Thursday, February 6, 2025

मन की आचमनी से .. चुंबन की थाप ...


आज अपनी दो बतकही के साथ ..  दो अतुकान्त कविताओं की शक़्ल में .. बस यूँ ही ...

(१)

मन की आचमनी से ...

रिश्तों की बहती 

अपार गंग-धार से, 

बस अँजुरी भर 

नेह-जल भरे,

अपने मन की 

आचमनी से 

आचमन करके,

जीवनपर्यन्त संताप के

समस्त ताप मेरे,

शीतल करने 

तुम आ जाना .. बस यूँ ही ...


शिथिल पड़े 

जब-जब कभी

बचपना, 

भावना, 

संवेदना हमारी,

संग शिथिल पड़े 

मन को भी,

यूँ कर-कर के 

गुदगुदी ..

हलचल करने 

तुम आ जाना .. बस यूँ ही ...


(२)

चुंबन की थाप ...

शास्त्रीय संगीत की

मध्य लय-सी 

जब-जब मैं 

पहल करूँ,

द्रुत लय की 

साँसों को थामे,

हया की 

विलंबित लय-सी 

हौले - हौले

तब तुम भी 

फटी एड़ियों वाली ही सही

अपना पाँव बढ़ाना .. बस यूँ ही ...


मिल कर फिर 

छेड़ेंगे हम-तुम

प्रेम के सरगम।

मेरे कानों में छिड़ी 

तुम्हारी ...

गुनगुनी साँसों की 

गुनगुनाहट होगी

और होंगी गालों पर, 

होंठों पर,

माथे पर तुम्हारे 

मेरी चुंबन की थाप,

यूँ छेड़ेंगे मदहोश तराना .. बस यूँ ही ...