Thursday, April 20, 2023

21.04.2023 को .. बस यूँ ही ...

( I ) :-

अगर किसी राज्य विशेष में "जुगाड़" और "पैरवी" शब्द आम चलन में हो, तो वहाँ के लोगबाग इन दोनों के मार्फ़त हासिल की गयी छीन-झपट को उपलब्धियों की श्रेणी में सहर्ष सहजता से रख देते हैं और ऐसी छीन-झपट करने वालों को समझदार, सफ़ल और व्यवहारिक का तमग़ा बाँटने में हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी समाज के तथाकथित सुसंस्कारी लोग भी तनिक गुरेज़ नहीं करते, बल्कि लोग इस कृत के लिए शेख़ी बघारते नज़र आते हैं। वैसे तो अब तक वैसे राज्य विशेष के उपरोक्त माहौल को महसूस ही नहीं बल्कि प्रत्यक्ष रूप से जीते-जीते ऐसा लगता रहा, कि मानो सारी दुनिया ही ऐसी है या होती होगी।
परन्तु उत्तराखण्ड की अस्थायी राजधानी देहरादून आने के उपरान्त घर से लगभग महज़ दो-ढाई किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित प्रसार भारती के प्रांगण में जाने के बाद, जहाँ आकाशवाणी और दूरदर्शन एक ही प्रांगण में है, जान पाया कि सारी दुनिया "जुगाड़" और "पैरवी" की क़ायल नहीं है। अनायास हमें ऐसा क्यों लगा, इसकी चर्चा अभी आगे करते हैं।
कुछ अन्य और भी अन्यायपूर्ण घटनाएँ अक़्सर देखने/झेलने पड़ते हैं अपने आसपास कि कई स्थानीय पत्रिकाओं के सम्पादकों की निग़ाह में या कई साहित्यिक संस्थानों में भी अगर आपके-हमारे नाम के आगे-पीछे डॉक्टर (पीएचडी वाले), प्रोफ़ेसर, सरकारी अधिकारी या रिटायर्ड (पेंशनधारी भी) सरकारी अधिकारी लगा हो तो, आपकी-हमारी रचनाएँ भले ही तुकबंदी या पैरोडी हों, फिर भी अमूमन उनको विशेष तरजीह दी जाती है। प्रायः आपकी-हमारी पहचान आपके-हमारे पद से की जाती है, आपकी-हमारी प्रसिद्धि से की जाती है, ना कि आपकी रचनाओं के स्तर और उसकी गंभीरता से। और तो और स्वजाति विशेष या अपने क्षेत्र के होने पर भी विशेष कृपा दृष्टि रखी जाती है। वैसे तो पाया ये भी जाता है, कि सबसे बड़ा ब्रह्मास्त्र है .. किसी का लल्लो-चप्पो कर के अपना काम निकालना, किसी एक के लल्लो-चप्पो से सामने वाले को बस ख़ुश हो जाना चाहिए।




परन्तु इन सभी से परे प्रसार भारती, देहरादून के प्रांगण स्थित आकाशवाणी में अपनी रचनाओं के वाचन/प्रसारण हेतु जाकर कार्यक्रम अधिशासी- श्री दीपेन्द्र सिंह सिवाच जी से पहली बार दिसम्बर'2022 की शुरुआत में मिला तो उन्होंने 30.12.2022 को एक कवि गोष्ठी की रिकॉर्डिंग के दौरान अन्य दो कवयित्रियों और एक कवि के साथ मेरी भी तीन कविताओं के वाचन को मौका दिया था। जिसका प्रसारण 02.01.2023 को रात के 10 बजे से 10.30 बजे तक "कविता पाठ" कार्यक्रम के तहत किया गया था।




यहाँ पर ना तो मेरा पद पूछा गया, ना जाति, ना क्षेत्र और ना ही मुझे किसी भी तरह का लल्लो-चप्पो, जुगाड़ या पैरवी करनी पड़ी। बस .. फॉर्म भर कर रजिस्ट्रेशन की आवश्यक औपचारिकता भर और मेरी बतकही की एक प्रति भी। आकाशवाणी या दूरदर्शन के कुछ प्रतिबंध हैं, जिनके अन्तर्गत बस एक-दो शब्दों को अपनी बतकही से हटानी पड़ी यानि उन पर क़ायदे के मुताबिक सेंसर लगाए गए।

यूँ देखा जाए तो यहाँ जुगाड़, पैरवी, लल्लो-चप्पो जैसी कोई प्रतियोगिता नहीं दिखी; बस हम जैसे हिन्दी भाषी लोगों की प्रतियोगिता है तो यहाँ की स्थानीय भाषाओं से। जिनसे ही सम्बन्धित यहाँ ज्यादातर कार्यक्रम होते हैं। मसलन- गढ़वाली, कुमाऊँनी, जौनसारी भाषाओं में।

ख़ैर ! .. अब आज की बतकही का रुख़ अलग दिशा में मोड़ते हैं .. बस यूँ ही ...

