(1)
धाराएँ
नदियों की हों
या कानून की,
लागू ना हों,
यदि
सच्चे और
अच्छे ढंग से
तो बेकार हैं .. शायद ...
धाराएँ
दोनों की ही,
कभी
498-ए की तरह
मूक या फिर
18-ए जैसी
वाचाल हों,
तो बेकार हैं .. शायद ...
【भारतीय दंड संहिता की धारा - 498A & 18A धाराएँ . (Sections 498A & 18A of Indian Penal Code (IPC) 】.
(2)
अनवरत
हैं तर तेरी
यादों की
तरलता से
सोचें
हमारी ..
मानो ..
धाराएँ
नदियों की
हो धमनियाँ-सी,
अपनी
धरा की ...
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 08 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी! नमन संग आभार आपका ...
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteअत्यन्त प्रभावी क्षणिकायें..
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteवाह! सत्य एवं सुंदर।
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteधाराएँ तो बहा दी आपने , सोच की भी प्रेम की भी और कानून की भी । बस कानून की धाराओं के ज्ञान नहीं । जिनकी आपने बात की यदि व्व कानूनी धाराएँ स्पष्ट होतीं तो कुछ समझ पाते ।
ReplyDeleteचित्र खूबसूरत हैं ।
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteभारतीय दंड संहिता की धारा - 498A :-
विवाहित महिला को उसके पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा घर में प्रताड़ित करने, क्रूर दंड, यातना या उत्पीड़न देने और दहेज के लिए उसे प्रताड़ित करने जैसे जघन्य कार्यों के लिए सजा देने हेतु यह धारा लागू होती है, जो कि कम ही लागू हो पाती है। इसीलिए यह धारा मूक-सी ही है .. शायद ...
भारतीय दंड संहिता की धारा - 18A :- "एससी-एसटी (SC/ST) अत्याचार संशोधन कानून" में यह धारा जोड़ी गई है, जिसके अनुसार इस कानून के उल्लंघन करने वालों के खिलाफ एफआईआर (FIR) दर्ज करने से पहले ना तो जाँच की जरूरत होती है और ना ही जाँच-अधिकारी को आरोपी की गिरफ्तारी से पहले किसी की इजाजत लेने की आवश्यकता पड़ती है। यानी आपके बारे में किसी SC या ST ने झूठी शिकायत भी कर दी तो, पहले आप अंदर, जाँच बाद में होगी। इसीलिए ये प्रथमदृष्टया तो वाचाल और बवाल की वजह ही नज़र आती है .. शायद ...
(चित्र तो, स्वयं के Mobile की Gallery के Camera वाले कनस्तर से ही साझा करता हूँ .. बस यूँ ही ...)
ये कानून तो पता थे पर धारा नंबर से अनभिज्ञ थी ।
Deleteकानून शायद इसी लिए बनाए जाते कि उनको तोड़ा जाय । वैसे भी सही लाभ नहीं बल्कि नाज़ायज़ लाभ उठाया जाता है । शुक्रिया सुबोध जी बेहतरीन जानकारी के लिए ।
जी ! .. "समरथ कहुँ नहिं दोषु गोसाईं।" (रबि पावक सुरसरि की नाईं॥) - इन पंक्तियों में तुलसीदास व्यवहारिक लगते हैं .. आज भी वही चरितार्थ हो रहा है- समर्थ को नहीं दोष गोसाईं .. शायद ...
Deleteयादों की तरलता से तर सोचें ! सुंदर भावपूर्ण सृजन
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
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ReplyDeleteजी! नमन संग आभार आपका ...
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