दोहरे चरित्र वाले इंसानों की उपस्थिति हमारे हर समाज, मुहल्ले, गाँव, शहर, राज्य, देश, विदेश में प्रायः होती ही होती है .. शायद ...
मसलन .. कई दफ़ा रामनवमी के मौके पर निकलने वाली शोभायात्राओं में कई युवाओं या वयस्कों के मुँह में घुलते गुटखे, एक हाथ में सुलगते सिगरेट, दूसरे में नंगी तलवार .. और .. गुटखे चबाने वाले और धुएँ के छल्ले उगलने वाले उसी मुँह से चीख़ती हुई निकलती आवाज़ .. जय श्री राम.. देखने-सुनने के लिए मिलती है .. शायद ...
अक़्सर राहों से गुजरते वक्त सफ़ेद और लम्बी दाढ़ीधारी मौलाना 'टाइप' कुछेक इंसानों को सार्वजनिक स्थल पर या कई दफ़ा तो मस्जिद की चौखट या सीढ़ी पर बैठ कर बीड़ी फूँकते हुए देख लेने पर उन्हें हम तो टोक ही देते हैं। उनकी उम्र और मज़हब का लिहाज़ किए बिना कहना पड़ता है कि - " श्रीमान ! .. आप तो दो-दो गुनाह एक साथ कर रहे हैं .. एक तो आपके मज़हब के मुताबिक़ किसी भी तरह का नशा हराम है। दूजा अपने देश के संविधान के अनुसार सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान वर्जित और क़ानूनन अपराध भी है। "
ऐसे में सामने वाला कितना भी अक्खड़ वाला हो, अकड़ वाला हो, उनकी गर्दन झुक ही जाती है और बीड़ी या सिगरेट को जकड़ने वाली तर्जनी और मध्यमा उनके चूतड़ की पृष्ठभूमि में स्वतः चली जाती है या फिर शेष बची बीड़ी या सिगरेट उनकी उँगलियों की गिरफ़्त से आज़ाद हो कर झट से जमीन में पड़ी धूल चाटती हुई नज़र आने लगती है .. शायद ...
कई-कई बार तो प्रायः कई सज्जन पुरुष (नारी भी) स्वयं को किसी भी महापुरुष का अनुयायी स्वघोषित करते नज़र आ जाते हैं .. ख़ासकर 'सोशल मीडिया' पर। वह किसी एक महान व्यक्ति के अपने मन-हृदय में बसने की भी बात करते हैं, परन्तु व्यवहारिक रूप से वे उनके आदर्शों से कोसों दूर नज़र आते हैं .. शायद ...
तो क्या .. ऐसे दोहरे चरित्र वाले सज्जन इंसानों को सामने से टोकना या पीछे से दर्पण दिखलाना किसी हिंसा की श्रेणी में रखा जाएगा ? शायद नहीं .. तो आज से .. अभी से .. हम सभी को .. जब कभी भी ऐसे लोग नज़र आएँ तो उन्हें सामने से दिखें टोक कर, एक जागरूक नागरिक होने के नाते हमें अपना यथोचित कर्तव्य निभाने की कोशिश करनी ही चाहिए .. बस यूँ ही ...
ऐसे एक व्यक्ति को टोक कर उन्हें उनकी भूल और साथ ही शर्मिंदगी का एहसास कराना .. हमारे-आपके द्वारा हर वर्ष 'व्हाट्सएप्प' पर भेजे जाने वाले 'कॉपी & पेस्ट' वाले 'हैप्पी रिपब्लिक डे' या 'हैप्पी इंडिपेंडेंस डे' जैसे सैकड़ों 'मैसेजों' से कई गुणा बेहतर है .. शायद ...
अभी हाल ही में एक प्रसिद्ध स्वयंसेवी संस्थान (जिनका यहाँ नाम लेना उचित नहीं .. शायद ...) द्वारा एक सरकारी विद्यालय की चहारदीवारी के भीतर परती जमीन में आयोजित वृक्षारोपण कार्यक्रम में शामिल होने का मौका मिला, तो कार्यक्रम के दौरान वहाँ उपस्थित कुछ स्वयंसेवकों को बाहरी चिलचिलाते धूप से बचने के लिए एक कार के भीतर बैठ कर "चखने" के साथ मद्यपान करते और कार से बाहर धूम्रपान करते देख कर .. तो हमारा मन विचलित-सा हो गया .. तत्क्षण सोचने लगा कि दुनिया में ना जाने ऐसे कितने सारे दोहरे चरित्र वाले सज्जन लोग भरे पड़े हैं .. शायद ...
