Wednesday, April 6, 2022

चंद चिप्पियाँ .. बस यूँ ही ...

(१) रिवायतें तगड़ी ...

कहीं मुंडे हुए सिर, कहीं जटाएँ, कहीं टिक्की, 

कहीं टोपी, कहीं मुरेठे-साफे, तो कहीं पगड़ी।


अफ़सोस, इंसानों को इंसानों से ही बाँटने की 

इंसानों ने ही हैं बनायी नायाब रिवायतें तगड़ी।


(२) विदेशी पट्टे ...

देखा हाथों में हमने अक़्सर स्वदेशी की बातें करने वालों के,

विदेशी नस्ली किसी कुत्ते के गले में लिपटे हुए विदेशी पट्टे।


देखा बाज़ारों में हमने अक़्सर "बाल श्रम अधिनियम" वाले,

पोस्टर चिपकाते दस-ग्यारह साल के फटेहाल-से छोटे बच्चे।


(३) चंद चिप्पियों की ...

रिश्ते की अपनी निकल ही जाती 

हवा, नुकीली कीलों से चुप्पियों की,


पर मात देने में इसे, करामात रही 

तुम्हारी यादों की चंद चिप्पियों की।


(४) सीने के वास्ते ...

आहों के कपास थामे,

सोचों की तकली से,

काते हैं हमने,

आँसूओं के धागे .. बस यूँ ही ...

टुकड़ों को सारे,

सीने के दर्द के,

सीने के वास्ते,

अक़्सर हमने .. बस यूँ ही ...


(५) एक अदद इंसान ...

मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारे या गिरजा के सामने,

कतारों में हो तलाशते तुम पैगम्बर या भगवान .. बस यूँ ही ...


गाँव-शहर, चौक-मुहल्ले, बाज़ार, हरेक ठिकाने,

ताउम्र तलाश रहे हम तो बस एक अदद इंसान .. बस यूँ ही ...




Sunday, April 3, 2022

बाद भी वो तवायफ़ ...

रंगों या सुगंधों से फूलों को तौलना भला क्या,

काश होता लेना फलों का ज़ायका ही जायज़ .. शायद ...


यूँ मार्फ़त फूलों के होता मिलन बारहा अपना,

पर डाली से फूल को जुदा करना है नाजायज़ .. शायद ... 


धमाके, आग-धुआँ, क़त्लेआम और  बलात्कार,

इंसानी शक्लों में हैं हैवानों-सी सदियों से रिवायत..शायद ...


बारूदी दहक में पसीजते मासूम आँखों से आँसू,

ये हैं भला यूँ भी कैसे तरक्क़ी पसंदों के क़वायद .. शायद ...


किसी की माँ या बहन या पत्नी होती है औरत,

बनने से पहले या बनने के बाद भी वो तवायफ़ .. शायद ...