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Tuesday, April 14, 2020

तट-सा मन मेरा ... - चन्द पंक्तियाँ - (२५) - बस यूँ ही ...

बस यूँ ही ...

इन उदासी भरे पलों में आओ कुछ रुमानियत जीते हैं ..
मायूसी भरे लम्हों में यूँ कुछ सकारात्मक ऊर्जा पीते हैं ..
आओ ना !...  ( कोरोना की दहशत और लॉकडाउन की मार्मिक अवधि में ... ).

#(१) हर पल तुम :-

गूँथे आटे में ज़ब्त
पानी की तरह
मेरे ज़ेहन में
हर पल तुम
रहते हो यहीं
चाहे रहूँ मैं जहाँ ...

लोइयाँ काटूँ जब
याद दिलाती हैं
अक़्सर तुम्हारी
शोख़ी भरी
गालों पर मेरे
काटी गई चिकोटियाँ ...

पलकें मूँदी हों
या कि खुली मेरी
घूमती रहती है
छवि तुम्हारी
मानो गर्म तेल में
तैरती इतराती पूड़ियाँ ...

#(२) तट-सा मन मेरा :-

निर्झर से सागर तक
किसी और की होकर
शहर-शहर गुजरती
बहती नदी-सी तुम
बहती धार-सा
प्यार तुम्हारा ...

छूकर गुजरती धार
उस अजनबी शहर के
तट-सा मन मेरा
बहुत है ना .. जानाँ !
भींग जाने के लिए
आपादमस्तक हमारा ...