Thursday, November 9, 2023

पुंश्चली .. (१८) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)


प्रत्येक वृहष्पतिवार को यहाँ साझा होने वाली साप्ताहिक धारावाहिक बतकही- "पुंश्चली .. (१)" से "पुंश्चली .. (१७)" तक के बाद पुनः प्रस्तुत है, आपके समक्ष "पुंश्चली .. (१८) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" .. बस यूँ ही ...  :-

गतांक का आख़िरी अनुच्छेद :-

इसी से उसे हर माह पता चलता रहता है, कि अंजलि के "मुश्किल से भरे वो चार दिन" कब शुरू होते हैं और कब ख़त्म .. जिसके बाद उसके 'शैम्पू' किए .. अपने खुले बालों में उसके दर्शन हो जाने से वह मन ही मन .. बहुत ही खुश होता रहता है। पर ये क्या .. अभी तो उसकी आँखें फ़टी की फ़टी रह गयीं है .. चेहरे पर एक तनाव की गहरी रेखा अचानक खींच गयी है। आख़िर ऐसा क्या दिख गया भला उसे अंजलि के घर से निकले आज के कचरे में ... ? 

गतांक के आगे :-

अभी मुहल्ले में चौक के पास ही रसिक चाय दुकान के निकट नगर निगम द्वारा रखे गए कचरे के बड़े डब्बे में अपने तीन वर्षीय इकलौते बेटे अम्मू के साथ रोज की तरह स्कूल जाने के दौरान अंजलि द्वारा उसके घर के कचरों से भरी फेंकी गयी थैली से मिले उस सामान विशेष को मन्टू अपने हाथों में उलट-पलट कर उसकी गुत्थी सुलझाने की कोशिश कर ही रहा है, तभी काफ़ी देर से अपनी चांडाल चौकड़ी के बीच से गायब मन्टू को तलाश करते हुए उसकी चांडाल चौकड़ी के अन्य दो सदस्य- भूरा और चाँद उसके पास आ गए हैं। वे दोनों भी मुहल्ले भर की चहेती गली की कुतिया- बसन्तिया, मन्टू और अंजलि के घर के कचरे की थैली की त्रिकोणीय गुत्थमगुत्थी वाली दिनचर्या से भली-भाँति परिचित हैं।

अचानक भूरा मन्टू की दायीं हथेली से उस वस्तु विशेष को लपक लेता है और उसे उलट-पुलट कर हैरत भरी नज़रों से निहारते हुए - " ये तो किसी टूटे हुए थर्मामीटर का कचरा लग रहा है चाँद भाई .. है ना ? "

चाँद - " नहीं रे बकलोल .. ये .. इसको 'प्रेगनेंसी टेस्ट स्ट्रिप' कहते हैं। ... "

भूरा - " तुमको कैसे पता ? .. ऐसा तो गाहे-ब-गाहे हमारी नगर निगम वाली गाड़ी में मुहल्ले भर के घर-घर से डाले जाने वाले कचरों में नज़र आता ही रहता है भाई .. हम तो उन्हें भी आज तक टूटा थर्मामीटर ही समझते रहे हैं। वैसा ही तो लगता है .. नहीं मन्टू भाई ? " - अपनी बात और समझ के समर्थन के लिए मन्टू को भूरा टटोलने की कोशिश भर करता है। पर ..

मन्टू - " अबे ! .. जब चाँद भाई कह रहे हैं, कि ये 'प्रेगनेंसी टेस्ट स्ट्रिप' है तो .. फिर तू अपना ज्ञान क्यों बघार रहा है। " मन्टू चिड़चिड़ाहट के साथ भूरा को झिड़क दिया है।

भूरा - " ना भाई .. हम चाँद भाई की बात काट नहीं रहे .. हम तो अपनी कम जानकारी को बतला रहे हैं .. बस ... अब चाँद भाई तो अपनी 'टैक्सी' में दिन-रात गिटिर-पिटिर बोलने वाले बड़े-बड़े साहब-मेम साहब को इधर-उधर घुमाते रहते हैं और हम दिन भर घर-घर से कचरा बटोरते चलते हैं .. तो हमारे दिमाग़ में तो कचरा ही होगा ना भाई और ... चाँद भाई आप ही की तरह ज्ञानी प्राणी .. है ना भाई ? .. "

