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Saturday, August 26, 2023

इस अँधेरे से डरता हूँ मैं .. शायद ...

"ठंडा मतलब कोका कोला" - एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के 'कार्बोनेटेड' शीतल पेय जैसे उत्पाद के इस विज्ञापन की 'पंच लाइन' से देश का बच्चा-बच्चा वाकिफ़ है। आप भी हैं और हम भी .. शायद ...

हालांकि अगस्त, 2003 में ही "विज्ञान और पर्यावरण केंद्र" की निदेशक और प्रसिद्ध पर्यावरणविद् "सुनीता नारायण" ने इसके निर्माण सामग्री में उपस्थित रसायनों .. ख़ासकर कीटनाशक की गलत प्रतिशत मात्रा के आधार पर स्वास्थ्य की दृष्टिकोण से इसे एक हानिकारक शीतल पेय होने के कई सारे प्रमाण प्रस्तुत किए थे। इसके बावज़ूद अपने देश क्या समस्त विश्व भर में यह मीठा ज़हर लोगों को लोकप्रिय है। ये विडंबना है कि हमारी एक-तिहाई से भी ज्यादा जनसंख्या "सपना चौधरी" से तो वाकिफ़ है, पर सुनीता नारायण से या उनकी लाभप्रद बातों से पूर्णतः या आंशिक रूप से अनभिज्ञ हैं या फिर जान कर भी अंजान हैं .. शायद ...

ख़ैर ! .. अभी का विषय इस शीतल पेय के गुण-अवगुणों के विश्लेषण करने का नहीं है, बल्कि इसके बहुचर्चित  'पंच लाइन' वाले विज्ञापन के रचनाकार को जानने का है। यूँ तो यह भी सर्वविदित है कि इसके रचनाकार हैं- प्रसून जोशी .. जोकि एक प्रसिद्ध हिन्दी कवि, लेखक, पटकथा लेखक होने के साथ-साथ भारतीय सिनेमा के गीतकार भी हैं। एक अजीबोग़रीब विडंबना है, कि हम फ़िल्मी गीतकारों की रचना को साहित्यिक मानने में प्रायः कोताही बरतते हैं। वैसे तो वह एक अन्तर्राष्ट्रीय विज्ञापन कंपनी "मैकऐन इरिक्सन" के कार्यकारी अध्यक्ष के साथ-साथ भारत के "फ़िल्म सेंसर बोर्ड" के भी अध्यक्ष हैं। फ़िल्म- "तारे ज़मीन पर" के गाने -

"मैं कभी, बतलाता नहीं पर अँधेरे से डरता हूँ मैं माँ 

यूँ तो मैं, दिखलाता नहीं तेरी परवाह करता हूँ मैं माँ 

तुझे सब है पता, है न माँ तुझे सब है पता.. मेरी माँ" ~~~~

के लिए उन्हें "राष्ट्रीय पुरस्कार" भी मिल चुका है।

अब थोड़ी-सी चर्चा कर ली जाए एक सर्वविदित व्यक्तित्व की। दूरदर्शन के 'सीरियल'- "हमराही" की "देवकी भौजाई", फ़िल्म - "दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे" की "बुआ जी", फ़िल्म - "हम आपके है कौन" की "डॉ रज़िया" के साथ-साथ "हप्पू की उलटन पलटन" जैसी वर्तमान में भी प्रसारित होने वाली 'टी वी सीरियल' के मुख्य क़िरदार हप्पू सिंह के "अम्मा जी" को भला कौन नहीं जानता-पहचानता भला यहाँ .. जो यूँ हैं तो एक 'स्कूल टीचर'- हरी दत्त भट्ट जी की 'आर्गेनिक केमेस्ट्री' में परास्नातक बेटी, परन्तु अपनी विधा के पारंगत और फ़िल्म- 'बैंडिट क्वीन' में "फूल सिंह" के क़िरदार के अलावा "अंतहीन", "तू चोर मैं सिपाही", "अब आएगा मजा" और "बाबुल" जैसी फिल्मों के अभिनेता रहे- ज्ञान शिवपुरी जी से प्रेम विवाह करके वह तथाकथित भारतीय (अंध)परम्परा के तहत हिमानी भट्ट से हिमानी शिवपुरी बन गयीं। उनके जिस नाम से ही आज हम सभी अवगत हैं। हालांकि आज वह विधवा हैं और आज भी वह बिंदास हास्य अभिनय कर रहीं हैं अनवरत, अथक।