इन विसंगतियों से भरी आबनूसी काली अँधेरी रात में ज्यादा कुछ नहीं तो कम से कम हम एक जुगनू तो बन ही सकते हैं .. शायद ... ऐसी ही सारी विसंगतियों से भरी घटनाओं से अभिप्रेरित होकर मन में ऊपजी कुछ तुकबन्दियों वाली बतकही आपके समक्ष है .. बस यूँ ही ...
मस्जिदों की सीढ़ियों पर ...
कई सनातनियों के मुख से यूँ निकलते तो हैं जय श्री राम,
उसी मुख के गुटखे हैं बनाते दीवारों-सड़कों को पीकदान ?
जाने क्यूँ बन्दे ख़ुदा के ख़ुद को कहने वाले यूँ कुछ इंसान,
प्रायः बैठे मस्जिदों की सीढ़ियों पर करते हैं भला धूम्रपान ?
हों जिनके आदर्श, करने वाले बकरी के दूध का दुग्धपान,
भला करते हैं क्यों और क्योंकर वे महान जन मदिरापान ?
करते हैं क्यों हर बात में अमित्र करने की बात कई इंसान,
जो कहते हैं स्वयं को हर बार अहिंसा-पुजारी के कद्रदान ?
सोचो-सोचो जीते जी, करो भलाई किसी अमित्र की भी,
मरने पर ना जा के क़ब्रिस्तान, ना श्मशान, करके देहदान।
"कई-कई बार तो प्रायः कई सज्जन पुरुष (नारी भी) स्वयं को किसी भी महापुरुष का अनुयायी स्वघोषित करते नज़र आ जाते हैं .. ख़ासकर 'सोशल मीडिया' पर। वह किसी एक महान व्यक्ति के अपने मन-हृदय में बसने की भी बात करते हैं, परन्तु व्यवहारिक रूप से वे उनके आदर्शों से कोसों दूर नज़र आते हैं .. शायद ..."
ReplyDeleteशायद नहीं पक्का | मुझ पर लागू होता है १००% आभार | :)
और ये तो २०० %
Delete"हों जिनके आदर्श, करने वाले बकरी के दूध का दुग्धपान,
भला करते हैं क्यों और क्योंकर वे महान जन मदिरापान ?"
जी ! .. नमन संग आभार आपका ...
Deleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteकटु यथार्थ, मानवीय मन और व्यवहार का गहन अवलोकन..।
ReplyDeleteसादर
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ३१ अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी ! .. नमन संग आभार आपका ...
Deleteआदरणीय सर, आपका यह लेख बहुत ही सशक्त और विचारपरक है जो हमारे समाज की बुराइयों पर प्रहार है। सत्य है हम भारतवासी अपनी आध्यात्मिकता और धार्मिक संस्कारों को भुला कर, केवल कर्मकांडी और साम्प्रदायिक हो गए हैं। मुझे याद है एक बार जब अपने परिवार के साथ जगन्नाथ पुरी के दर्शन करने गयी थी, वहाँ देखा तो मन्दिर के मुख्य द्वार और दरवाजों पर भी पान थूकने के छीटे थे देख कर मन बहुत विचलित हो गया। सोंचा कि हर वह स्थली जो भक्ति और आध्यात्मिकता के लिए जानी जाती है, वह इतनी अव्यवस्थित और अस्वच्छ कैसे हो सकती है ।यही हाल कृष्ण भूमि वृन्दावन का भी है। वृन्दावन में कहीं हरियाली शेष नहींबची और मन्दिरों के रास्ते में खुले हुए नाले मिलते हैं।आपका यह लेख हम सभी को जागरूक कर रहा है इस लेख के लिए हार्दिक आभार एवं पुनःप्रणाम।
ReplyDeleteजी ! .. नमन संग आभार आपका ...
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteजी ! .. नमन संग आभार आपका ...
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