चाँद - " अब ज्यादा 'इमोशनल कार्ड' खेलने की ज़रूरत नहीं है .. बल्कि ... "

भूरा - " अब ये 'इमोशनल कार्ड' क्या .. .. " - भूरा के इस सवाल को बीच में ही काटते हुए मन्टू उसको चुप करा रहा है।

मन्टू - " अबे चुप हो जा तू भूरा के बच्चे ! .. सुबह-सुबह और ज्यादा दिमाग़ को मत पकाओ .. मेरा दिमाग़ ऐसे ही घुम रहा है .. "

 भूरा - " क्या हुआ ? .. दिमाग़ क्यों घुमने लगा ? .. खाली पेट में चाय पीने से गैस तो नहीं बन गयी कहीं ? .. "

 चाँद - " तू चुप भी करेगा ? .. या .. ऐसी ही बेसिर-पैर की अटकलें लगाता रहेगा ? .. "

चाँद की झिड़की सुनकर भूरा सिटपिटा गया है और मोहन दास करमचन्द गाँधी जी के तथाकथित पालतू (?) तीन बन्दरों में से एक बन्दर की तरह .. अपने बन्द होठों पर अपनी दायीं तर्जनी का ताला जड़ते हुए बोल रहा है - " अच्छा भाई .. अभी से हम चुपचाप .. केवल आप दोनों की बातें सुनते हैं हम .. ठीक ? .."

मन्टू - " चाँद ! .. इस 'स्ट्रिप' की दोनों 'लाइनें' गहरे गुलाबी रंग की हैं .. इसका मतलब तो .. " - लगभग मायूस होकर उदासी भरी आवाज़ में मन्टू अपनी शंका ज़ाहिर कर रहा है।

चाँद - " हाँ .. इसका मतलब तो यही है कि जिसने भी इस 'स्ट्रिप' से अपनी जाँच की है, उसके गाभिन होने का खटका है .."

भूरा - " आपको कैसे पता ? .."

मन्टू - " फिर बीच में टपका बुड़बक कहीं का .. "

चाँद - " 'भेरी सिम्पल' यार .. कई दफ़ा कोई-कोई साहब-मेमसाहब तो हमारे टैक्सी में ही सफ़र के दौरान बैठे-बैठे इसी तरह की 'स्ट्रिप' की दोनों गहरी गुलाबी 'लाइनों' की ज़िक्र करके आपस में लड़ पड़ते हैं। कभी साहब को बच्चा नहीं चाहिए होता है, कभी मेमसाहब को। "

भूरा - " उन लोगों को घर में जगह नहीं मिलता क्या झगड़ने के लिए ? "

चाँद - " अबे पागल .. फिर बीच में टपका .. बिना बीच में टपके तुमको चैन ही नहीं है .. उनमें सौ फ़ीसदी जोड़े नाज़ायज रिश्ते वाले साहब-मेमसाहब का ही होता है। तो फिर उनका घर कहाँ और कैसे होगा ? .. बोलो ! .. उनका घर तो .. या तो होटल, पार्क, सिनेमा घर ता फिर हमारे जैसों की टैक्सी ही है। हाँ .. कभी-कभार वैसे भी जोड़े आते हैं, जो सही मायने में पति-पत्नी होते हैं, पर .. एक ही छोटे-से घर के कम जगह में ही बहुत सारे लोगों के परिवार के बीच अपनी आपसी बहुत सारी पोशीदा बातें नहीं कर पाने वाले बेचारे लोग होते हैं .. जो घर से निकल कर मेरी टैक्सी में यूँ तो बैठते हैं किसी पार्क या चिड़िया घर जा कर अपने पोशीदा मसले सुलझाने के लिए .. पर .. " - अपने ज्ञान की पोटली खोले अपनी बकबक में मशगूल चाँद की निगाह अचानक मन्टू के उदास चेहरे पर पड़ी है, तो वह अपनी मुस्कुराहट को जैसे जज़्ब करते हुए गम्भीर मुद्रा में अपने ज्ञान को पुनः परोसने लगा है - " घर से निकल कर जैसे ही मेरी टैक्सी में बैठती हैं ऐसी जोड़ी तो .. अपनी मंज़िल के आने का इंतज़ार नहीं होता है इनसे .. इधर हम अपनी टैक्सी के गियर बदलते हैं, उधर उनके सब्र के बाँध टूटने के साथ-साथ उनके सुर बदलते हैं। जो बातें घर में परिवार वाली लाज-लिहाज़ से वो नहीं करते, पर टैक्सी में बैठते ही करने लग जाते हैं। "

