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Wednesday, January 1, 2020

गुड़ खाए और ...

" हेलो ... "

" हाँ .. हेल्लो .. "

" हैप्पी न्यू इयर भाई "

"अरे .. अंग्रेजी में क्यों बोल रहे हैं, अरे भाई .. हिन्दी में नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं बोलिए ना .. "

" क्यों भला !? ये तो वही बात हो गई कि .. गुड़ खाए और गुलगुल्ला से परहेज़ .. "

" वो कैसे भाई ? "

" वो ऐसे कि आप ... "

"देखिए ( सुनिए ) .. दरअसल हमलोग साहित्यकार लोग ठहरे । है कि नहीं ? हम लोग अपनी सभ्यता और संस्कृति का बहुत ख़्याल रखते हैं। समझे कि नहीं ? "

" हाँ , आप सही कह रहे हैं .. पर आपलोग दोहरी मानसिकता वाली ज़िन्दगी क्यों जीते हैं हुजूर ... "

" वो कैसे ? .. और आप जानते हैं !! ... आफ्टर ऑल .. हिन्दी हमारी मातृभाषा है। समझे कि नहीं ? अभी तो सुबह-सुबह आप ही से स्टार्ट किये थे और आप अंग्रेजी में विश करके ना .. मुडे (मूड) सारा चौपट कर दिए। "

" वाह भाई वाह ..  आपलोगों की सभ्यता-संकृति तब खतरे में नहीं पड़ती, जब किसी विदेशी यानि इटली के Pope Gregory XIII के बनाए हुए Gregorian calendar अपनाते हैं और उसी के पहले माह के एक तारीख को ज़श्न मनाते हैं। और तो और ... किसी विदेशी आविष्कार और उत्पाद वाले मोबाइल से शुभकामनाएं देते हैं .. तब भी नहीं !? पर अंग्रेजी बोलने भर से आपको बुखार आने लगता है ? आपकी आज़ादी खतरे में पड़ने लगती है ? आप मानसिक गुलाम होने लगते हैं ? "

" हाँ ... आप बात ... तो .. सही ही कह .. रहे हैं ? और ... "

" अब हकलाने क्यों लगे आप ? और तो और आप लोग जिस फेसबुक पर ये सब रायता फैलाते हैं ना !! और ब्लॉग पर !? ... वो सब भी विदेशी लोगों का ही देन है। "

" हाँ ... वो तो है ... भाई ... "

" फिर इतना फुटानी किस बात की बतियाते हैं आप लोग ? .. इसिलिये बोले कि गुड़ खाए और गुलगुल्ला से परहेज़ ... अब समझ में आया आपको ? अब बस .. बौखला के हमको कुतर्की मत कह दीजिएगा ज़नाब ! ... "

" हाँ भाई .. अब बाक़ी लोग के जितना भी मूर्ख हम थोड़े है कि नहीं समझेंगे। समझ गए भाई ... समझ गए। बेकार ही हमलोग गर्दन अकड़ाते हैं।  ठीक है भाई ... चलो ... हैप्पी न्यू इयर भाई "

" हाँ, सेम टू यू भाई .. तब ... आज मुर्गा-सुर्गा .. दारू-सारू चलेगा ना भाई !? "

" हा-हा-हा .. ये भी कोई पूछने की बात है ... पहले सुबह हनुमान जी के मन्दिर में लड्डू चढ़ाएंगे ... फिर उसके बाद तो यही सब ना होना है भाई .."

"हाँ ... हा-हा-हा .... "


Tuesday, December 31, 2019

बदलता तो है कैलेंडर ...

समय गुजरता सर्र-सर्र ..सर्र-सर्र ..
कैलेंडर के पन्ने उड़ते फर्र-फर्र ..फर्र-फर्र ..
कहते हैं एक-दूसरे को सब ख़ुश होकर
" हैप्पी न्यू इयर " .. " हैप्पी न्यू इयर "..
जूठे प्लेट .. जूठे दोने और 'स्नैक्स' के 'रैपर'
कल बिखरे मिलेंगें शहर में हमारे इधर-उधर
साथ नगम-निगम की गाड़ियों में बजते भी रहेंगे
- "गाड़ी वाला आया .. घर से कचरा निकाल"
हाँ .. बदलता तो है कैलेंडर .. आता है नया साल
पर सच में बदलता भी है क्या .. हमारा हाल !?

"निर्भया" निर्भीक होकर लौट पाएगी क्या
अबकी साल रात में सकुशल अपने घर ?
बेंधना .. टटोलना .. बंद कर देंगीं क्या
अब मनचलों की 'एक्स-रे' वाली नज़र ?
केहुनी की चुभन अब रुक जायेगी क्या जो
'पब्लिक ट्रांसपोर्ट' में चुभती है इन्हें अक़्सर ?
मानव-नस्ल की रचयिता, जननी का जीवन ही
बना हुआ है जो जी का जंजाल ...
हाँ .. बदलता तो है कैलेंडर .. आता है नया साल
पर सच में बदलता भी है क्या .. हमारा हाल !?

धंसा रहेगा "होरी" का तो पेट नए साल भी
रहेगा "धनिया" का परिवार दाने-दाने को मोहताज़
जी तोड़ कर-कर के मजदूरी मजदूर मुरारी लाल
अपने बेटे-बेटी को पढ़ाने का तो करेगा पूरा प्रयास
बेहतर नंबर लाकर भी आरक्षण ना होने के कारण
बेटा क्या हो सकेगा सरकारी दफ़्तर में बहाल ?
कटेगी मुरारी लाल की बाकी ज़िन्दगी घिसटती
बिटिया का दहेज़ बना जाएगा उसे कंगाल
हाँ .. बदलता तो है कैलेंडर .. आता है नया साल
पर सच में बदलता भी है क्या .. हमारा हाल !?