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Friday, January 3, 2020

कब आएगा साहिब!...

थक चुके हैं अब तक गा-गा कर के
होरी और धनिया हर गाँव-शहर के
मंगरु और सनीचरी हर मुहल्ला-नगर के -
"हम होंगें कामयाब, हम होंगें कामयाब, 
एक दिन ... हो-हो .. मन में है विश्वास .. "
अब तो पूछ रहे सब मिल कर के
मिलजुल कर हम सब भला कब गा सकेंगें
" हम हो गए कामयाब, हम हो गए कामयाब ..
आज के दिन .. हो- हो .. हो गया विश्वास .. "
कब उठेगा साहिब! गर्व से हमारा भी गिरेबान ...
कब आएगा साहिब! ऐसा एक नया विहान ...

कई कराहें दबी थीं, कई साँसें थमी थीं
यूँ तो जला वतन था, था तब तो ग़ुलामी का दौर
कई चीखें उभरी थी, कई इज्ज़तें लुटी थीं
जली थी सरहद, था जब मिला आज़ादी को ठौर
करते तो हैं सभी धर्म-मज़हब की बातें, फिर क्यों
जल रहा आज तक यहाँ चौक-चौराहा चँहुओर
फिर घायल कौन कर रहा, लहू में सरेराह सराबोर
किस दौर में हैं भला .. सिसकियाँ थमी यहाँ
सुलग रही हैं आज भी बेटियों की साँसों की डोर
कब सुलगेगा साहिब! सुगंध लुटाता लोबान
कब आएगा साहिब! ऐसा एक नया विहान ...