Thursday, October 19, 2023

पुंश्चली .. (१५) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)


प्रत्येक वृहष्पतिवार को यहाँ साझा होने वाली साप्ताहिक धारावाहिक बतकही- पुंश्चली .. (१) से पुंश्चली .. (१४) तक के बाद पुनः प्रस्तुत है आपके समक्ष पुंश्चली .. (१५) .. (साप्ताहिक धारावाहिक) .. बस यूँ ही ...  :-


गतांक का आख़िरी अनुच्छेद :-

अलग से सभी के हिस्से के अतिरिक्त लाने लगा था। 

धीरे-धीरे पन्तुआ की चाशनी की मिठास इनके यानी तेईस साल के रंजन और बीस वर्षीया तरुणी अंजलि के भावनात्मक सम्बन्धों पर तारी होती चली गयी थी और परिणामस्वरुप दोनों ने एक मंदिर में प्रेम विवाह कर लिया था। जिसका विवरण हमलोग पहले ही पढ़ चुके हैं। इस शादी से अंजलि के संरक्षक- मेहता जी नाख़ुश थे, इसी कारण से वे इन दोनों की शादी में शामिल नहीं हुए थे। 


गतांक के आगे :-

मेहता जी की इस नाराज़गी की वजह किसी आम भारतीय अभिभावक की तरह .. उनकी संतान के अन्तर्जातीय प्रेम-विवाह कर लेने पर समाज में जगहँसाई वाली नहीं थी, बल्कि उनके पैसों से पोषित एक मजदूरिन के छीन जाने की थी। जो उनके घर और स्कूल दोनों ही जगह खटती रहती थी।

मेहता जी की बस इतनी ही मेहरबानी रही कि रंजन के गुजर जाने के बाद अंजलि के पास कोई भी जीवकोपार्जन के साधन ना रहने पर और उसके अपने स्वाभिमानी स्वभाव के कारण कुछ ही दिनों बाद मन्टू की आर्थिक मदद ना लेने के लिए हठ करने पर, जब मेहता जी आगे अंजलि और उसके तीन वर्षीय अम्मू के लिए मन्टू के गिड़गिड़ाने पर अंजलि को अपने स्कूल में सहायिका के रूप में रखने के लिए तैयार हो गए थे।

यूँ तो वह बाद में अंजलि को अपने घर में भी दुबारा रखने के लिए मन बना लिए थे। पर तब अंजलि ने साफ़-साफ़ मना कर दिया था। वह उनके स्कूल में मासिक वेतन पर नौकरी कर के ही संतुष्ट थी या यूँ कहें कि वह अपने बेटे के साथ पीढ़ी-दर-पीढ़ी बंधुआ श्रमिक बनना नहीं चाहती है। उसे अपने और रंजन की आख़िरी निशानी .. अपने अम्मू के भविष्य की चिन्ता है। वह जानती है कि अगर वह दोबारा मेहता जी के घर गयी तो उसके साथ-साथ उसका अम्मू भी एक मज़दूर बन कर रह जाएगा। 

मेहता जी में लाख बुराई के बावजूद उनकी एक और रहम-ओ-करम के लिए तो उनकी तारीफ़ तो करनी ही चाहिए कि उन्होंने अपनी तरफ से अम्मू की पढ़ाई के लिए उनके स्कूल में पढ़ने तक किसी भी तरह के शुल्क से मुक्त कर दिया है। यह भी परोक्ष रूप से अंजलि के लिए एक आर्थिक सहायता ही है, जिससे उसका स्वाभिमान भी चोटिल नहीं होता है।

यूँ तो अंजलि अपने जीवन में रंजन के जीते जी और अचानक चले जाने के बाद भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कई तरह के सहयोग का एहसानमंद है मन्टू का। उस के इस घर में आने से भी पहले रंजन का भी जाने-अन्जाने बहुत ही बड़ा हितैषी रहा है मन्टू। इन सारी बातों से शनिचरी चाची भली-भाँति अवगत हैं। पर स्वयं मन्टू को ही किसी के लिए भी किया गया उसका कोई भी सहयोग याद नहीं रहता है। उसे तो बस और बस आज भी केवल रज्ज़ो की ही याद आती रहती है। 

रज्ज़ो .. मतलब मन्टू के बचपन की पड़ोस में रहने वाली रजनी .. तब मन्टू पाँच साल का रहा होगा, जब रजनी के घरवाले मन्टू के बगल में एक मज़बूर परिवार से उसका बना -बनाया मकान खरीद कर रहने आ गये थे। 

दरअसल उस मकान के मूल मालिक की तपेदिक की चिकित्सा के कारण अत्यधिक उधार हो गये थे। एक तो उस दम्पति की कोई सन्तान ना थी और तपेदिक के कारण उस घर का मालिक कोई भी काम करने लायक नहीं रह गया था। जब ठीक था, तब तो एक किराने की दुकान में साधारण-सी नौकरी कर के अपना और अपनी पत्नी का पेट भर लेता था। रहने के लिए एक साधारण-सा परन्तु पुश्तैनी मकान तो था ही। 