भूरा - " अच्छा ! ?.. "

चाँद - " और नहीं तो क्या .. उन्हें आगे बैठा मेरे जैसा ड्राईवर भी गाड़ी का पार्ट-पुर्जा ही लगता है रे .. "

चाँद और भूरा की बातें मन्टू को अभी अपनी उलझन के सामने अनर्गल लग रही है। उसका सारा ध्यान अंजलि और उस दो 'लाइनों' वाली 'स्ट्रिप' पर ही केन्द्रित है इस वक्त .. उसे इस वक्त कुछ भी नहीं सूझ रहा है।

मन्टू - " अरे यार चाँद .. तू इस के साथ बकबक करता ही रहेगा या मेरी समस्या को भी सुलझाएगा ? .. बता ! ? .. जब से ये दो धारियों वाली 'किट' मेरे हाथ आयी है ... तब से मेरे माथे में दोधारी तलवार चल रही है भाई ... " - मन्टू कहते-कहते रुआँसा-सा हो गया है। कल तक दूसरों की सहायता के लिए तत्पर खड़ा रहने वाला मन्टू आज अपनी उलझन की बारी आयी है तो स्वयं को निःसहाय महसूस कर रहा है .. शायद ... 

चाँद - " यार सुन .. साहब और मेमसाहब लोगों की जो बकवासें हमने सुनी हैं .. उनके मुताबिक़ तो .. 'प्रेगनेंसी टेस्ट किट' की इस 'स्ट्रिप' पर जो दो 'लाइनें' हैं, उन्हें 'टेस्ट लाइन' और 'कंट्रोल लाइन' कहते हैं और..अगर दी गयी तज्वीज़ के मुताबिक़ आज़माइश के वक्त इस 'स्ट्रिप' पर  'यूरिन' की चंद बूँदें 'ड्रॉपर' से टपकाने पर एक ही 'लाइन' का रंग गहरा गुलाबी हो तो उसे 'नेगेटिव रिजल्ट' कहते हैं .. मतलब वो गाभिन यानी गर्भवती नहीं है और .. "

मन्टू - " और ? .."

चाँद - " और .. अगर .. इस 'स्ट्रिप' की तरह अगर .. दोनों ही 'लाइनें' गहरा गुलाबी हो जाएं तो इससे मालूम होता कि .. "

मन्टू - " पर ये कैसे सम्भव है ? रंजन को गुज़रे तो साल भर से ज्यादा हो गया .. फिर ये कैसे हो सकता है चाँद भाई ? बोलो ना जरा ... "

दरअसल रंजन से मन्टू की बहुत गहरी दोस्ती थी। रंजन के गुजरने के बाद रज्ज़ो के प्रेम से वंचित मन्टू मन ही मन अंजलि को चाहने लगा था। 

 चाँद - " और तो उस घर में शनिचरी चाची रहती हैं। उनसे भी तो ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती। है ना ? '''

 मन्टू - " और तो कोई औरत रहती नहीं है उस घर में .. हमारे तो सपनों का महल ही ढह गया है .. आख़िर अंजलि ने ये सब किसके साथ किया होगा। हमको तो ये पता लगाना ही पड़ेगा ..."

