आज अपनी बतकही - "नीयत संग नज़रिया ..." के पहले एक छोटी-सी बात ... अक़्सर हमारे सभ्य समाज में टीवी पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों को देखने के आधार पर, उसे देखने वाले उन दर्शकों की मानसिकता या उनके वर्ग का वर्गीकरण भी हम लोग झट से तय कर लेते हैं .. शायद ...
मसलन - 'स्टार स्पोर्ट्स चैनल' देखने वाले युवा या वयस्कों को समाज में सभ्य माना जाता है। पर हर बार इस मुखौटेधारी समाज में, यह सच नहीं होता है। वहीं लोगबाग 'फैशन चैनल' देखने वाले युवा या प्रौढ़ वर्ग को बड़े ही व्यंग्यात्मक ढंग से देख कर मुस्कुराते हैं .. शायद ...
मानो .. उनकी मुस्कान बोल रही हो कि .."बच्चू, तुम भी चरित्रहीन ही हो, जो ये सब ... " अभी तो लोग तपाक से वर्तमान में चर्चित .. "कुंद्रा" नामक उपनाम का हवाला देकर और भी हिक़ारत भरी नज़रों से देख कर मुस्कुराते हैं; पर इस बार भी इस मुखौटेधारी समाज में, यह सच नहीं होता है .. शायद ...
अब जरूरी तो नहीं कि रामायण पढ़ने वाला या टीवी पर उसे 'सीरियल' की शक़्ल में देखने वाला हर इंसान राम ही हो और महाभारत देखने वाला कोई इंसान कौरव ही हो .. शायद नहीं .. बस यूँ ही ...
नीयत संग नज़रिया ...
'टीवी' के पर्दे पे,
साथ चाय की चुस्की के,
'स्टार स्पोर्ट्स चैनल' पर
'स्लीवलेस स्पोर्ट टी-शर्ट' के
साथ-साथ 'मिनी स्कर्ट' में
'बैडमिंटन' खेलती गाहे-बगाहे,
"पुसर्ला वेंकट सिंधु",
या "साइना नेहवाल"
या फिर "कैरोलिना मारिन" के
और कभी 'शॉर्ट्स' में "एश्ले बार्टी"
या 'स्कॉर्ट्स' में खेलती
"कैरोलिना प्लीस्कोवा" जैसी
'विम्बलडन' प्रतियोगियों के,
शायद .. केवल खेल ही हैं दिखते,
संग-संग 'शॉट्स', 'स्ट्रोक', 'शटल' या
'टेनिस बॉल' या फिर 'स्कोर बोर्ड' के।
ना कि .. तर-बतर पसीने से
अर्द्धनग्न उघड़े अंग उनके।
हो अगर .. सही नीयत संग
नज़रिया हम सभी के .. शायद ...
उलट मगर इसके,
'फैशन चैनल' पर 'टीवी' के,
अक़्सर .. 'कैट वॉक' करती
'रैंप' पे या फिर दिखने वाली
मदमायी भंगिमाओं में
'मॉडल्स' सह 'कैलेंडर गर्ल्स' -
"नटालिया कौर" या
"नरगिस फाखरी" या फिर ..
"एयशा मैरी" के
अर्द्धनग्न बदन उघड़े,
कभी गीले, तो कभी सूखे,
उनके बदन के बदले,
परिदृश्य में दिखती हैं हमें
प्रायः झीलों, सागरों, पहाड़ों,
वनों, फूलों-लताओं, पौधे-पेड़ों
इत्यादि वाली प्राकृतिक सौन्दर्य की
या नायाब वास्तुकला के नमूने वाली
कई सारी छटाएँ मनभावन।
हो अगर .. सही नीयत संग
नज़रिया हम सभी के .. शायद ...
नमस्कार सर, बहुत अच्छी बातें कही है आपने,लेकिन कहा जाता है न "जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी" किसी की बातों से उसके चरित्र को पहचानना आज के समय मे बहुत मुश्किल हो गया है।जो दिखता है जरूरी नही की हर बार वो सच ही हो ,आँखों का धोखा भी हो जाता है कभी कभी । हम लोगो के लिए या कह सकते है अपने लिए एक धारणा बना लिए है सही गलत का ।
ReplyDeleteजी ! शुभाशीष संग आभार तुम्हारा .. "सही" और "गलत" का पैमाना, सदियों से .. ये तथाकथित समाज ही तय करता आया है, चाहे चरित्र हो, आचरण हो या ओहदा हो .. शायद ...
Deleteसटीक बात । नियत सही तो नज़रिया भी सही अन्यथा तो हर कोई सोचने समझने के लिए स्वतंत्र ही है ।
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteहमारे क्षेत्र में कहीं-कहीं ठेठ भाषा में अक़्सर अलमस्त लोग मस्ती में ये बोलते पाए भी जाते हैं, कि ...
"भाड़ में जाए दुनिया,
हम बजाएं हरमोनिया। (हारमोनियम)"
(😃😃😃 वैसे हम ये नहीं कह रहे .🙉🙉🙉).
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ६ अगस्त २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteबहुत सुंदर और सटीक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteबढ़िया लिखा सुबोध जी | नज़र का नहीं नजरिये का दोष है |सच है --- जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी//
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteस्टार स्पोर्ट्स चैनल' देखने वाले युवा या वयस्कों को समाज में सभ्य माना जाता है। पर हर बार इस मुखौटेधारी समाज में, यह सच नहीं होता है। वहीं लोगबाग 'फैशन चैनल' देखने वाले युवा या प्रौढ़ वर्ग को बड़े ही व्यंग्यात्मक ढंग से देख कर मुस्कुराते हैं। सही कहा अब मुखौटाधारी समाज में पहचानना मुश्किल हो गया है सभ्य और सभ्यता को...पता नहीं कौन सी नजर का कैसा नजरिया हो....।
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका .. वैसे ये "अब" क8 बात नहीं है, बल्कि हर कालखंड में ऐसे लोग रहे हैं, बस उस कालखंड के मुखौटेधारियों का स्वरुप अलग रहा है .. शायद ...
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