Wednesday, May 19, 2021

प्रिया संग मानसिक संवाद ... ( भाग-४ ). [ अन्तिम भाग ].

 प्रिया संग मानसिक संवाद ...

समय आया बुरा बिखराने के लिए शायद

संबंधों के सगे होने के सारे लगाए क़यास।

बिखरते हैं आँधियों में दुर्बल डालों के नीड़

मानो कर के बेकार पंछियों के सारे प्रयास।


कुछ संबंधों जैसे छूटे गंध औ स्वाद, तब भी

प्रिया संग जारी मानसिक संवाद, हो उदास।

बिस्तर भर सिमटा-फैला है जीवन-विस्तार,

डगमग-डगमग है सारा दिनचर्या विन्यास।


हर क्षण संविधान के अनुच्छेद चौदह वाले 

समानता के अधिकार का टूट रहा विश्वास।

डाल से लटका आख़िरी पत्ता भी गिरा रहा, 

वो झोंका बंजारा-आवारा हवा का बिंदास।


लाचार हैं हम, हुए असमर्थ संत्राण भी सारे  

दूर करने में इन दिनों बींधते हुए ये संत्रास।

बन रहा आए दिन .. कभी कोई पड़ोसी या 

कभी सगा भी महामारी कोरोना का ग्रास।



Monday, May 17, 2021

प्रिया संग मानसिक संवाद ... ( भाग-३ ).

ऐसे नाज़ुक वक्त में सोशल मीडिया पर मित्रों की लम्बी फेहरिस्त बारिश के बाद उग आए इंद्रधनुष के तरह आभासी लगने लगते हैं और शायद सच में होते भी हैं। जो दूर से सतरंगी लगते तो हैं , पर .. बिलकुल आभासी। वैसे हम भी तो इन से इतर नहीं। ऐसे में कबीर जी फिर से अपनी पंक्तियों - " बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलिया कोय । जो दिल खोजूं आपना , मुझसे बुरा न कोय ।। " के साथ प्रासंगिक जान पड़ते हैं। सच में .. ऐसे पलों में इन आभासी दुनिया की सच्चाई का सहज़ ही आभास हो जाता है। परन्तु .. इन में से भी .. अगर .. कोई एक-दो लोग भी/ही सही .. लगभग माह भर से सोशल मीडिया पर हमारे नदारद होने के कारण उत्सुकतावश मैसेंजर ( Messenger ) पर पाठ संदेश ( text message ) भेज कर या अचानक कॉल ( Call ) कर के हालचाल पूछते हैं , तो .. संक्षेप में कहूँ तो .. बस .. ये कहना शायद काफी होगा कि  " अच्छा लगता है " .. बस यूँ ही ...

