-ग्रस्त लड़की से या फिर बलात्कृत लड़की या मासूम बच्ची से या फिर बलात्कार के बाद जलाई या मारी गई युवती के परिवार से पूछा जाए तो इस गाने का अर्थ उनके लिए बेमानी होगा शायद ...
बचपन में स्कूल के सांस्कृतिक-कार्यक्रमों के सुअवसरों पर सजे मंचों से लेकर युवाकाल में कॉलेजों और सरकारी या राजनीतिक कार्यक्रमों में सजे मंचों से भी गाया और सुना जा रहा यह गाना जब व्यवहारिक जीवन में , समाज में ... समझ से परे और निर्रथक लगने लगता है, तो मन में बस एक ही सवाल कौंधता है ... कि ..
आखिर हम कब होंगें कामयाब ? कब होगी शांति चारों ओर ?
कब चलेंगें हम साथ-साथ ? भला कब हम किसी से डरेंगें नहीं ?
कब नहीं होगा किसी का भी भय ?
आखिर कब तक ..आखिर कब तक रखें .. मन में विश्वास ?
आखिर इन सारे सवालों का जवाब कब तलाश पायेंगें हम सब ?
आइए मिल कर पूछते हैं .. पहले स्वयं से ही .... कि ...
हम कब होंगें कामयाब ...???
इसके विषय में कुछ अन्य बातों की चर्चा आगे बढ़ाने के पहले , उस गाने को हम गा या गुनगुना या सुन नहीं सकते तो कम से कम आइए एक बार हम सब मिल कर पढ़ ही लेते हैं -
"होंगे कामयाब, होंगे कामयाब
हम होंगे कामयाब एक दिन
हो-हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
हम होंगे कामयाब एक दिन
होंगी शांति चारो ओर
होंगी शांति चारो ओर
होंगी शांति चारो ओर एक दिन
हो-हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
होंगी शांति चारो ओर एक दिन
नहीं डर किसी का आज
नहीं भय किसी का आज
नहीं डर किसी का आज के दिन
हो-हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
नहीं डर किसी का आज के दिन
हम होंगे कामयाब एक दिन ... "
दरअसल यह समूहगान अंग्रेजी भाषा की रचना (जिसकी चर्चा आगे करते हैं) से हिन्दी में अनुवाद भर है, जिसका अंग्रेजी रूप इस प्रकार है -
"We shall overcome,
We shall overcome,
We shall overcome,
We shall overcome,
We shall overcome, some day.
We shall overcome, some day.
Oh, deep in my heart,
Oh, deep in my heart,
I do believe
I do believe
We shall overcome, some day.
We shall overcome, some day.
We'll walk hand in hand,
We'll walk hand in hand,
We'll walk hand in hand,
We'll walk hand in hand,
We'll walk hand in hand, some day.
We'll walk hand in hand, some day.
Oh, deep in my heart,
Oh, deep in my heart,
We shall live in peace,
We shall live in peace,
We shall live in peace,
We shall live in peace,
We shall live in peace, some day.
We shall live in peace, some day.
Oh, deep in my heart,
Oh, deep in my heart,
We shall all be free,
We shall all be free,
We shall all be free,
We shall all be free,
We shall all be free, some day.
We shall all be free, some day.
Oh, deep in my heart,
Oh, deep in my heart,
We are not afraid,
We are not afraid,
We are not afraid,
We are not afraid,
We are not afraid, TODAY
We are not afraid, TODAY
Oh, deep in my heart,
Oh, deep in my heart,
We shall overcome,
We shall overcome,
We shall overcome,
We shall overcome,
We shall overcome, some day.
We shall overcome, some day.
Oh, deep in my heart,
Oh, deep in my heart,
I do believe
I do believe
We shall overcome, some day.
We shall overcome, some day."
