Monday, February 19, 2024

रति-निष्पत्ति के पड़ाव पर ...

ऐ कवि ! ..

कवि हृदय प्रेमी ! ..

यूँ रचते तो हो जब-तब,

जब कभी भी, कुछ भी,

श्रृंगार के नाम पर .. तो ..

यूँ रचते तो हो तुम

कभी मेरे नैनों को, 

काजल को, भवों को,

होंठों को, अधरों को, 

हँसी को, गालों को, 

अलकों को, गजरों को अक़्सर .. शायद ...


आते ही पास खो जाते हो 

पर इन सब से परे, 

फिसलते हुए 

मेरी ग्रीवा से हो कर ..

मेरी नलकिनी में, प्रलम्बों में 

रतिमंदिर में, नितम्बों में,

और होती है ... 

कामातिरेक में सम्पन्न 

श्वसन-स्पंदन की हमारी

आरोह से अवरोह तक की यात्रा

आकर रति-निष्पत्ति के पड़ाव पर .. शायद ...


रति, रति-निष्पत्ति ही तो हैं 

वज़ह हमारे पुरखों की,

भावी पीढ़ी की और

हमारी भी उत्पत्ति की।

फिर भला क्यों इस तरह ? ...

झूठे छलावे में जीते हो तुम,

हे प्रिये ! .. पारदर्शी बनो, 

स्वच्छ पानी की तरह।

पढ़ ली है बहुत तुमने अब तक 

तुलसी, कबीर, सूर, रहीम, रसखान, 

तनिक कर भी दो ना नज़र वात्स्यायन पर .. बस यूँ ही ...


8 comments:

  1. बदलाव आवश्यक
    सादर

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    1. जी ! .. नमन संग आभार आपका .. पर जो भी परिवर्त्तन या क्रांति होनी है .. हम से ही होनी है .. हम मतलब .. आप और हम .. पर उससे भी पहले हमलोगों की सोचों में परिवर्त्तन या क्रांति होनी होगी .. तभी .. शायद ...

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  2. महोदय, आपकी सोच सहजता से स्वीकार कर पाना आधुनिकता का दंभ भरते आज के समाज के लिए अब ही बहुत मुश्किल है।
    आप जिस अछूत विषय पर (अछूत विषय से मेरा तात्पर्य जिस विषय पर लोग चारदीवारी के भीतर भी बात करने से बचते हो) स्वस्थ मानसिकता वाले समाज की कल्पना को साकार करने का संदेश दे रहे हैं वो समय से बहुत आगे की सोच है।
    आशा है आपकी रचना पर मेरी समीक्षा को आप अन्यथा नहीं लेंगे।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २० फरवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. जी ! .. नमन संग आभार आपका मेरी तथाकथित "अछूत विषय " वाली बतकही को अपनी प्रस्तुति में परोसने की हिम्मत जुटाने के लिए .. रही बात अन्यथा लेने या ना लेने कि तो .. कदापि अन्यथा नहीं ले सकते .. वैसे भी आपकी समीक्षा में कोई भी अतिशयोक्ति या कटाक्ष नहीं है और .. अगर होता भी तो .. कोई आपत्ति नहीं होती, क्योंकि सभी को अपने-अपने दृष्टिकोण से निहारने का अधिकार है .. तभी तो दुनिया रंगीन है .. शायद ...

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  3. लीक से हटना इतना आसान कहां है ? शायद |

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    1. जी ! .. नमन संग आभार आपका .. लीक से हटना आसान तो है, बशर्ते .. हम लकीर का फ़कीर बनना बंद कर दें .. शायद ...
      उदाहरणस्वरूप .. कश्मीर से 370 का हटना और अयोध्या में राम मन्दिर का बनना .. लीक से हटने वाली सोच का ही परिणाम है .. शायद ...

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    1. जी ! .. नमन संग आभार आपका ...

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