Thursday, November 12, 2020

'जिगोलो'-बाज़ार में ...

दहेजयुक्त 'अरेंज्ड मैरिज' वाले
मड़वे में बैठे एक सजे-धजे वर
और किसी 'जिगोलो'-बाज़ार में 
प्रतीक्षारत खड़े .. पुरुष-वेश्य में,
माना कि होंगे अनगिनत अन्तर,
पर है ना एक समानता भी मगर ?
.. शायद ...

【अरेंज्ड मैरिज = Arranged Marriage】
【जिगोलो        = Gigolo】


Wednesday, November 11, 2020

गिरमिटिया के राम - चंद पंक्तियाँ-(29)-बस यूँ ही ...

 (1) निरीह "कलावती"

"कलावती" के पति के 

जहाज़ को डुबोने वाले,

चाय लदी जहाज़ भी

कलुषित फ़िरंगियों के 

एक-दो भी तो डुबोते,

भला क्यों नहीं डुबाए तुमने ?

【कलावती = सत्यनारायण व्रतकथा की एक पात्रा】


(2) "गिरमिटिया" के राम

अपनी भार्या के 

अपहरण-जनित वियोग में,

हे अवतार ! तुम रोते-बिलखते

उसकी ख़ोज में तो फ़ौरन भागे,


पर कितनी ही सधवाएँ

ताउम्र विधवा-सी तड़पती रही

और मीलों दूर वो "गिरमिटिया" भी,

फिर भी भला तुम क्यों नहीं जागे ?

【गिरमिटिया = अंग्रेज़ों ने हमारे पुरखों को गुलामी की शर्त पर वर्षों तक जहाज में भर-भर कर धोखे से विदेश भेजे, जिनमें हमारे लोग ही "आरकटिया" बन कर हमारे लोगों को ही ग़ुलाम/बंधुआ मज़दूर बनाते रहे। इन मज़दूरों को ही "गिरमिटिया" की संज्ञा मिली। गिरमिट शब्द अंग्रेज़ी के `एग्रीमेंट/Agreement' शब्द का अपभ्रंश बताया जाता है।】




Tuesday, November 10, 2020

क़तारबद्ध हल्ला बोल

 (1) क़तारबद्ध

हर मंगल और शनिचर को प्रायः

हम शहर के प्रसिद्ध हनुमान मन्दिरों में

तब भी कतारबद्ध खड़े रहे थे और

वो तब भी कतारों में खड़े कभी कोड़े,

तो कभी गोलियाँ खाते रहे थे।

हम माथे पर लाल-सिन्दूरी टीका लगाए

गेंदे के मृत फूलों की माला पहने, 

हाथों में लड्डूओं के डब्बे लिए हुए

"लाल देह लाली लसे" वाली 

सिन्दूरी मूर्ति को पूज-पूज कर इधर

अपने कर्मो की इतिश्री तब भी करते रहे थे

और ..वो ख़ून से सने ख़ुद के पूरे 

तन को ही लाल रंगों में रंगते रहे

और मरणोपरान्त अपनी मूर्तियों पर

हमारे हाथों से माला पहनते रहे और

कई सारे तो गुमनाम भी रह गए .. शायद ...


हम आज भी खड़े मिल ही जाते है अक़्सर

किसी-न-किसी मंदिर के भीतर या बाहर कतारबद्ध,

आज भी हाथों में हमारे लड्डूओं का डब्बा होता है,

गले में गेंदे के मृत फूलों की माला

और मस्तक पर सिन्दूरी तिलक और ... 

वो सारे सचेतन प्राणी हमारी कतारों के सामने से ही,

हमारे हुजूम के बीच में से ही कभी-कभी तो ..

तन अपना अपने ही ख़ून से रंगते हैं अक़्सर, 

कभी "हल्ला-बोल" वाले "सफ़दर-हाशमी" के रूप में 

तो कभी ... और भी कई सारे नाम हैं साहिब ! ...

इनके नामों की भी एक लम्बी क़तार है .. साहिब ...

पर .. हमारी गूँगी, बहरी, अंधी और सोयी चेतना

बस .. और बस .. अनदेखी, अनसुनी और मौन-सी

बस अपने व अपनों के लिए और .. मंदिरों की क़तार में 

मौन मूर्तियों के सामने एक मौन मूर्ति बन कर 

जीना जानती है .. शायद ...

सफ़दर-हाशमी = तत्कालीन शासक के घिनौने गुर्गों/हाथों द्वारा तत्कालीन भ्रष्टाचारों के विरूद्ध आवाज़ उठाने या यूँ कहें चिल्लाने के लिए इनकी दुर्भाग्यपूर्ण हत्या को हम हर भारतीय नागरिकों को ज़रूर जानना चाहिए .. शायद ...】.🤔

चलते -चलते :- इन दिनों एक राष्ट्रीय स्तरीय पत्रकार और उनके चैनल पर उन लोगों के चिल्लाने से कई लोगबाग असहज महसूस करते हैं अपने आप को और ऊलजलूल प्रतिक्रिया सोशल मिडिया पर करते नज़र आते हैं। मगर .. बेसुरा ही सही, पर सच चिल्लाने से तो कई गुणा बुरा है .. झूठ और मक्कारी को मीठी और मृदुल आवाज़ में कहीं भी, किसी को भी कहना .. शायद ...

(2) हल्ला बोल

"इंक़लाब ज़िन्दाबाद" के नारे को

ना तो कभी भी बुदबुदाए गए हैं

और ना ही कभी गुनगुनाए गए ,

ऊँचे स्वर में ही तो चिल्लाए गए हैं।

तब चिल्लाहट बुरी क्यों लगती है भला ?

जब कि ... हर हल्ला बोल सोतों को जगाने के लिए है .. शायद ...