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Saturday, May 25, 2019

बुद्ध

सिद्धार्थ से बुद्ध ... या ...
गौतम बुद्ध तक का सफ़र तय करके
तुम्हारे महानिर्वाण के वर्षों बाद
दिया गया था ज़हर सुकरात को
पीया भी उसने अकेले ही
पर बुद्ध ! ..तुमने स्व के यज्ञ में
दो मासूम मन की आहुति दी
छीनकर यशोधरा से पति का प्यार
और राहुल से पिता का स्नेह
नारी का त्यागकर
तुमने संसार का मानो मोह त्यागा
पर बताओ न तनिक
कहाँ तुम पा सके ज्ञान यात्रा में
नारी की छाया के बिना
कभी सुजाता की खीर का शर्करा,
आम्रपाली का विलाप-गान
या फिर नगर की स्त्री-समूह का
'वीणा के तार वाले' लोकगीत -
ये सभी तो थे सहभागी
तुम्हारे तथाकथित ज्ञान के
फिर क्यों नहीं बन पाती सहभागी
तुम्हारी परित्यक्ता यशोधरा
अर्धांगनी जो थी तुम्हारी ... सोचो जरा !
वैशाख की ये बुद्ध-पूर्णिमा का दिन
सोचता हूँ भला कैसे मनाऊँ
तुम्हारे जन्मदिन की ख़ुशी,
सुजाता की खीर का मिठास या फिर
शोक मनाऊँ तुम्हारे महानिर्वाण का
त्यागा भी तो सबकुछ भला
बोलो ... तुमने  किसके लिए !?
बोन्साई-से बौने विचारों वालों के लिए
जिन्होंने तुम्हारे मूर्तिपूजा, श्रृंगार और
रास-रंग के कट्टर विरोध के बाद भी
सजा दिया तुम्हें ही घुँघराले बालों से
लगा दी लम्बी कतारें तुम्हारी ही मूर्त्तियों की
मन्दिरों , मांसाहारी होटलों, मदिरालयों और
सुसज्जित अतिथिकक्षों में भी
काश ! तुम
परख पाते बोन्साई-से बौने
विचारों वाले ढोंगी अनुयायियों को ...
तो महात्याग से महानिर्वाण
तक की यात्रा में
सत्य,अहिंसा,धम्म के साथ
यशोधरा का परित्याग नहीं
साथ सार्थक पाते