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Saturday, August 24, 2019

दोनों प्रेम-प्रदर्शन में शिला ...

समान है दोनों में शिला
पर एक सफ़ेद क़ीमती
मकराना की शिला
तो दूसरी गहलौर के
पहाड़ की काली शिला

समान हैं दोनों में बाईस वर्ष
पर एक में जुड़वाता
बीस हज़ार मज़दूरों से
सम्पन्न बादशाह शाहजहाँ और
दूसरे में तोड़ता एक अकेले
अपने दम पर विपन्न मज़दूर
दिहाड़ी वाला दशरथ माँझी

एक अपनी कई बेगमों में
एक बेगम - मुमताज़ महल की
लम्बी बीमारी के दौरान किए
अपने वादे के लिए
उसके मरने के बाद
बनवाया यादगार .. नायाब और
सात अजूबों में एक अजूबा
मक़बरा ताजमहल जुड़वा कर शिला
जिसे निहारते पर्यटक रोज-रोज
देकर एक तय शुल्क देने के बाद

दूसरा अपनी इकलौती पत्नी
साधारण-सी फ़ाल्गुनी देवी के
पहाड़ के दर्रे से गिरकर मरणोपरान्त
स्वयं से किया एक 'ढीठ' वादे के साथ
अपनी छेनी-हथौड़े के बूते ही रच डाली
दो प्रखण्डों के बीच दूरी कम करती
एक निःशुल्क सुगम राह सभी
ख़ास से लेकर आमजनों के लिए

दो-दो प्रेम-प्रदर्शन ...दोनों प्रेम-प्रदर्शन में शिला
एक में जुड़ती शिला ... तो एक में टूटती शिला
एक सम्पन्न बादशाह तो एक विपन्न मजदूर ...
शिला जुड़वाता बादशाह तो तोड़ता मज़दूर
दोनों ही अपनी-अपनी चहेती के मरणोपरान्त
क्यों मुझे लग रहा बादशाह होता हर तरह से
एक अदना मज़दूर के प्रेम-प्रदर्शन से परास्त !?