【आज बस .. इतना ही .. अब शेष बतकहियाँ .. आगामी वृहष्पतिवार को ..  "पुंश्चली .. (१९) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" में ... 】



Tuesday, November 7, 2023

"क" से कलावती, करवा चौथ या क्यूरी ?

"कलावती" नाम कम से कम समस्त हिन्दू धर्मावलम्बियों के लिए तो एक जाना-पहचाना नाम है, जो पाँच अध्यायों वाली सत्यनारायण स्वामी की कथा की केन्द्रीय नायिका है। साथ ही सर्वविदित है, कि भारत के कई राज्यों में वैदिक पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चौथी तिथि को प्रत्येक विवाहिता व पतिव्रता सधवा हिन्दू महिला द्वारा लगभग बारह-तेरह घन्टे का निर्जला उपवास रख कर लोक मान्यताओं के आधार पर अपने पति की लम्बी आयु के लिए "करवा चौथ" का व्रत किया जाता है और .. शाम में चाँद के उगने पर चाँद को अर्घ्य देकर अपने-अपने पति लोगों के हाथों से ही पानी पीकर व्रत तोड़ती हैं, जिनमें तथाकथित पढ़े-लिखे पति लोग भी शामिल होते हैं .. शायद ...

हर वह व्यक्ति जो स्वयं को आस्तिक और सनातनियों के वंशज मानते हुए अपने आप को हिन्दू धर्मावलम्बी कहने में गर्व महसूस करते हैं, वे लोग अपनी संतानों को अवश्य ही सत्यनारायण स्वामी की कथा के आधार पर "कलावती" के पति की नैया के डूबने के कारण और फिर उसके उबरने की युक्ति व विधि की विधिवत चर्चा करते हैं और तथाकथित सभ्य-सुसंस्कृत महिलाएँ भी अपने परिवार की युवतियों के समक्ष "करवा चौथ" व्रत की महिमा के गुणगान के साथ बखान करने से नहीं चूकतीं हैं .. शायद ...

परन्तु इसी धरती पर जन्मीं एक बालिका .. जो ना कभी "करवा चौथ" जैसे व्रत-उपवास कीं और ना ही "कलावती" वाली कथा को सुनीं-जानीं .. ना ही मोक्ष प्राप्ति के लिए तथाकथित पुत्र रत्न के लिए बावली हुईं और ना ही किसी विदेशी से शादी करने से उनकी नाक कटी .. जिन क्रिया-कलापों की अवहेलना आज भी अमूमन हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी व सभ्य-सुसंस्कृत समाज में भी की जाती हैं। 

फिर भी आज वर्षों बाद भी उन महिला का नाम विश्व पटल पर आदर के साथ अंकित है और जब तक धरती पर विज्ञान रहेगा, तब तक वह नाम अमर भी रहेगा .. शायद ... 

उनकी उपलब्धियों में से सबसे बड़ी उपलब्धि है .. उनके साथ-साथ उनके एक ही परिवार के सदस्यों को पाँच-पाँच नोबल पुरस्कार की प्राप्ति होनी .. इसके बारे में जब अधिकांश तथाकथित पढ़े-लिखे अभिभावक ही अनभिज्ञ हों, तो अपनी संतानों से इनकी चर्चा करने की चूक (?) कैसे कर सकते हैं भला ? जिन्हें मालूम भी है .. वे लोग भी इन घटनाओं को इसी धरती की एक महत्वपूर्ण घटना होने के बावजूद .. विदेशी मानते हुए उनसे दूरी बना कर अपने धर्म-सभ्यता-संस्कृति बचे रहने की बात सोचते हैं .. शायद ...

