Monday, October 7, 2019

बेआवाज़ चीखें

दिखती हैं अक़्सर
फूलों की अर्थियां
दुकानों .. फुटपाथों
चौक-चौराहों पर
चीख़ते .. सुबकते
पड़े बेहाल ..
बेजान फूल ही
चढ़ते यहाँ
बेजान 'पत्थरों' पर ...

हम लोग तो हैं
श्रद्धा-सुमन से ही
अंजान .. बेख़बर
सिसकते हैं फूल भी
डाली से टूटकर
बेआवाज़ चीखें
मछलियों-सी इनकी
बलिवेदीयों पर कटती
गर्दनों से नहीं हैं इतर ...


6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 08 अक्टूबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बिलम्ब से आभार प्रकट करने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ यशोदा जी ...नमन आपको ...

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (08-10-2019) को     "झूठ रहा है हार?"   (चर्चा अंक- 3482)  पर भी होगी। --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    श्री रामनवमी और विजयादशमी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. हार्दिक आभार आपका ....

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  3. सम्पूर्ण सार को इन संक्षिप्त शब्दों में

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