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Saturday, January 4, 2020

ये कैसी है दुआ ..

अम्मा !
सुना है दुनिया वालों से हमेशा कि ..
है तुम्हारी दुआओं में बहुत असर
क्यों लगाती हो मुझे भला फिर
तुम काजल का टीका कि ..
लग जाएगी मुझे ज़माने की नज़र
और काम भी क्या उस
मूरत का भी जो भला
मूक रहता है, आता है
जब-जब भी क़ुदरत का क़हर ...

माना ..
है तुम्हारी दुआओं में बहुत असर
तो बतलाओ ना भला फिर
सफ़दर की अम्मी की दुआ उस
पहली जनवरी को हो गई थी क्या
अपाहिज़ या फिर अंजान .. बेखबर
या उस दिन निर्भया की माँ और ..
आसिफा की अम्मी की दुआ
हो गई थी क्या निकम्मी या
फिर हो गई थी बेअसर ...

बोलो ना अम्मा !
मान लूँ कैसे भला कि ..
है तुम्हारी दुआओं में बहुत असर
भगत सिंह जैसे शहीदों की
माँओं की दुआएँ क्या
भटक गई थीं राहें या
थीं उनकी दुआएँ ही कमतर
हरएक गुलामों की ग़ुलाम माँओं का जीवन
जीने हेतु ही तथाकथित विधाता ने
बनाया ही है क्या बद से बदतर ...

अम्मा !
बतलाओ ना जरा
ये कैसी है दुआ ..
ये कैसा है विधाता ...
जो कभी अनदेखी है करता ..
तो कभी मुँहदेखी है करता..
दोनों ही बतलाते है धत्ता बारहा
और .. साथ देते हैं सदैव इनका
देखा है .. पंडित और मुल्ला यहाँ
पिछले जन्मों के बुरे कर्मों का
बुरा फल बतला कर अक़्सर ...