चेन्नई के ऐसे ही एक शुभचिन्तक से "कबसुरा कुदिनेर" ( Kabasura Kudineer ) नामक काढ़ा का पता चला , जो हमारे बाज़ार में उपलब्ध काढ़ा से कई गुणा कारगर और बेहतर है। उनके अनुसार गत वर्ष कोरोनकाल के दरम्यान दक्षिण भारत में वहाँ की सरकार द्वारा इनके पैकेट्स आमजन को मुफ़्त में बाँटे गए थे। हमारे स्थानीय बाजार में उपलब्ध नहीं होने के कारण हम ने इसे ऑनलाइन मंगवाया है। पीने में काफ़ी कड़वा तो है , पर ...
स्वतः संगरोध ( Self Quarantine ) होते हुए गृह-अलगाव ( Home Isolation ) के दरम्यान ऐसे में बिस्तर पर पड़े-पड़े प्रायः दूरभाष से या पड़ोसियों के द्वारा किसी पड़ोसी या किसी रिश्तेदार के कोरोना के कारण गंभीर बीमार होने की ख़बर मिल रही होती है। साथ ही कभी किसी पड़ोसी या अलग-अलग शहर- गाँव में रहने वाले रिश्तेदारों या जान-पहचान वालों के असमय गुजर जाने की ख़बर मिलती रहती है। सुन कर मन घबराता है। इस बार स्थानीय मंचों और सम्मेलनों में अक़्सर मिलने के कारण हुई पहचान वालों में से भी कई लोगों को कोरोना ने हम सभी से झपट लिया है। कभी-कभी किसी के बीमार होने के बाद हमारी तरह या हम से भी पहले और बेहतर स्वस्थ हो जाने की ख़बर आती रहती है। बिस्तर पर पड़े-पड़े लगभग हर दिन सड़क से गुजरते एम्बुलेंसों के सायरन की आवाज़ कानों तक आने पर कलेजे में एक अज़ीब सी हूक उठती है।
किसी-किसी दिन तो .. ऐसे माहौल में भी लाउडस्पीकर पर आस-पास से तथाकथित शिव-चर्चा ( ? ) के नाम पर कुछ विशेष आस्थावान महिलाओं की बेसुरी आवाज़ों में फ़िल्मी गानों की पैरोडी से सजे तथाकथित भजन के कानफाड़ू शोर मन को विचलित करते हैं। तो किसी रोज शाम से लेकर देर रात तक डी. जे. ( D J ) , ढोल-ताशे , बैंड-बाजे , ठेलों पर बजने वाले ऑर्केस्ट्रा और पटाख़ों की आने वाली कानफाड़ू आवाज़ें व्यथित कर जाती हैं ; क्योंकि अच्छे संयोग से या बुरे संयोगवश हमारे वर्तमान ठिकाने के समीप ही ठिकाने के दोनों बाज़ू एक-एक मन्दिर और किराए पर उपलब्ध होने वाला एक-एक विवाह-भवन भी हैं।
वैसे तो .. इस तरह के धर्मों और लोक परम्पराओं के अंधानुकरण के नाम पर होने वाले शोर-शराबों में आम दिनों में भी ना तो कोई क़ानून लागू होता हुआ दिखता है .. ना ही इसके रोकथाम के लिए प्रशासन की कोई ठोस पहल/कदम या लोगबाग का डर और ना ही तथाकथित सुसंस्कारी लोगों में नागरिक भावना ( Civic Sense ) वाले किसी संस्कार का दर्शन मात्र मिल पाता है। शुक्र है कि अभी बिहार में उच्च न्यायालय के अलावा अन्य कई संस्थानों के दबाव में/से ही सही .. लॉकडाउन ( Lockdown ) लगा हुआ है।
ऐसे में भी कबीर जी के किए गए समाज के तीन वर्गीकरण की तर्ज़ पर पुनः तीन वर्ग सामने दिख जाता है। आज भी तीन वर्गों में से एक वह वर्ग है जो इस कोरोनकाल में भी अपनी अंदरुनी शक्ति यानि रोग प्रतिरोधक क्षमता ( Immunity Power ) , इच्छाशक्ति  या फिर क़ुदरती संयोगवश आज तक कोरोनाग्रस्त हुआ ही नहीं है और .. क़ुदरत करे कि चाहे जैसे भी हो वो आगे भी सुरक्षित ही रहें .. इन्हीं में से कई लोग शादियों में नाच रहे हैं या बिना मास्क लगाए आज भी