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Thursday, September 12, 2019

"बेनिन" की तरह ...

"तंजानिया" के "ज़ांज़ीबार" में
मजबूर ग़ुलामों से कभी
सजने वाले बाज़ार
सजते हैं आज भी कई-कई बार
कई घरों के आँगनों में,
चौकाघरों में, बंद कमरों में,
बिस्तरों पर, दफ्तरों में ...

गुलामों को बांझ बनाने की तरह
बनाई जाती है बांझ बारहा
उनकी सोचों को, सपनों को,
चाहतों को, संवेदनाओं को,
शौकों को, उमंगों को ...

पर गाहे बगाहे इनमें से कई
अपने मन के झील में
बना कर अपनी भावनाओं का
एक प्यारा-सा घर अलग
बसा लेती हैं
यथार्थ के खरीदारों की
नज़रों से ओझल
एक सुरक्षित दुनिया
ठीक झील में बसे एक गाँव ...
उस अफ़्रीकी "बेनिन" की तरह ...
"वेनिस ऑफ़ अफ्रीका" की तरह ...