दरअसल आज ही के दिन .. 7 नवम्बर को वर्ष 1867 में एक यूरोपीय देश- पोलैंड में मैरी स्क्लाडोवका (Maria Salomea Skłodowska) का जन्म हुआ था, जो बाद में दूसरे यूरोपीय देश- फ़्रांस के प्येर क्यूरी (Pierre Curie) से प्रेम-विवाह कर के "मैरी स्क्लाडोवका क्यूरी" हो गयीं थीं। जिन्हें रेडियम की खोज करने के कारण विज्ञान से जुड़े लोग जानते हैं या फिर अधिकांशतः अंक प्राप्ति के लिए पढ़ने वाले विद्यार्थीगण मैडम क्यूरी या मैरी क्यूरी के नाम को रटते हैं।

प्रसंगवश .. वैसे तो शादी के बाद पत्नी के नाम के साथ पति के उपनाम के जुड़ जाने जैसा प्रचलन हमारे देश में भी है। हिमानी भट्ट से हिमानी शिवपुरी बन जाने की हिमानी शिवपुरी जी से सम्बन्धित जिस बात की चर्चा अपनी बतकही "अँधेरे से डरता हूँ मैं ..." में हमने की भी है .. बस यूँ ही ...

सर्वविदित है कि भौतिक और रसायन विज्ञान .. दोनों में ही मैरी क्यूरी की गहरी पकड़ थी। जिस वजह से वह दोनों विषयों में नोबेल पुरस्कार पाने वाली आज तक की पहली और आख़िरी वैज्ञानिक महिला हैं और शायद रहेगीं भी। उनकी दो बेटियों में से एक- आइरीन (इरेन जुलियो क्यूरी) और उनके पति- जीन फ्रेडरिक जूलियट-क्यूरी को भी संयुक्त रूप से "प्रेरित रेडियोधर्मिता" की ख़ोज के लिए रसायन विज्ञान में और दूसरी बेटी- इव (एव डेनिस क्यूरी लाबौइस) के पति हेनरी रिचर्डसन लाबौइस जूनियर को "शांति" के लिए नोबेल पुरस्कार 'यूनिसेफ' ( UNICEF ) की ओर से मिला है। 

दरअसल पोलैंड में तत्कालीन चलन के मुताबिक महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा पर पाबंदी होने के कारण आगे भौतिकी और गणित की पढ़ाई के लिए फ़्रांस की राजधानी- पेरिस जाकर 'डॉक्टरेट' करने वाली वह पहली महिला थीं। साथ ही पेरिस विश्वविद्यालय में 'प्रोफ़ेसर' बनने वाली भी पहली महिला थीं। यहीं उनकी मुलाक़ात उनके प्रेमी सह भावी पति- पियरे क्यूरी से हुई थी।

इस वैज्ञानिक दम्पती ने पोलोनियम ( Polonium ) की ख़ोज की थी, जिसका इस्तेमाल चिकित्सा विज्ञान में एक घटक के रूप में किया जाता है। वह "रेडियोसक्रियता" (Radioactivity) की भी खोज की थीं, जिसके लिए उन्हें, उनके पति- पियरे क्यूरी और हेनरी बैकेरल को संयुक्त रूप से भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला था। बाद में कुछ ही महीने बाद पति- पियरे क्यूरी की मृत्यु के बाद उन्होंने आंद्रे लुई डेबिरने ( André Louis Debierne ) की सहायता से रेडियम (Radium) की भी खोज की थीं और रेडियम के शुद्धीकरण (Isolation of Pure Radium) की ख़ोज के लिए रसायनशास्त्र का भी नोबेल पुरस्कार मिला था।

मैरी क्यूरी से जुड़ी उपरोक्त और इनके अलावा अन्य विस्तृत जानकारियाँ पाठ्यक्रम की पुस्तकों में या अन्य सम्बंधित पुस्तकों में या फिर 'गूगल' पर तो उपलब्ध हैं ही .. तो .. आज की अपनी अनर्गल बतकही को आप सभी सभ्य-सुसंस्कृत, बुद्धिजीवी, सुधीजन के समक्ष केवल इस प्रश्न से समाप्त करते हैं कि .. "क" से कलावती, करवा चौथ या क्यूरी ? .. बस यूँ ही ...