Thursday, November 6, 2025

शब्दकोश है शून्य .. शायद ...


हे नर ! .. 
हे तथाकथित पति परमेश्वर !
हर बार मछली का मुड़ा
या मछली की फ्राई पेटी,
बकरे के पुठ वाला पर्चा
या शोरबे से चुनी हुई कलेजी 
या फिर .. घी-प्याज़ में तली हुई 
कलेजियाँ सारी की सारी ही।
सुगन्धित बिरियानी के साथ 

ज़्यादा से ज़्यादा बिरिस्ता, 

और हर बार मुर्गे का लेग पीस भी।

गाढ़ी दाल के ऊपर-ऊपर तैरता घी,

ये सब है वो परोसती,

विशेष रूप से थाली में तुम्हारी,

कभी चखना के तौर पर

या तो .. भोजन के लिए कभी।

दही जब भी तो .. कटोरा भरा, 

वो भी छाली से अंटा पड़ा,

रात में भर गिलास जब कभी दूध भी,

तो डाल कर मलाई पूरे पतीले की।

ये सब है उसका प्यार तुम्हारे लिए 

या फिर सम्मान है तुम्हारे लिए,

क्योंकि .. 

ब्याह लाए हो उसे तुम

साथ इक भीड़ की गवाही के,

तो तुम बन गए हो उसके ..

तथाकथित पति परमेश्वर,

या ख़ुदा जैसे ख़ाविंद।

है ना ? .. 

हे चराचर के स्वघोषित सर्वोत्तम चर जीव- नर !


पर बदले में इन सब के 

परोसा है क्या ही सब तुमने समक्ष उसके,

रात के नितांत एकांत में ?

सिगरेट की दुर्गन्ध से गंधाता अपना मुँह,

शराब की बदबू से बसाती अपनी साँसें,

खैनी या गुटखे की बदबूदार 

बजबजाती अपनी लार

और कामोत्तेजक अकड़े उसके बदन को

मिलने वाले चरमसुख से पहले ही 

स्वयं का शीघ्रपतन वाला स्खलन,

जो रति क्रीड़ा कम, 

लगती है उसे पीड़ा ज़्यादा।

तदोपरांत खर्राटेदार निढाल अपना बदन,

बिस्तर के चादर पर लिजलिजी सीलन 

और उस पर उसका सुलगता तन-मन।

और हाँ .. शब्दकोश है शून्य 

या यूँ कहें कि .. सुन्न है तुम्हारी,

पूर्व लैंगिक गतिविधियों से भी,

क्योंकि बतलाया ही नहीं तुम्हें कभी 

ना तो परिवार-समाज ने और .. 

ना ही किसी सिलेबस ने भी कभी।

यूँ झेलती है प्रायः हर रात वो

तुम्हारी बदबूदार बजबजाती 

लार से लेकर लिजलिजे वीर्य तक।

ऐसे में लगने लगते हो तुम 

मन को उसके ..

पति कम, पतित ज़्यादा,

ख़ाविंद कम, ख़ब्ती ज़्यादा ..शायद ...

नहीं क्या ? .. बोलो ना ! .. 

हे नराधम नर ! .. बस यूँ ही ...


{ आज की बतकही पूर्णरूपेण समर्पित है, उन नारियों की कसक को, जो पेशे से तथाकथित आम गृहलक्ष्मी हैं।

भूले से अगर वो सात्विक भी हैं, तब तो उनके लिए ये बतकही कुछ ज़्यादा ही समर्पित है। 

बशर्ते .. उन नारियों में से जिस किसी के भी तथाकथित पति परमेश्वर या ख़ुदा जैसे ख़ाविंद तमाम उपरोक्त व्यसनों के या उनमें से किसी भी एक व्यसन के आदी हों। 

वैसे तो .. इस बतकही के केन्द्र में केवल बानगी के तौर पर ही एक मांसाहारी दम्पती का चयन किया गया है। परन्तु .. अगर चिंतन किया जाए तो .. कम-से-कम किसी मानव के लिए तो .. मांसाहार भी एक व्यसन ही है .. शायद ...

ये बतकही श्रद्धांजलि (?) भी है .. दुनिया के उन तमाम व्यसनों को और उन व्यसनी पतियों को भी। साथ ही .. उनसे कुछ सवाल भी .. बस यूँ ही ... }


[ कोलाज हेतु चित्र साभार :- सालारजंग संग्रहालय एवं शिल्परामम आर्ट & क्राफ्ट विलेज, हैदराबाद। ]

1 comment:

  1. सबकुछ तो आपने लिख दिया रचना का अर्थ सहित विश्लेषण भी।
    परिस्थितियों से घिरी एक स्त्री की मनोदशा का
    मर्मस्पर्शी चित्रण करना एक पुरुष की क़लम से,सचमुच संवेदनशील मन का परिचायक है।
    बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ नवंबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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