हम में से कई लोगों को इसके अंग्रेजी से हिंदी रूपांतरण वाली बात की सच्चाई का शायद पता भी हो ।
परन्तु शायद अधिकांश लोगों को ये ज्ञात हो कि ... इसे गिरिजा कुमार माथुर जी ने पहले हिन्दी में लिखा है और बाद में हिन्दी से अंग्रेजी में रूपांतरण हुआ है।
परन्तु ... इतिहास पर गौर करें तो इस विश्व-प्रसिद्ध समूहगान के अंग्रेजी भाषा से हिन्दी भाषा में रूपांतरण होने की बात की पुष्टि होती है। दरअसल .. इसे सर्वप्रथम अमेरिकी मेथोडिस्ट मंत्री ( American Methodist ( प्रोटेस्टेंट चर्च के एक सदस्य ) Minister ) - Charles Albert Tindley द्वारा अंग्रेजी में ईसामसीह के सुसमाचार भजन (Hymn) के रूप में लिखा गया था, वे संगीतकार भी थे। यह लगभग 1900 में प्रकाशित हुआ था। बाद में इसे 1954 से 1968 तक चलने वाले नागरिक अधिकारों के आंदोलन ( Civil Rights Movement ) में विरोध-गान (Protest-Anthem) के रूप में गाया गया था।
भारत में भी इसका भावान्तर रूप सहर्ष बिना भेद भाव किए अपनाया गया। मध्यप्रदेश के रहने वाले गिरिजा कुमार माथुर जी , जो स्वयं स्कूल-अध्यापक थे, ने इसका हिन्दी अनुवाद किया था। इस तरह यह भावान्तर-गीत एक समूह-गान के रूप में प्रचलित हो गया। हमारे रगों में रच-बस गया। तब से अब तक बंगला भाषा ( "आमरा कोरबो जॉय..." के मुखड़े के साथ) के साथ-साथ कई सारी भाषाओं में रूपांतरित किया जा चुका है। कहते हैं कि गिरिजा कुमार माथुर जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार के साथ-साथ व्यास सम्मान, शलाका सम्मान से भी सम्मानित किया गया था। उन्हें साहित्य और संगीत से काफी लगाव था। उन्होंने कई कविताएँ भी रची थी। कहते हैं कि वे एक लोकप्रिय रेडियो चैनल - विविध भारती - के जन्मदाता थे।
इस तरह अमेरिकी Charles Albert Tindley की लेखनी और सोचों से जन्म लेकर यह उत्साहवर्द्धक समूहगान गिरजाघर में शैशवास्था बीता कर और फिर भारतीय गिरिजा कुमार माथुर की लेखनी से रूपान्तरित हो कर विरोध-गीत और उत्साह-गान तक का यौवनावस्था का सफर तय कर .. आज भी हमारे देश-समाज का चिरयुवा समूहगान बन कर हमारा तन-मन अनवरत तरंगित करता आ रहा है।
दरअसल आज इसका उल्लेख उन बुद्धिजीवियों तक पहुँचाना जरूरी महसूस हुआ, जो लोग अक़्सर अपनी भाषा, बोली, जाति-धर्म, सभ्यता-संस्कृति की अक्षुण्णता बनाये रखने के नाम पर एक दायरे में बाँध कर उन्हें जकड़े रहने की कोशिश करते हैं या सपाट भाषा में कहें तो एक बाड़े में उन्हें घेरने की बात करते हैं। अपने से इतर इन्हें अन्य सभ्यता-संस्कृति, भाषा-बोली, जाति-धर्म सभी हेय लगते हैं।
ऐसे सोंचों पर तरस तो तब आती है, जब कुछ बुद्धिजीवी वर्ग विश्व में हजारों की संख्या में बोली जाने वाली किसी एक बोली या भाषा को लेकर मिथ्या भरी अपनी गर्दन अकड़ाते हैं। अपनी भाषा या बोली पर गर्व करना एक अच्छी बात है। करनी भी चाहिए और स्वभाविक भी है। पर समानान्तर में अपनी भाषा को बोलने वाली जनसंख्या को ज्यादा या कम की तुलनात्मक अध्ययन के होड़ में अन्य भाषा या बोली का तिरस्कार करना या उसे लघुतर व कमतर मानना, कहना या किसी मंच से बार-बार ऊँची आवाज़ में इसकी घोषणा करना .. शायद मेरी समझ से उस व्यक्ति विशेष की संकुचित मानसिकता को दर्शाता है।
खैर ! अब आते हैं - इस समूहगान .. जिसे गाते-गाते, सुनते-सुनते हम पीढ़ी-दर-पीढ़ी बड़े हो कर इस धरती से अनन्त, अंतहीन यात्रा पर गमन कर जाते हैं, पर ... सच में हम सभी जीवनकाल में पूर्णरूपेण कभी कामयाब हो भी पाते हैं क्या !?