( II ) :-

आगामी शुक्रवार यानि 21.04.2023 को रात आठ बजे आप सभी को मिलवाएंगे हम हमारी "मंझली दीदी" से .. बस यूँ ही ...
आप भी मिलना चाहेंगे क्या ? .. आयँ !! ... कहीं आप सभी शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय जी की "मंझली दीदी" या फिर उस पर आधारित ऋषिकेश मुख़र्जी जी के निर्देशन में बनी श्वेत-श्याम फ़िल्म की तो नहीं सोचने लग गये ?
ना, ना .. हम तो उपन्यास और लघुकथा की मंझली बहन जी यानि मंझली दीदी- "कहानी" की बात कर रहे हैं .. हाँ ! .. और नहीं तो क्या ... अब अगर आपको भी उस कहानी से रूबरू होनी है, तो 21.04.2023/शुक्रवार के पहले अपने जीवन की दिनचर्या वाली आपाधापी के बीच मौका मिले तो .. आप सर्वप्रथम ...

1) अपने Mobile में *Play Store* से *newsonair* App को Download कर लीजिए।
2) फिर उसको Open कर के उसकी दायीं ओर सबसे ऊपर कोने में उपलब्ध दर्जनों भाषाओं के विकल्पों में से *हिन्दी (Hindi)* भाषा वाले Option को Select कर लीजिए।
3) उस के बाद बायीं ओर सबसे ऊपर वाली तीन Horizontal Lines को Click करने पर उपलब्ध Options में से तीसरे Option - *Live Radio* को Select कर लीजिए।
4) इस प्रक्रिया से खुले Web Page को नीचे की तरफ Scroll करते हुए Alphabetically क्रमवार A से U सामने आने पर *U* से *Uttarakhand* आते ही उसके अंतर्गत तीन Options में से एक *Dehradun* को Click कर लीजिए।
5) अब आप फुरसत के पलों में तन्हा-तन्हा या मित्रों के साथ या फिर सगे-सम्बन्धियों के साथ *आकाशवाणी, देहरादून* से प्रसारित होने वाले अन्य मनपसंद कार्यक्रमों का भी लुत्फ़ ले सकते हैं।


( III ) :-

परन्तु अब ऐसा नहीं हो, कि आप प्रसार भारती के अन्य मनोरंजक कार्यक्रम सुनने के चक्कर में, इस आने वाले शुक्रवार यानि 21.04.2023 को हमारी मंझली दीदी यानि हमारी कहानी से मिलना आप भूल जाएँ .. आपको तो पूरी तन्मयता के साथ सुन कर जानना ही चाहिए .. ये जानने के लिए कि ...

१) वह कौन सी भाषा है, जो बहुत ही कंजूस है ?
२) किसी लड़की का मायका और ससुराल एक ही शहर में हो, तो क्या-क्या होता है ?
३) दीपू अपने जन्मदिन के केक कटने के पहले ही सो क्यों गया था ?
४) पाँच वर्षीय सोमू के किस सवाल से उसके पापा किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये थे ?
५) जातिवाचक संज्ञा भला कैसे और कब व्यक्तिवाचक संज्ञा बन जाता है ?
६) सोमू के पापा उसकी मम्मी यानि अपनी धर्मपत्नी को "तथाकथित" अर्धांगिनी क्यों कहते हैं भला ?
७) सोमू और उसके पापा के मन में पिछले बीस सालों से हो रहे उथल-पथल को शान्त करने में आप सभी मिलकर कैसे  सहयोग कर सकते हैं भला ?

अक़्सर जाने-अंजाने बुद्धिजीवी लोग भी किसी घटित "घटना" को भी "कहानी" कह देते हैं। मसलन- लोग कहते हुए सुने जाते हैं कि - "तुम मेरी दुःख भरी कहानी सुनोगे तो रो पड़ोगे शायद।" जबकि वह अपने जीवन की दुःखद घटनाओं को बतलाना चाहता या चाहती है। पर मेरी कहानी के सन्दर्भ में दरअसल ... "कहानी" में "घटनाओं" का समागम है .. सच्ची कहें तो .. सच्ची घटनाओं का समागम है। आत्मसंस्मरण ही समझ लीजिए .. बस यूँ ही ...