बिंदास बाहर घूम रहे हैं। दूसरा वर्ग वह है जो हमारे जैसा संक्रमित हो कर भी संक्रमण से उबरने की ओर अग्रसर होता दिखता है या पूर्णतः संक्रमण मुक्त हो चुका है और तीसरा वर्ग वह है जो संक्रमण से तो नहीं , बल्कि .. अपने जीवन से ही मुक्त हो जा रहा है और उसके पीछे रह जा रहा है जीवित पर .. अधमरा-सा रोता-बिलखता , सिसकता और मायूस उस पर आश्रित उसका मासूम परिवार। जिनको किसी अपने के असमय चले जाने की पीड़ा झेलने के साथ-साथ ही ये भी नहीं सूझ पा रहा है कि आगे घर कैसे चल पाएगा। इस विपदा भरी वैश्विक महामारी की घड़ी में बचपन में पढ़ी गई .. हाथी और सात अंधों वाली कहानी चरितार्थ हो रही है। गत वर्ष कोरोनाकाल में जो जैसा सामना किया था या इस बार कोरोनाकाल की इस दूसरी लहर में अभी कर रहा है , वह वैसी ही धारणा बना रहा है अपने मन-मस्तिष्क में कोरोना के बारे में .. शायद ...
हमारे कोरोना पॉजिटिव हो जाने का पता चल जाने पर अमूमन आसपास मौजूद लोग अज़ीब-सा व्यवहार करने लग जाते हैं। ऐसे घूरते हैं , मानो मन ही मन सोच रहे हों कि बच्चू ! .. जरूर तुम ने ( यानि हमने ) असावधानी बरती होगी। या तो मास्क ठीक से नहीं लगाया होगा या सोशल डिस्टेंसिंग ( Social Distancing ) को मेन्टेन ( Maintain ) नहीं किया होगा। या फिर हैण्ड-वॉश ( Hand Wash ) या सेनेटाइजर का ( Sanitizer ) सही से इस्तेमाल नहीं किया होगा या इस्तेमाल किया ही नहीं होगा। ऐसे में वो नब्बे के दशक का शुरुआती दौर सहसा दिमाग़ में कौंध जाता है .. जब कोरोना (Corona ) जनित कोविड-१९ ( Covid -19 ) की तरह एच आई वी ( HIV- Human Immunodeficiency Viruses ) जनित एड्स ( AIDS- Acquired Immune Deficiency Syndrome ) नामक बीमारी का नया-नया पता चला था। समाज-शहर या मुहल्ले-गाँव में अगर किसी भी शख़्स के एड्सग्रस्त होने का पता चलता था तो कई लोग उसके किसी ऐसे-वैसे के साथ अनैतिक शारीरिक सम्बन्ध को लेकर आपस में कानाफूसी करते थे या आज भी करते हैं ; जबकि अनैतिक शारीरिक सम्बन्ध के अलावा इस बीमारी के होने की और भी कई वज़हें थीं और हैं भी। एच आई वी की तरह ही कोरोना एक वायरस ( Virus ) है और एड्स की तरह ही कोविड-१९ सम्बंधित वायरस से उत्पन्न बीमारी का नाम है। परन्तु अभी तो बीमारी के लिए कोविड-१९ की जगह कोरोना नाम ही आम प्रचलन में है।
एक और बात की चर्चा तो भूल ही गया कि स्वयं के कोरोना के चपेट में आने के शुरुआत में गत माह के दूसरे रविवार को स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में जाँच ( Antigen Covid Test ) कराने के एक दिन पहले कार्यालय द्वारा कराए गए जाँच ( RT-PCR Test ) की रिपोर्ट की भी PDF मोबाइल पर उसी दिन शाम में आ गई थी , उसमें भी कोरोना पॉजिटिव ही बतलाया गया था। पर इस रिपोर्ट में Antigen Covid Test से इतर एक ख़ास बात थी - CT Report और इसमें मेरी CT Report - 21.47 थी। यही CT Report उस Antigen Covid Test में नहीं होती है और यही CT Report इस RT-PCR Test की विशेषता व शुद्धता होती है। अभी हाल ही में लगभग एक माह बाद भी घर से बाहर जाने पर पुनः संक्रमित होने के भय से घर पर ही जाँच करने वाले को बुला कर जाँच करवाने पर Antigen Covid Test में तो रिपोर्ट कोरोना निगेटिव आयी पर RT-PCR Test में कोरोना पॉजिटिव ही आयी थी।
