Thursday, January 11, 2024

पुंश्चली .. (२७) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)


प्रत्येक वृहष्पतिवार को यहाँ साझा होने वाली साप्ताहिक धारावाहिक बतकही- "पुंश्चली .. (१)" से "पुंश्चली .. (२६)" तक के बाद पुनः प्रस्तुत है, आपके समक्ष "पुंश्चली .. (२७) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" .. बस यूँ ही ...  :-

गतांक का आख़िरी अनुच्छेद :-

रेशमा - " सही बात बोल रहे हैं आप दोनों .. पर सभी लोग इतना सोचें तभी ना .. ख़ैर ! .. अब हमलोगों को यहाँ से निकलना चाहिए और अपने-अपने काम में लग जाने के साथ-साथ ललन चच्चा के लिए किराए का मकान भी खोजना है .." मयंक-शशांक को ये कहते हुए रेशमा अपने बटुए में पड़ी कुछ टॉफियाँ निकालते हुए कलुआ को बुला कर दे रही है। राह चलते जाने-अन्जाने बच्चों को प्यार से टॉफियाँ बाँटना रेशमा की आदतों में शुमार है।

गतांक के आगे :-

वैसे तो .. अब हर बार ये जरूरी नहीं होता कि रेशमा द्वारा बच्चों को दी गयी टॉफियाँ हर बच्चे खा ही लें। कुछ बच्चे तो देते ही अपने मुँह में हस्तांतरण कर लेते हैं और कुछ .. अपने जेब में डाल कर आगे बढ़ जाते हैं। गोद वाले कुछ बच्चे को उनकी माँ अपने हाथों से टॉफ़ी को 'रैपर' से निकाल कर फौरन खिला देती हैं और कुछ अपनी मुट्ठी में दबाए हुए आगे बढ़ जाती हैं। 

जो बच्चे या उनकी माँ रेशमा की दी गयी टॉफी जेब में डाल कर या मुट्ठी में दबा कर आगे बढ़ जाती हैं, तो रेशमा समझ जाती है, कि ये लोग तथाकथित नज़र लगने जैसी सोच से ग्रसित हैं और आगे जाने के बाद नज़रों से ओझल होते ही उनके द्वारा उस टॉफी को किसी नाले में या कचरे पर फेंकी जानी है। 

कोई-कोई बच्चे या उनकी माँ जब कभी भी 'रैपर' सड़क किनारे पड़े नगर-निगम के कूड़ेदान में ना फेंक कर वहीं गली-सड़क पर फेंक देती हैं, तो रेशमा स्वयं उसे उठाकर यथोचित जगह पर डालते हुए उन्हें आगे से कूड़ेदान में डालने की नसीहत भी दे डालती है। साथ ही वह उस बच्चे को टॉफी खाने के फ़ौरन बाद तुरन्त साफ़ पानी लेकर अच्छे तरीके से कुल्ला करने के लिए भी समझाती है, वर्ना उनके दाँत सड़ जायेंगे .. ऐसा बतलाती भी है।

कई बच्चे तो चुपचाप मुस्कुराते हुए उसकी दी हुई टॉफ़ी गड़प कर जाते हैं और कई जाते-जाते उसे 'थैंक यू दीदी' या 'थैंक यू  मौसी' बोल जाते हैं। कई बच्चों की माँएँ भी 'थैंक यू रेशमा' बोल जाती हैं या अपने बच्चे से ऐसा बोलने के लिए कहती हैं। तब रेशमा बड़े ही स्नेह के साथ मुस्कुराते हुए उस बच्चे को समझाती है कि जब आपको 'मम्मी' दूध पिलाती है या खाना खिलाती है तो क्या .. आप उन्हें 'थैंक यू' बोलते हो ? या .. अगर आपके 'पापा' आपके पढ़ने-लिखने के लिए किताब-कॉपी बाज़ार से खरीद कर लाते हैं तो क्या आप उन्हें 'थैंक यू' बोलते हो ? .. नहीं ना ? .. क्यों ? .. क्योंकि वे लोग आपके सगे हैं .. है ना ? और .. हमें ये 'थैंक यू' बोल कर हमारे पराया होने का एहसास करवाना चाहते हो ना आप ? .. है ना ? .. नहीं बेटा .. अब से हमारी टॉफ़ी के बदले 'थैंक यू' मत कहना हमको .. ठीक है ? .. हम भी तो आपके अपने ही हैं ना बेटा ... है ना ?

अब तक मयंक और शशांक अपने जगह से उठ कर रसिक के पास पहुँच चुके हैं ..

मयंक - " रसिक भाई ! .. सुबह से अभी तक जितनी भी चाय मन्टू जी और रेशमा की 'टीम' के साथ-साथ हम दोनों ने पी है .. वो सारी चाय का हिसाब हमारे खाते में लिख लीजिएगा .. "

तभी रेशमा भी अपने बटुए से रुपए निकालते हुए रसिक के पास पहुँचती है ..

रेशमा - " ये गलत बात है मयंक भईया .. हर बार आप ही पैसा दीजिएगा ? .. कभी हमलोगों को भी तो मौका दीजिए .. अब आगे से आपके साथ चाय नहीं पीनी है हमलोगों को .. "

शशांक - " इसमें इतना गुस्साने वाली कौन-सी बात हो गयी .. अगली बार आप दे देना .. "

रेशमा - " अगली बार .. अगली बार बोल के आप दोनों लोग हर बार हमें टरका जाते हैं .. वो अगली बार फिर कभी आता ही नहीं .." 