अब संक्षेप में बात कर लेते हैं .. केरल कैडर से एक 'आईपीएस' की जो 'इंटेलिजेंस ब्यूरो' के 'चीफ' के पद से 'रिटायर' होने के बाद वर्तमान में अपने स्वदेश के सर्वविदित पाँचवे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं - अजित कुमार डोभाल जी की।

प्रसून जोशी, हिमानी शिवपुरी जी और अजित कुमार डोभाल जी ..तीनों के तीनों अपने अलग-अलग कार्यक्षेत्रों में माहिर हैं, प्रसिद्ध हैं .. पर तीनों में एक समानता है .. कि .. तीनों के तीनों ही उत्तराखण्ड (वे अपने-अपने जन्म के समय तत्कालीन उत्तरप्रदेश) राज्य के रहने वाले हैं। अजित कुमार डोभाल जी उत्तराखण्ड के गढ़वाल क्षेत्र के पौड़ी गढ़वाल से, हिमानी भट्ट उर्फ़ हिमानी  शिवपुरी जी वर्तमान राजधानी देहरादून से और प्रसून जोशी जी यहाँ के कुमाऊँ क्षेत्र के अलमोड़ा जिला से हैं।

अब आज तीनों की चर्चा एक साथ करने का मेरा उद्देश्य केवल यह बतलाना है, कि आज तीनों को पूरा देश जानता है। जानता है, ये तो आपको भी मालूम है। हमको भी मालूम है। पर यह बतकही उनलोगो के लिए है, जो क्षेत्रवादिता में मदान्ध अपनी नयी पीढ़ी को अपनी भाषा, अपनी संस्कृति बचाने की आड़ लेकर धीमी गति के विष दे रहे हैं। ऐसे में इनकी भाषा, संस्कृति जीवित रहेगी या नहीं पर नयी पीढ़ी की मानसिक बढ़त जरूर थम जायेगी .. मर-सी जायेगी .. शायद ...

जब कभी भी प्रसून जोशी लिखते हैं -

"मैं कभी, बतलाता नहीं पर अँधेरे से डरता हूँ मैं माँ 

यूँ तो मैं, दिखलाता नहीं तेरी परवाह करता हूँ मैं माँ 

तुझे सब है पता, है न माँ तुझे सब है पता.. मेरी माँ" ~~~~

तो वह पूरे भारत की माँ के लिए लिखते हैं .. भारत की हर माँ को सम्बोधित करते हैं। हिमानी शिवपुरी जी पूरे भारत की देवकी भौजाई प्रतीत होती हैं .. और अपने उत्कृष्ट  अभिनय से समस्त भारत का मनोरंजन करती हैं .. और जब अजित कुमार डोभाल जी स्वदेश की रक्षा के लिए कोई भी रणनीति तैयार करते हैं तो पूरे भारत के लिए, नाकि केवल उत्तराखण्ड के लिए। 

उपरोक्त सारी बतकही का लब्बोलुआब ये है कि प्रसून जोशी कुछ भी लिखते हैं तो पूरे भारत के लिए, हिमानी शिवपुरी जी कोई भी अभिनय करती हैं तो समस्त भारतवासी के मनोरंजन के लिए और अजित कुमार डोभाल जी रक्षा की बात सोचते हैं तो सम्पूर्ण भारत की सोचते हैं। तभी तो समस्त भारत ही क्या समस्त विश्व में भी लोग उनके नाम से वाकिफ़ हैं और इन क्षेत्रवादियों को सम्पूर्ण उत्तराखण्ड की वादियों में भी हर कोई नहीं जानता .. शायद ...