प्रसंगवश ये भी बतलाते चलें कि जाँच करने वाला फ़ोन पर नाज़ायज तौर पर कुछ ज़्यादा ही भुगतान लेने की बात तय होने पर राज़ी हो कर आया था। Antigen Covid Test का प्रति जाँच रु.1000 और  RT-PCR Test का प्रति जाँच रु.2000 बोलकर मोलभाव करने पर रु 1500 लिया था। ज्ञात रहे कि प्राइवेट जाँच केंद्रों में केवल RT-PCR Test ही हो रहा है और Antigen Test केवल सरकारी संस्थानों में ही उपलब्ध है। इस के Kit बाज़ार में या प्राइवेट जाँच केंद्रों में उपलब्ध नहीं है। ऐसे में निश्चित रूप से वह जाँच कर्ता किसी ना किसी सरकारी अस्पताल या अन्य सरकारी संस्थान के किसी कर्मचारी से आपसी नाज़ायज तालमेल के आधार पर किट ले कर आया होगा। मतलब .. हम भी दूध के धुले ना रह पाए और .. प्रायः रेलयात्रा के लिए उचित और वांछित बर्थ का आरक्षण समय पर ना मिलने पर टी टी ई ( TTE ) से "सेटिंग" करने की तरह ही .. हम भी अपने बुरे वक्त में लोगबाग की तरह प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः भ्रष्टाचार में शामिल हो ही गए .. शायद ...
ख़ैर ! ... एक सकारात्मक पक्ष यह रहा कि इस बार की CT Report - 30 आयी थी। विशेषज्ञ बतलाते हैं कि ये CT Report का 21.47 से 30 हो जाना शुभ संकेत है। मतलब शरीर में प्राकृतिक एंटीबाडी ( Natural Antibody ) का निर्माण हो रहा है। जानकार बतलाते हैं कि यही CT Report जब 35 या इस से ऊपर हो जाएगी तो कोरोना निगेटिव की रिपोर्ट आएगी। जानकारों के मुताबिक कुछ तो हमारे मधुमेह के कारण स्वास्थ्य लाभ ( Recovery ) में समय लग रहा है या फिर प्रायः शरीर में वायरस के शेष बचे मृत कोशिकाओं ( Dead Cell ) के कारण भी कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट आती रहती है , जिसके आने की लगभग तीन महीने तक संभावना रहती है। फ़िलहाल तो पूर्णतः ना सही पर .. पहले से बेहतर और सकारात्मक सुधार की ओर अग्रसर हैं , परन्तु आज लगभग 40 दिनों बाद भी विशेष सावधानी बरतते हुए परहेज़ के साथ स्वतः संगरोध जीवन ( Self Quarantine Life ) जी रहे हैं , ताकि अन्य लोग सुरक्षित रहें और हम भी .. बस यूँ ही ...
बीमारी के दौरान डॉक्टर के दूरभाषी परामर्श और अपने बजट के अनुसार प्रतिदिन प्रोटीनयुक्त पौष्टिक आहार लेने के बावजूद भी लगभग तीस दिनों के बाद Weighing Machine पर अपना तौल लेने पर ज्ञात हुआ कि चार-सवा चार किलो अपने शरीर का वजन घट गया है तो आँखें फटी की फटी रह गई। इस सर्वव्यापी महामारी के उपरान्त ( Post-Pandemic ) इसी प्रकार की कई तरह की अनचाही उलझनें उत्पन्न हो रही हैं। जिनमें कमजोरी का महसूस होना तो अमूमन आम बात है। कमजोरी की वज़ह से तो बची-खुची मांसपेशियों में अभी भी ऐंठन महसूस होती है। शायद विटामिन डी या ज़िंक की भी कमी हो जाती है , जिसका साफ़-साफ़ असर नाखूनों और दाँतों पर दिखता है। नाख़ून काफ़ी लचीले हो जाते हैं। लगता है मानो घंटे भर नाखूनों को पानी में