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Friday, August 2, 2019

छितराया- बिखरा निवाला

अक्षत् ...
हाँ ... पता है .. ये परिचय का मोहताज़ नहीं
जो होता तो है आम अरवा चावल
पर तथाकथित श्रद्धा-संस्कृति का ओढ़े घूँघट
बना दिया जाता है साथ हल्दी व दूब के
तथाकथित पवित्र अक्षत् ...
जो अक़्सर इस्तेमाल किये जाने के
कुछ लम्हे बाद हो जाते है स्वयं क्षत-विक्षत ...

चाहे ...तथाकथित सत्यनारायण स्वामी का हो कथा
या घर के पूजाघर का कोना या फिर ....
शादी के मड़वे में वर-वधू के ऊपर आशीर्वादस्वरूप छींटे जाने वाले तथाकथित अक्षत् या हो फिर
वर-वधु के चुमावन के रस्म में छींटा गया अक्षत्
अक़्सर जो हो जाते हैं क्षण भर में क्षत-विक्षत
कभी-कभी तो चूमते हैं कई-कई तलवे इनको

हाँ .. वैसे कुछ ख़ुशनसीब दाने ही बन पाते हैं
कभी-कभार कुछ पशु-पक्षियों  के निवाले
कचरे के ढेर पर या कभी-कभी मछलियों के भी
जब प्रवाह किये जाते हैं नदी या तालाब में
"पाप ना लग जाए कहीं" का बहुमूल्य सोच लिए

शादियों में तथाकथित 'लावा छिंटाई' का हो रस्म या
परिजनों की शवयात्रा में अर्थी के पद-चिन्हों पर
लावे एवं सिक्के का मुहर लगाते हुए हम
गुजर तो जाते हैं और जिसके सिक्के तो
लपक लिए जाते हैं राह चलते आमजन
या फिर सम्बन्धियों या साथ गए जान-पहचान वालों द्वारा
जो कभी-कभी ख़र्च कर दिए जाते हैं या फिर प्रायः
तथाकथित आशीर्वाद का एक रूप मान कर
रख लिया जाता है घर में कहीं संभाल कर
किसी संग्रहालय की धरोहर की तरह

पर लावे बेचारे जो धान से बने मानो
गर्व से सीना चौड़ा किए पल भर में
पैरों तले रौंदे ही तो जाते हैं बारहा ...हाँ ...
कुछ-कुछ , कभी-कभी बेशक़ किसी पशु-पक्षी या
मछलियों के भी बन पाते हैं निवाले
ठीक-ठीक अक्षत् की तरह

साहिब !!!
करते तो हैं आप आस्तिकता की बात
पर साथ ये अन्नपूर्णा देवी का निरादर ऐसा
दिखता नहीं आपको क्या.. इन दानों में
किसी भूखे-गरीब का छितराया- बिखरा निवाला
कह नहीं रहा वैसे मैं इसे अंधपरम्परा .. ना.. ना !
पर साथ समय के समय-समय पर चाहती हैं
संशोधन ठीक हमारे संविधान-सा
चाहे वे संस्कृति हों या परम्पराएँ अक़्सर

कल तक अगर नहीं तो कम से कम अब से
एक बार तो साहिब सोचना जरा ..
हाँ साहिब ! ... सोचना जरा .....
किसी भूखे-गरीब का छितराने से पहले
उनका निवाला ......