ये लोग कभी भी मदान्ध हो होकर केवल गढ़वाली, कुमाऊँनी, जौनसारी बोलने से ही अपनी संस्कृति बचने की बात नहीं करते या बाहरी राज्य वालों को 'एलियन' की तरह नहीं देखते या फिर नयी 'डोमिसाइल' योजना की बात नहीं करते .. "बड़ा" सोचते हैं .. विस्तृत सोचते हैं .. तभी "बड़े" (अमीर वाले बड़े नहीं) हैं .. क्षेत्रवादिता की संकुचित विचारधारा वालों को एक बार इस देव की नगरी- देवनगरी यानि चारों धाम को समाहित किये हुए शिव की नगरी वाले पावन राज्य में तथाकथित शिव की उपासना में पंडित नरेन्द्र शर्मा जी द्वारा रचित शिव भजन के मुखड़े "सत्यम् शिवम् सुन्दरम् ~~~" के साथ-साथ इसके अंतराओं -  

(१)

राम अवध में,काशी में शिव,

कान्हा वृन्दावन में,

दया करो प्रभु, देखूँ इनको,

हर घर के आँगन में,

राधा मोहन शरणम्,

सत्यम् शिवम् सुन्दरम् ~~~

                  और

(२)

एक सूर्य है, एक गगन है,

एक ही धरती माता,

दया करो प्रभु, एक बने सब,

सबका एक से नाता,

राधा मोहन शरणम्,

सत्यम् शिवम् सुन्दरम् ~~~

पर भी ध्यान केन्द्रित करके हमें पुनः अपने चिन्तन-मनन को विस्तार देना चाहिए .. शिव की जटा वाली उस गंगा की तरह जो बिना भेद किए विस्तार से सभी जाति-वर्ग और धर्म-सम्प्रदाय वालों के लिए कई राज्यों से होते हुए सदियों से अनवरत, अथक, निरन्तर, निःस्वार्थ बही जा रहीं हैं .. और शिव के जटा वाले उस चाँद की तरह जो बिना भेद किए ..  हम हरेक समस्त धरतीवासी को अपनी चाँदनी की शीतलता वर्षों से बिना भेद किए प्रदान किये जा रहा है .. शायद ...

हम सभी पूरी पृथ्वी के लिए धरती माता सम्बोधन व्यवहार में लाते हैं .. शायद केवल मौखिक रूप से .. वर्ना हम विदेशियों की तो बात छोड़ ही दें बंधु ! .. हम तो इतर राज्यों वालों के समक्ष स्वयं को "पहाड़ी" मान कर, सोच कर, बोल कर इतराते नहीं और सामने वाले से कतराते नहीं .. शायद ... वैसे तो यहाँ अन्य राज्यों की तरह आपस में भी भेद ही भेद हैं। उत्तरप्रदेश और हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ सर्वाधिक तथाकथित ब्राह्मणों वाले राज्यों में अकेले उत्तराखण्ड में लगभग पचहत्तर किस्म के ब्राह्मण हैं। इनके अलावा अन्य जातियाँ-सम्प्रदाय के लोग जो हैं , सो तो हैं ही। 

उपरोक्त सारी बतकही उन सभी राज्यों या स्थानों के लिए भी अक्षरशः सत्य हैं, जहाँ-जहाँ इस तरह का भेदभाव किया जाता है .. शायद ...