डूबा कर रखा गया हो। दाँतों के कुछ हिस्से भुरभुरे हो कर झड़ ( टूट ) रहे हैं। मधुमेह होने के नाते अब तो ब्लैक फंगस ( Black Fungus ) नामक एक नया डर भी सता रहा है। दूसरी तरफ देर-सवेर कई टीकाओं की उपलब्धता और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ( DRDO - Defence Research and Development Organisation ) की ख़ोज 2-DG ( 2-Deoxy-D-Glucose ) भी आज से ही बाज़ार में उपलब्ध होने से एक सकारात्मक आशा की किरण भी मिल रही है।
वैसे एक और परेशानी का सामना बीते दिनों में करना पड़ा था .. पता नहीं वायरस के प्रकोप से या दवा-काढ़ा के पार्श्व प्रभाव ( side effect ) से .. दिन-रात नाक से नाभि तक शुष्कता का एहसास होता था। नाक की शुष्कता के लिए आयुर्वेदिक दवा
1) दिव्य धारा , जो कि रॉल ऑन ( roll on ) के रूप में बाज़ार में उपलब्ध है , को व्यवहार में लाने की मशविरा दी गई थी और नाभि यानि पेट की या गले की शुष्कता के लिए समय-समय पर गुनगुने पानी का घूँट लेने की। आगे Doxycycline 100 mg से भी श्लेष्मा और गले में खसखसाहट की परेशानी पूर्णतः ठीक नहीं होने पर डॉक्टर की दूरभाषी सलाह पर
1) Dexona - 1 गोली × दो बार × 5 दिनों तक खाना पड़ा था।
बाद में समाचारों में कुछ मरीजों के शरीर में रक्त के थक्का जमने से उनके हृदय गति रुकने ( Heart attack )  के कारण देहांत हो जाने की ख़बर आने पर , ऐसी संभावना से बचने के लिए -
1) Ecosprin 75 mg - 1 गोली × 1 बार × 14 दिनों की भी सलाह मिली , तो परामर्श के अनुसार इन्हें भी खाया। एक और बात .. अगर अजवाइन के साथ-साथ तुलसी पत्ती और पुदीना पत्ती भी सहज उपलब्ध होते तो Karvolplus की जगह इन सब को भी उबाल कर भाप लेने के लिए उपयोग में ला सकता था। परन्तु जो भी हो कोरोनाग्रस्त होने के बाद स्वस्थ हो जा रहे लोगों को भविष्य में आत्मनिर्भरता की पाठ पढ़ाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी .. शायद ...
अंत में .. जिनको गत वर्ष से अब तक कोरोना अपनी आग़ोश में नहीं ले पाया , उन तमाम लोगों के लिए मन से शुभकामनाएं है कि उनको और उनके परिवार को भविष्य में भी ये नासपिटा ना छू पाए। साथ ही जो लोग उसकी गिरफ़्त से निकल कर स्वस्थ हो गए , वो सभी सपरिवार भविष्य में स्वस्थ व सुरक्षित रहें। पर .. जिनके अपने असमय छिन गए , क़ुदरत उनके ज़ख़्मों को शीघ्रतिशीघ्र भर कर भविष्य की दिनचर्या के लिए सकारात्मक सोच और शक्ति प्रदान करे। चलते-चलते .. उनके लिए भी हार्दिक आभार संग शुभकामनाएं भी .. जिनकी प्रत्यक्ष या परोक्ष शुभकामनाओं के असर से और जिन लोगों की प्रत्यक्ष या परोक्ष सेवा से हमारे जैसे लोग पुनः स्वस्थ हो सके हैं या हो रहे हैं .. शायद ...
आज अब बस इतना ही .. स्वतः संगरोध ( Self Quarantine ) होते हुए गृह-अलगाव ( Home Isolation ) के दौरान कुछ विश्राम ले कर .. इस " प्रिया संग मानसिक संवाद ... ( भाग-३ ). " के तीनों भागों की बतकही के बाद इसके " प्रिया संग मानसिक संवाद ... ( भाग-४ ) "  में केवल और केवल " प्रिया संग मानसिक संवाद ... " कविता के साथ मिलते हैं .. बस यूँ ही ...