चाँद - " सही फ़रमा रही है रेशमा .. कभी हमें भी तो ख़िदमत का मौका दिया कीजिए .. अब ये क्या कि .. हर बार .. "

मन्टू - " अभी तो आपलोगों की नौकरी भी नहीं लगी .. अभी आप दोनों पढ़-लिख ही रहे हैं .. आप दोनों के अभिभावकों के भेजे पैसों पर तो .. आपलोग खुद ही आश्रित हो .. है ना ? .. "

रेशमा - " हम सब तो कमाने वाले हैं .. भले ही सरकारी नौकरी नहीं है तो क्या हुआ .. कमा-खा तो रहे हैं ना ? "

मन्टू - " देश भर की जनसंख्या के कितने ही प्रतिशत लोग सरकारी नौकरी करते हैं ? .. बतलाओ ना जरा ! ... तीन से चार प्रतिशत ही तो .. बाक़ी के सत्तानवे-छियानवे प्रतिशत लोग भी तो इंसान ही हैं और इंसान की तरह अपना परिवार चला रहे हैं .. नहीं क्या ? .."

चाँद - " ये सब बातें करने का वक्त नहीं है अभी मन्टू भाई .. अभी तो बस इतना कहना है कि थोड़ा बहुत ये लोग 'ट्यूशन' पढ़ा कर कमाते हैं .. वो सब भी हम जैसे लोगों पर ख़र्च कर देते हैं .. पर आगे से ऐसा नहीं करने देंगे हम लोग इनको .. "

ललन चाचा अपनी जगह से बैठे-बैठे ही .. जो अभी तक घर खाली करने वाली 'नोटिस' की अपनी ही उधेड़बुन में तल्लीन थे .. अचानक इन सभी की बातों पर गौर करके ..

ललन चाचा -" यहाँ पर तुमलोगों के बीच सबसे बड़े तो हम हैं .. फिर ऐसे में तो चाय की क़ीमत तुम दोनों के देने से मेरे लिए भी शर्मिंदगी वाली बात हो गयी .. है कि नहीं रेशमा ? .. बोलो ! .. "

रेशमा - " सही कह रहे हैं ललन चच्चा आप .. "

मयंक दोनों हाथ जोड़ कर ललन चाचा से माफ़ी माँगते हुए ..

मयंक - " ना - ना चच्चा .. ऐसी बात नहीं है .. आप तो सभी के चाचा हैं .. ऐसे में भतीजे-भतीजियों का फ़र्ज़ नहीं होता क्या कि ..  वो लोग आपको चाय पिलाएँ .. बोलिए ? .." 

अपनी जगह से बैठे-बैठे ही आशीर्वाद वाली मुद्रा में अपनी दायीं हथेली हवा में लहराते हुए मुस्कुरा कर .. 

ललन चाचा - " तुम दोनों से बातों में जीत पाना बहुत ही मुश्किल है बेटा .. "

सभी ललन चाचा के मुस्कुराते चेहरे को और भी ख़ुशी प्रदान करने के ख़्याल से जोर-जोर से हँसते हुए समवेत स्वर में कह रहे हैं .. " सही बोले चच्चा " ...

तभी मुस्कुराते हुए सभी की ओर देख कर चाँद के कँधे पर अपनी दायीं हथेली थपथपा कर मयंक कह रहा है ..

मयंक - " अच्छा .. आगे की बात को आगे देखेंगे .. अभी फ़िलहाल तो हमलोग चलें यहाँ से .. अच्छा तो हम चलते हैं .."

ये कहते हुए या .. यूँ कहें कि एक पुराने फ़िल्मी गाने के तर्ज़ पर "अच्छा तो हम चलते हैं" गाते हुए मयंक और शशांक .. दोनों ही अपने 'पी जी' की ओर चले जा रहे हैं .. तभी ललन चाचा भी .. जो अब तक इन लोगों की सकारात्मक सांत्वना से पहले की ही तरह प्रफुल्लित होकर .. सभी को बतलाते हुए अपने घर की ओर जा रहे हैं .. तभी ...

चाँद - " हम भी चले .. मेरी भी एक 'बुकिंग' है .. एक ग्राहक को उसके घर से ले जाकर उसे ट्रेन पकड़वानी है .." 

मन्टू - " ठीक है .. कल सुबह मिलते हैं .." 

रेशमा भी प्रत्युत्तर में किसी उद्घोषिका के अंदाज़ में चाँद की ओर अपना रुख़ करके ...

रेशमा - " हाँ - हाँ .. ठीक है .. अब कल मिलते हैं .. एक छोटे से 'ब्रेक' के बाद .. " और फिर मन्टू की ओर मुख़ातिब होकर - " मन्टू भईया चलिए .. अब तो हमलोग भी चलें .. काफ़ी देर हो गयी है आज तो .. आपकी आज की बोहनी करवानी है .. "

【आज बस .. इतना ही .. अब शेष बतकहियाँ .. आगामी वृहष्पतिवार को ..  "पुंश्चली .. (२८) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" में ... 】