Showing posts with label चूल्हा. Show all posts
Showing posts with label चूल्हा. Show all posts

Sunday, April 26, 2020

सुलगते हैं कई बदन

चूल्हा और
चकलाघर में
अंतर नहीं ज्यादा
बस फ़र्क इतना कि
एक होता है ईंधन से
रोशन और दूसरा
हमारे जले सपने
और जलते तन से
पर दोनों ही जलते हैं
किसी की आग को
बुझाने के लिए
एक जलता है किसी के
पेट की आग तो दूसरा
पेट के नीचे की आग
बुझाने के लिए साहिब !

अक़्सर कई घरों में
चहारदीवारी के भीतर
अनुशासन के साथ
बिना शोर-शराबे के भी
जलते हैं कई सपने
सुलगते हैं कई बदन
मेरी ही तरह क्योंकि एक
हम ही नहीं वेश्याएँ केवल
ब्याहताएँ भी तो कभी-कहीं
सुलगा करती हैं साहिब !

अंतर बस इतना कि
हम जलती हैं
दो शहरों या गाँवों को
जोड़ती सड़कों के
किनारे किसी ढाबे में
जलने वाले चूल्हे की तरह
अनवरत दिन-रात
जलती-सुलगती
और वो किसी
संभ्रांत परिवार की
रसोईघर में जलने वाले
दिनचर्या के अनुसार
नियत समय या समय-समय पर
पर जलती दोनों ही हैं
हम वेश्याएँ और ब्याहताएँ भी
ठीक किसी जलते-सुलगते
चूल्हे की तरह ही तो साहिब !