डाल देते तो हो अक्सर सड़क किनारे तुम सभी,
कुछ अन्न-शोरबा भी जूठन स्वरूप अवशेष बची।
समक्ष उन सभी के जिसे अक्सर आवारा है कहती
सर्वोच्च अदालत अपने देश की, जो वो है ही नहीं।
वो बेचारे तो लावारिस हैं, बेज़ुबान हैं, बेजान नहीं,
संवेदनशील हैं, आती ना हो मानवी भाषा भले ही।
दो इन्हें भी जूठन से परे गर्म तवे वाली रोटी कभी,
हों गाढ़े औंटे गुनगुने गाय-भैंसी के दूध ना भी सही,
सुसुम पानी में घोले गए पावडर वाले दूध ही सही,
बड़े ना भी, छोटे पैकेट ही सही, 'पेडिग्री' की कभी।
गटक जाते हो तुम इन सब से भी ज़्यादा क़ीमत की
हर रोज़ 'जंक फूड', गुटखा, शराब, सिगरेट या खैनी।
भाती नहीं घर की पकी रसोई, करते हो फिजूलखर्ची,
खाने में मोमो-चाउमिन, बर्गर-पिज्जा या बनटिक्की।
पुचकारो, सहलाओ, फेरो अपनी स्नेहसिक्त हथेली,
किसी निज प्रिय की आँखों की तरह ही कभी-कभी,
फ़ुर्सत निकाल झाँको कभी तो इनकी आँखों में भी।
भैरव के हो उपासक तो मानो इन्हें निज संतान-सी।
हँसो इनकी टेढ़ी दुम पर, पर सीखो इनसे वफ़ादारी,
त्याग दो कभी एक सिनेमा, एक जन्मदिन की पार्टी।
निकालो और दो ... कुछ वक्त इन सभी को भी कभी
तब ना ये आवारे फिरेंगे लावारिस गलियों में शहर की .. शायद ...
{ एक सवाल - समस्त तथाकथित आस्तिकों की आस्था के अनुसार लगभग सभी देवी-देवताओं की सवारी कोई ना कोई पशु या पक्षी ही है। मंदिरों में या अपने-अपने घरों में बने पूजा के ताकों पर देवी-देवताओं के साथ-साथ उन सभी की भी पूजा सभी तथाकथित भक्तगण जाने-अंजाने करते हैं। वैसे भी तो सभी पशु या पक्षी भी तो उसी प्रकृति या विधाता की ही अनुपम कृति हैं .. शायद ...
फिर भला पशु-पक्षियों से इतनी नफ़रत भला क्यों .. कि उन्हें .. या तो अपने दरवाज़े से दुत्कार दिया जाए या फिर .. अपने भोजन की थाली में सजायी जाए ? }
आप सभी उस प्रकृति या विधाता की सर्वोच्च अनुपम कृति हैं। आप में सोचने- समझने की मादा उन निरीह पशु-पक्षियों से बहुत ही अधिक है। है ना ? .. तो फिर .. एक बार सोचिए ना !!! .. बस यूँ ही ...
आप सभी को नवरात्रि (तथाकथित) की हार्दिक शुभकामनाएँ ! 🙏