Tuesday, April 7, 2020

चाय वाले चच्चा उर्फ़ लिट्टी वाला लव ( वेब-सीरीज ).

" हेलो .. सर ! एक वेब सीरीज बनने वाली है .. आप इसमें ... चाय वाले चाचा का रोल किजिएगा .. !? " - लगभग एक साल पहले एक दिन शाम के लगभग 8.15 बजे आम दिनचर्या के अनुसार ऑफिस से आकर फ्रेश हो कर अगले रविवार को होने वाले एक ओपेनमिक (Openmic) के पूर्वाभ्यास करने के दौरान ही बहुत दिनों बाद ओपेनमिक के ही युवा परिचित 18 वर्षीय आदित्य द्वारा फोन पर यह सवाल सुन रहा था।
उसके सवाल में एक हिचक की बू आ रही थी। उसके अनुसार शायद एक मामूली चाय वाले के अभिनय के लिए मैं तैयार ना होऊं। पर मेरा मानना है कि अभिनय तो बस अभिनय है, चाहे वह किसी मुर्दा का ही क्यों ना करना हो।
" हाँ ! ... क्यों नहीं ... कब और कहाँ आना है शूटिंग के लिए ... और स्क्रिप्ट ? " - मन ही मन सोच रहा था .. अंधे को और क्या चाहिए .. बस दो आँख ही तो।
" वो सब आपको बतला देंगे , अभी पूरे 5 एपिसोड में से 3 और 5 वाले का स्क्रिप्ट आपको व्हाट्सएप्प पर भेज दे रहे हैं .. जिनमें आपका रोल है। आप देख लीजिएगा। "
" देख लीजिएगा " का मतलब था - खुद से उस चाय वाले पात्र का चरित्र को समझना, उसका परिधान और रूप सज्जा सब कुछ खुद को ही तय करना था।
फिर एक दिन शाम में ही आदित्य का फिर से फ़ोन आया - " सर ! परसों सन्डे है और आप सुबह 5.00 बजे आ जाइएगा NIT, Patna वाले गाँधी घाट पर गंगा किनारे ही शूटिंग करेंगे। "
मैं सुबह 4.15 बजे ही घर से नहा-धोकर लगभग 10 किमी की दूरी तय कर के गंतव्य पर नियत समय पर 5.00 बजे तक पँहुचने के लिए निकल पड़ा। इस विधा के जानकार बतलाते हैं कि धूप निकलने के पहले सॉफ्ट लाइट में फोटोग्राफी अच्छी आती है। 5.30 तक भी जब किसी का अता-पता नहीं चला घाट किनारे तो आदित्य को फ़ोन मिलाया। तब पता चला कि फ़िल्म के मेन हीरो साहब अभी जस्ट सो कर उठे हैं। आधे-एक घन्टे में तशरीफ़ ला रहे हैं। ये हम भारतीयों की एक आदत-सी है, समय पर मतलब एक-आध घन्टे विलम्ब से ... मानो अपना भारतीय रेल।
 खैर ! सुबह का समय, गंगा का किनारा, पौ फटती सुबह, मोर्निंग वॉक करते लोग, कुछ स्वर्ग की मनोकामना में गंगा-स्नान करते लोग ... कुछ NIT, Patna के युवा छात्र-छात्राओं की चहलकदमियाँ ... पड़ों पर पक्षियों का कलरव ... मतलब कुल मिला कर उन लोगों का देर करना खल नहीं रहा था। इन सब के अवलोकन के साथ-साथ बीच-बीच में अपना डॉयलॉग कभी स्क्रिप्ट का प्रिंट देख कर तो कभी मन ही मन मुँहजुबानी दुहरा रहा था।
सभी आए .. सब से परिचय हुआ .. एक फोटोग्राफर सह निर्माता, दूसरा नायक, तीसरा सह-कलाकार .. इन तीनों से पहली बार मिल रहा था। चौथा इन सब से मिलाने वाला आदित्य। शूटिंग चालू हुई .. एक ही दिन में 3रे और 5वें - दोनों एपिसोड जिनमें मेरा अभिनय था ..दो कलाकारों के साथ .. वह आज ही हो जाना था, क्योंकि रविवार के अलावा मुश्किल होता है मेरे लिए समय साझा करना।
सब ठीक-ठाक हो गया। फिर दो-तीन दिन ऑफिस से आने के बाद देर रात खा-पी कर निर्माता के घर में बने स्टूडियो के लिए जाना पड़ा -डबिंग करने के लिए। मंचन और अभिनय का अनुभव तो था पर डबिंग का जीवन का यह पहला अनुभव था। बहुत रोमांचक लग रहा था फ़िल्म रिकॉर्डिंग में चल रहे होठों के अनुसार डॉयलॉग बोलना .. बार-बार रिटेक के बाद फाइनल होना। इस तरह पाँचों एपिसोड अगले हर शनिवार के पहले डबिंग के बाद अंततः पूरा किया जाता क्योंकि पाँच शनिवार तक लगातार  उसका प्रसारण किया गया।
पर कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। एक दिन आदित्य का फिर फ़ोन आया  - " सर ! अशेष सर ( इस नाटक के रचनाकार ) को समय नहीं है, आप स्क्रिप्ट लिखिएगा ? अंकित सर( निर्माता ) इसका एक और एपिसोड बना कर विस्तार देना चाहते हैं और इसका हैप्पी एंडिंग (सुखान्त ) करना चाहते हैं। उस में आपका भी रॉल रहेगा। फिर आना होगा NIT घाट आपको सुबह-सुबह अगले रविवार। "
" ठीक है भाई .. कोशिश करता हूँ ... "
फिर क्या था 6ठे एपिसोड के स्क्रिप्ट का 60% लिखा, कम से कम अपने सीन वाले संवाद के लिए। फिर सब कॉन-कॉल एक रात जुड़े , सब ने script  (सम्वाद) का लेखन सुना। सब ने हामी भरी और फिर वही सिलसिला 6ठे एपिसोड के लिए एक रविवार के सुबह गंगा के गाँधी-घाट किनारे ही रिहर्सल और शूटिंग एक साथ ..  फिर रात में  डबिंग और फाइनली प्रसारण ...
मतलब 3- 5 मिनट के चाय वाले चच्चा वाले पात्र के अभिनय के लिए इतना पापड़ बेलना पड़ता है ... बिना मेहनत मिलता भी क्या है ... है ना !?
फिलहाल लॉकडाउन के लम्हों में इस छः एपिसोडों में बने इस वेब-सीरीज का मजा लीजिए ...
हाँ ... याद है ना !? ...  3रे, 5वें और 6ठे एपिसोड में मैं भी हूँ ... कड़क चाय वाले चच्चा (चाचा) के रूप में ...
( सारे के सारे  6 एपिसोड आपके सामने है .. बस आप अपनी सुविधानुसार या समयानुसार एक ही साथ या अलग-अलग समय पर देख लीजिएगा .. पर देखिएगा जरूर .... ).