यूँ तो उसकी पत्नी साँवली-सी पर .. गदराए तन के साथ-साथ तीखे नयन और नाक-नक़्श की मालकिन थी। मुहल्ले के मनचले उसके घर के आसपास या यूँ कहें कि उसके आसपास मंडराते रहते थे। लगभग तीस-बत्तीस वर्षीया उस औरत की शारीरिक भूख या मानसिक यौन इच्छाओं जैसी भी कोई समस्या रही होगी, जो अन्य भूख या इच्छाओं के समान ही होती है और जिसे हमारा सभ्य-सुसंस्कृत समाज बुरी बात मान कर या कह कर सिरे से नकारते हुए, उस विषय पर बात करने से भी कतराता है। 

जिस समस्या का तपेदिक से पीड़ित उसके पति के पास कोई हल नहीं रहा होगा .. तभी तो वह अपने बीमार पति  की सेवा-शुश्रूषा और चूल्हा-चौका को शीघ्र ही निपटा कर, फ़ुर्सत के वक्त अपने दरवाज़े की चौखट पर बैठ कर मुहल्ले के कई मनचलों के साथ अक़्सर हँसी-ठठ्ठा करती नज़र आती थी। उन्हीं में से एक के साथ उसका कुछ ज्यादा ही मेल-मिलाप था। 

वही विशेष चहेता मनचला कई दफ़ा रात के अँधियारे में या कभी-कभार तो साँझ में भी मुहल्ले भर की बिजली गुल रहने का फ़ायदा उठाते हुए उसके घर में आता-जाता दिख जाता था। जब कभी बिजली विभाग द्वारा दैनिक समाचार पत्र में सप्ताह भर या माह भर के लिए शाम में एक निश्चित समय के लिए 'लोड शेडिंग' की घोषणा की जाती थी, तो मुहल्ले भर के लोग उस घोषित समय से पहले ही अपने शाम का सारा काम पूरा करके मोमबत्ती और लालटेन की तैयारी करके बैठ जाते थे। बच्चे लोग भी अपना 'होमवर्क' पूरा कर लेते थे। मुहल्ले भर की सभी गृहणियाँ चूल्हा-चौका भी 'लोड शेडिंग' के पहले पूरा कर लेती थीं और ऐसे मौकों पर उधर उस मनचले के साथ-साथ उस औरत की भी तो मानो 'लॉटरी' निकल आती थी। उन दोनों का वश चलता तो सालों भर 'लोड शेडिंग' करवा देते .. शायद ...

अंततः उधार चुकाने के लिए और आगे की चिकित्सा व जीवकोपार्जन के लिए मन पर पत्थर रख कर उन्हें अपने इस पुश्तैनी घर का सौदा करना ही पड़ा था। मकान के बदले मिले रुपयों के अधिकांश हिस्से से सारे उधार देने वालों का मुँह चुप कराया दोनों ने और उसके बाद वे दोनों अपने पुश्तैनी घर से और मुहल्ले से भी निकल कर चले गए थे। बाद में पता चला था, कि शहर की आबादी से दूर कम किराए पर एक कोठरी वाली गृहस्थी में दोनों जीवन गुजारने लगे थे।

तब पाँच साल का मन्टू और उस वक्त की तीन वर्ष की रजनी एक ही स्कूल में पढ़ने जाते थे। एक ही रिक्शा गाड़ी पर बैठ कर दोनों स्कूल जाते थे। 

मानव नर और मादा को अपने बचपन में अपने शारीरिक बनावट में दिखने वाले जनन तंत्र के अंतर से ऊपजी उत्सुकता उनकी बढ़ती उम्र के साथ-साथ शनैः-शनैः ... अंतर और उत्सुकता दोनों ही बढ़ती जाती है। 

वक्त के साथ-साथ वे दोनों ही तथाकथित 'टीन ऐज' के गलियारे में चहलकदमी करने लगे थे। स्कूल से घर आ जाने के बाद भी रजनी गणित का या विज्ञान के किसी कठिन सवाल को लेकर मन्टू के पास उसके घर पर समझने के बहाने चली आती थी। कभी भूगोल या संस्कृत सम्बंधित भी। 

उस वर्ष सिनेमा हॉल में आयी फ़िल्म- आशिक़ी-2 के गाने ने दोनों के कच्चे मन में जली प्रेम (?) की पक्की आग में लोहबान-गुग्गल की तरह सुगन्धित ज्वलनशील सामग्री की तरह काम किया था .. "सुन रहा है ना तू , रो रही हूँ मैं ~~~~" ... सिनेमाघर की कुर्सी पर बैठे किशोर-किशोरी का ना जाने कब सिनेमा के पर्दे पर दिख रहे नायक-नायिका के चरित्र में पदार्पण हो जाता है .. कमरे में बैठे-बैठे भी कई बार उस देखी गयी फ़िल्म के गाने की आवाज़ की तरंगों पर ही सवार होकर तथाकथित प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे की बाँहों में समा जाने का सुख पा जाते हैं .. और पास बैठे घर-परिवार वालों को इसका भान तक भी नहीं हो पाता है .. शायद ...

【 आज बस .. इतना ही .. अब शेष बतकहियाँ .. आगामी वृहष्पतिवार को ..  "पुंश्चली .. (१६) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" में ... 】