Thursday, January 30, 2025

ढाई अक्षर वाले .. मुर्दे और प्रेम भी ...


देखा नहीं वापस आते 

श्मशान या क़ब्रिस्तान से

वहाँ तक ले जाए गए मुर्दे कभी।

लोग उन्हें दफ़नाएँ या अंत्येष्टि करें उनकी ,

नहीं फ़र्क़ पड़ता उन मुर्दों को तनिक भी ;

क्योंकि कोई जाति नहीं होती मुर्दों की ,

उन्हें नग्न कर दिए जाने के बाद शायद ;

सिवाय ख़तना , शिखा-चोटी के अंतर के ।

वो भी नर मुर्दों में केवल , 

नारी मुर्दों में तो वो भी अंतर दिखता नहीं

और सुना है कि ढाई अक्षरों वाले दोनों .. 

- मुर्दे और प्रेम के .. होते ही नहीं

ढाई अक्षरों वाले कोई धर्म और ना ही कोई वर्ग , 

कोई समुदाय या कोई जाति भी कभी।

सही मायने में धर्म निरपेक्ष होते हैं ये दोनों ही।

धर्म-मज़हब की बातें तो करती है बस्स्स ...

ज़िंदा भीड़ मुर्दों को दफ़नाने-जलाने वाली .. शायद ...


पर .. मुर्दों के साथ भीड़ जाने वाली

अवश्य ही लौट जाती है .. 

लौट आते हैं लोग घर अपने-अपने।

दफ़ना या दाह दिया हो अगर अब तक तुमने भी 

मृत प्यार के मुर्दे को हमारे तो ..

वापस आना लौट कर कभी 

पास हमारे चंद लम्हों के लिए ही सही।

जब कभी फ़ुरसत भी हो और मौक़ा भी ..

पर तब .. हमारी फुरक़त को कम करने नहीं ;

वरन् .. तथाकथित अकाल मृत्यु से मृत हमारे 

उस प्यार की आत्मा की 

तथाकथित शांति के लिए केवल आना ।

मिल बैठेंगे हमदोनों पास-पास ना सही ,

पर होंगे हम आमने-सामने 

लिए आँसू सिक्त अपनी-अपनी आँखों के पैमाने।

तुम चालीसवाँ का फ़ातिहा बुदबुदा लेना 

और मैं .. पिंडदान कर दूँगा तत्क्षण वहीं .. बस यूँ ही ...


N. B. - चलते- चलते हमारी एक पुरानी बतकही "मचलते तापमानों में ..." में से चुरायी गयी एक आंशिक बतकही का एक नया ... ... ... .. बस यूँ ही ...🙂 

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