सारे 6 Episodes आपके लिए क्रमवार नीचे :--
1st Episode

2nd Episode

3rd Episode

4th Episode

5th Episode
6th Episode.

Sunday, April 5, 2020

मन के मलाल ...


अपनी 22-23 वर्षों की घुमन्तु नौकरी के दौरान हर साल-दर-साल फाल्गुन-चैत्र के महीने में सुबह-सुबह कभी रेलगाड़ी में धनबाद से
बोकारो होते हुए राँची जाने के दरम्यान दौड़ती-भागती रेलगाड़ी के दोनों ओर तो कभी बस में बैठ कर राँची से टाटा या कभी बस से ही कभी टाटा से चाईबासा तो कभी देवघर से दुमका जाते हुए रेलगाड़ी या बस की खिड़की पर अपनी कोहनी टिकाए हुए मन में सप्ताह-पन्द्रह दिनों तक के लिए परिवार वालों से .. अपनों से दूर रहने का दर्द लिए हुए और अजनबी शहरों में अजनबियों के साथ मिल कर काम के लक्ष्य हासिल करने की कई नई योजनाएँ लिए हुए अनेकों बार  पलाश के अनगिनत पत्तियाँविहीन वृक्ष-समूहों पर पलाश, जिसे टेसू भी कहते हैं, के लाल-नारंगी फूलों को निहारने का और इन पर मुग्ध होने का मौका मिला है।

किसी रात राँची से धनबाद लौटते हुए रेलगाड़ी के धनबाद की सीमा रेखा में प्रवेश करते ही वर्षों से झरिया के सुलगते कोयले खदानों से
उठती लपटें नज़र आती और दहकते अंगारों के वृन्द नज़र आते। फिर सुबह के पलाश के फ़ूलों का रंग और रात के दहकते कोयलों का रंग का एक तुलमात्मक बिम्ब बनता था तब मन में। उन 23 सालों का सफ़र और बाद का लगभग 5 साल यानी 28 सालों बाद आज उसे शब्द रूप दे पा रहा हूँ ...तो वे सारे पल चलचित्र की तरह जीवंत हो उठे हैं ...

( वैसे आपको ज्ञात ही होगा कि यह पलाश अपने झारखण्ड का राजकीय फूल है। )

मन के मलाल 
भीतर ही भीतर वर्षों से 
झरिया के सुलगते कोयला खदानों से
उठती लपटें .. दहकते अंगारे
लगता मानो दहक रहे हैं 
पलाश के फूल ढेर सारे
ऊर्ध्वाधर लपटें टह टह लाल हैं उठती 
मानो ऊर्ध्वाधर पंखुड़ियाँ हों पलाश की 
दूर से .. सच में कर पाना 
मुश्किल है अंतर इन दोनों में
ऊर्ध्वाधर लपटों और ऊर्ध्वाधर पंखुड़ियों में
दहकते हैं अनगिनत मन के मलाल 
बन के मशाल इन पलाश के फूलों में ...

मसलन ... कई अनाम प्रेमी-प्रेमिकाओं के
जाति-धर्म या वर्गों के भेद के कारण
घर बसाने के अधूरे रह गए सपने के मलाल
या फिर कई अनाम के बेहतर अंक लाने पर 
अपने कई सहपाठीयों से भी
आरक्षण के हक़दार ना होने के कारण
अच्छे कॉलेज में नामांकन के सपने के मलाल
दिन-रात बहते शहर के नाले जिस नदी में
करते सुबह-शाम तट पर सब गंगा-आरती
उन नदियों की दुर्दशा के मलाल
दहकते हैं अनगिनत मन के मलाल 
बन के मशाल पलाश के फूलों में ...