ऐ ज़िन्दगी !
मेरी जानाँ ज़िन्दगी !!
जान-ए-जानाँ ज़िन्दगी !!!
चंचल चटोरिन
किसी एक
बच्ची की तरह
कर जाती है,
यूँ तो तू चट
चटपट,
मासूम बचपन
और ..
मादक जवानी,
मानो किसी
'क्रीम बिस्कुट' की
करारी, कुरकुरी,
दोनों परतों-सी।
और फिर ..
आहिस्ता ...
आहिस्ता ....
चाटती है तू
ले लेकर
चटकारे,
लपलपाती, लोलुप
जीभ से अपने,
गुलगुले ..
शेष बचे बुढ़ापे के
'क्रीम' की मिठास,
मचलती हुई-सी,
होकर बिंदास .. बस यूँ ही ...