ख़ैर ! .. जाने भी दिजिए लोगों को .. लोग तो अपनी डफली - अपना राग के आदी हैं। हम भला क्यों राग-संगीत का मौका जाने दें अपने हाथों से .. जीवन भला है ही कितने दिन की .. है ना ? .. तो आइए .. सुनते हैं पहले प्रसून जोशी की रचना को, जिसे फ़िल्म- "तारे ज़मीन पर" के लिए संगीत से सजाया है शंकर-एहसान-लॉय की तिकड़ी ने और आवाज़ दी है इसी तिकड़ी में से एक स्वयं- शंकर महादेवन ने। साथ ही सुनते हैं ... पंडित नरेन्द्र शर्मा जी की रचना को जिसे फ़िल्म - "सत्यम् शिवम् सुन्दरम्" के लिए संगीतबद्ध किया था- लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जी की जोड़ी ने और आवाज़ से सजाया था- लता जी ने .. बस यूँ ही ...



( Both Videos Courtesy - @T-Series & @Music World respectively. )


Sunday, August 7, 2022

कभी तिमला, तो कभी किलमोड़ा ...



देखता हूँ .. अक़्सर ...

कम वक्त के लिए

पहाड़ों पर आने वाले

सैलानियों की मानिंद ही

कम्बख़्त फलों का भी

पहाड़ों के बाज़ारों में 

लगा रहता है सालों भर

आना-जाना अक़्सर।

आने के कुछ ही दिनों बाद 

जो हो जाते हैं बस यूँ ही छूमंतर।

चाहे बाज़ारें हों गढ़वाली देहरादून के 

या कुमांऊँ वाले पिथौरागढ़ या 

फिर हो बाज़ारें अल्मोड़ा के।

कभी काफल, कभी पोलम,

कभी खुबानी, कभी आड़ू,

कभी बाबूगोशा, कभी घिंगोरा,

कभी तिमला, तो कभी किलमोड़ा ये सारे।

मानो पहाड़ी पेड़-पौधों पर

और .. स्वाभाविक है तभी तो

पहाड़ी बाज़ारों में भी

टिकना जानते ही नहीं फल,

ख़ास कर काफल,

किसी बंजारे की तरह .. शायद ...  


और तो और ..

पहाड़ी आसमानों में

टिकते हैं कब भला

बला के बादल यहाँ।

फट पड़ते हैं अक़्सर

मासूम पहाड़ियों पर 

ढाने के लिए क़हर।

स्वयं पहाड़ों को भी तो 

है आता ही नहीं टिकना,

ख़ास कर बरसातों में

सरकते हैं परत-दर-परत,

होते रहते हैं बारहा यहाँ

भूस्खलन बेमुरौवत। 

और हाँ .. मौसम भी तो यहाँ

होते नहीं टिकाऊ प्रायः।

यूँ तो सीखने चाहिए रफ़्तार

गिरगिटों को भी रंग बदलने के,

एक ही दिन में

पल-पल में बदलने वाले

इन पहाड़ी मौसमों से,

जो करा देते हैं एहसास कई बार

गर्मी, बरसात और जाड़े के भी

एक ही दिन में क्रमवार .. शायद ... 


क्या मजाल जो ..

थम जाएँ, 

टिक पाएँ,

यहाँ बरसाती पानी भी

कहीं भी, 

कभी भी सड़कों पर।

तरस जाती हैं आँखें यहाँ

बरसाती झीलों वाले नज़ारों को

देखने के लिए नज़र भर।

पर .. साहिब ! ...

सुना है कि ..

अक़्सर  'टी वी ' पर

दिखने वाले किसी भी

टिकाऊ सीमेंट के

मनोरंजक विज्ञापनों की मानिंद ही

पहाड़ों के निवासियों के आपसी

या प्रायः प्रवासियों के साथ भी

या फिर यदाकदा

सैलानियों के संग भी

बनने वाले ..

रिश्ते ...

होते हैं टिकाऊ बहुत ही .. शायद ...

जिसे निभाते हैं ये जीवन भर .. बस यूँ ही ...