Showing posts with label रोटियाँ. Show all posts
Showing posts with label रोटियाँ. Show all posts

Friday, November 29, 2019

अम्मा !...

अम्मा !
अँजुरी में तौल-तौल डालती हो
जब तुम आटे में पानी उचित
स्रष्टा कुम्हार ने मानो हो जैसे
सानी मिट्टी संतुलित
तब-तब तुम तो कुशल कुम्हार
लगती हो अम्मा !

गुँथे आटे की नर्म-नर्म लोइयाँ जब-जब
हथेलियों के बीच हो गोलियाती
प्रकृति ने जैसे वर्षों पहले गोलियाई होगी
अंतरिक्ष में पृथ्वी कभी
तब-तब तुम तो प्राणदायनि प्रकृति
लगती हो अम्मा !

गेंदाकार लोइयों से बेलती वृत्ताकार रोटियाँ
मानो करती भौतिक परिवर्त्तन
वृताकार कच्ची रोटियों से तवे पर गर्भवती-सी
फूलती पक्की रोटियाँ
मानो करती रासायनिक परिवर्त्तन
तब-तब तुम तो ज्ञानी-वैज्ञानिक
लगती हो अम्मा !

गूंथती, गोलियाती, बेलती,
पकाती, सिंझाती, फुलाती,
परोसती सोंधी-सोंधी रोटियाँ
संग-संग बजती कलाइयों में तुम्हारी
लयबद्ध काँच की चूड़ियाँ।
तब-तब तुम तो सफल संगीतज्ञ
लगती हो अम्मा !.