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Monday, August 2, 2021

चंचल चटोरिन ...

ऐ ज़िन्दगी !
मेरी जानाँ ज़िन्दगी !!
जान-ए-जानाँ ज़िन्दगी !!!

चंचल चटोरिन 
किसी एक
बच्ची की तरह
कर जाती है,
यूँ तो तू चट 
चटपट,
मासूम बचपन 
और ..
मादक जवानी,
मानो किसी 
'क्रीम बिस्कुट' की 
करारी, कुरकुरी, 
दोनों परतों-सी।

और फिर .. 
आहिस्ता ...
आहिस्ता ....
चाटती है तू
ले लेकर
चटकारे,
लपलपाती, लोलुप
जीभ से अपने,
गुलगुले .. 
शेष बचे बुढ़ापे के 
'क्रीम' की मिठास,
मचलती हुई-सी,
होकर बिंदास .. बस यूँ ही ...



Thursday, May 7, 2020

मेरे हस्ताक्षर में ...

हाशिए
पर पड़ी
ज़िन्दगी
उपेक्षित
कब होती
है भला !?
बोलो ना ...
सखी ..

संपूर्ण
पन्ने का
मूल्यांक
और
मूल्यांकन व
अवलोकन को
सत्यापित
करते
हस्ताक्षर
ये सभी तो
होते हैं
हाशिए पर ही ...

फिर .....
हाशिए
पर पड़ी
ज़िन्दगी
उपेक्षित
हो सकती है
कैसे भला ?
बोलो ना ...
सखी ..

मैं हूँ भी
या नहीं
हाशिए पर
तुम्हारे
जीवन के
पन्नों के

किन्तु
कागज़ी
पन्नों के
हाशिए पर
चमकता है
बार-बार
अनवरत
गूंथा हुआ
तुम्हारा नाम
मेरे नाम
के साथ
आज भी
मेरे हस्ताक्षर में ...

हाँ ..
आज भी
हाँ ...
सखी ..
आज भी ...