हमें अगर कामयाबी का सही अर्थ जानना हो तो पूछना चाहिए उस आम युवा से या उसके आम गरीब अभिभावक से जो उच्च ब्याज़-दर पर कर्ज़ लेकर, अपने कुछ सपनों का गला घोंट कर, अपने बुढ़ाते भविष्य को असहाय कर के अपनी भावी पीढ़ी को उच्च शिक्षा दिलवाने का प्रबन्ध करता हो और ... ऐन मौके पर उसे एक मानसिक आघात तब लगता हो, जब उसे मालूम होता है कि उनकी संतान से बहुत कम प्राप्तांक के बावजूद .. एक औसत प्राप्तांक के आधार पर ही पड़ोस के या मुहल्ले या शहर के एक उच्च-अधिकारी दम्पति या फिर कोई धनाढ्य दम्पति की संतान का नामांकन देश के किसी उच्च शैक्षिक-संस्थान में हो गया या कोई यथोचित नौकरी मिल गई ... परन्तु उनकी संतान को नहीं ... कारण ... केवल और केवल जाति के आधार पर मिलने वाले आरक्षण के कारण। उस पल यह उत्साहवर्द्धक समूहगान उस युवा और उसके अभिभावक के कान में पिघले शीशे की तरह जलाता है। लगता है कि आखिर आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी कामयाबी का क्या यही मतलब है - आरक्षण ?
आज़ादी की रात विभाजन के आड़ में या फिर जाति-धर्म के नाम पर समाज, शहर, देश में होने वाले तमाम दंगों से हताहत परिवार .. चाहे दंगे की वजह जो भी रही हो .. को भी ये समूहगान मुँह चिढ़ाता लगता होगा।
सोचते होंगे कि आखिर इस गाने की पंक्तियाँ कब चरितार्थ होगी भला !!! है ना? यही हमारी कामयाबी है क्या ???
आज हमारी सामाजिक मानसिकता की मनःस्थिति बद-से-बदतर होने की वजह से अगर उस तेज़ाब-ग्रस्त लड़की से या फिर बलात्कृत लड़की या मासूम बच्ची से या फिर बलात्कार के बाद जलाई या मारी गई युवती के परिवार से पूछा जाए तो इस गाने का अर्थ उनके लिए बेमानी होगा शायद ...
बचपन में स्कूल के सांस्कृतिक-कार्यक्रमों के सुअवसरों पर सजे मंचों से लेकर युवाकाल में कॉलेजों और सरकारी या राजनीतिक कार्यक्रमों में सजे मंचों से भी गाया और सुना जा रहा यह गाना जब व्यवहारिक जीवन में , समाज में ... समझ से परे और निर्रथक लगने लगता है, तो मन में बस एक ही सवाल कौंधता है ... कि ..
आखिर हम कब होंगें कामयाब ? कब होगी शांति चारों ओर ?
कब चलेंगें हम साथ-साथ ? भला कब हम किसी से डरेंगें नहीं ?
कब नहीं होगा किसी का भी भय ?
आखिर कब तक ..आखिर कब तक रखें .. मन में विश्वास ?
आखिर इन सारे सवालों का जवाब कब तलाश पायेंगें हम सब ?
आइए मिल कर पूछते हैं .. पहले स्वयं से ही .... कि ...
हम कब होंगें कामयाब ...???
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 19 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी ! नमन आपको और आभार आपका ...
Delete
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी ! नमन आपको और आभार आपका ...
Deleteउत्कृष्ठ।
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,पहले स्वयं का मंथन ही जरूरी हैं ,सादर नमन
ReplyDeleteजी ! सच में .. स्वयं का ही ... आभार आपका ..
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
Delete