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Thursday, January 28, 2021

मुँहपुरावन वाली चुमावन ...

एक शाम किसी लार्वा की तरह कुछ बिम्बों में लिपटी चंद पंक्तियाँ मन के एक कोने में कुलबुलाती-सी, सरकती-सी महसूस हुई .. बस यूँ ही ... :-

" मन 'फ्लैट'-सा और रुमानियत आँगन-सी

  सोचें रोशनदानविहीन वातानुकूलित कमरे-सी

  और है हो गई रूहानियत किसी गौरैये-सी ... "

पर उन लार्वा सरीखे उपर्युक्त पंक्तियों को जब अपने मन के डाल पर अपनी सोचों की चंद कोमल पत्तियों का पोषण दे कर, उन्हें उनके रंगीन पँखों को पनपाने और पसारने का मौका दिया तो उनका रूप कुछ इस क़दर विकसित हो पाया ...  :-

मुँहपुरावन वाली चुमावन ...

डायनासोर ही तो नहीं केवल हो चुके हैं विलुप्त इस ज़माने भर से,

जीवन की बहुमंजिली इमारतों में सुकून का आँगन भी अब कहाँ ?


सोचों की रोशनदानविहीन वातानुकूलित कमरों में मानो ऐ साहिब!

अपनापन की गौरैयों का पहले जैसा रहा आवागमन भी अब कहाँ ?


रूहानियत बेपता, रुमानियत लापता, मिलते हैं अब मतलब से सब,

प्यार से सराबोर जीता था मुहल्ला कभी, वो जीवन भी अब कहाँ ?


लाख कर लें गंगा-आरती हम, कह लें सब नदी को जय गंगा माता,

शहर के नालों को गले से लगाकर भला गंगा पावन भी अब कहाँ ?


बढ़ गई है मसरूफ़ियत हमारे रोज़मर्रे में जानाँ कुछ इस क़दर कि ..

रुमानियत भरी तो दूर .. मुँहपुरावन वाली चुमावन भी अब कहाँ ?




Sunday, February 16, 2020

स्लीवलेस से झाँकती ...

बिग एफ़ एम् 92.7 पर सोम से शुक्र तक
बस यूँ ही देर रात सोते वक्त आँखें मूंदें 
9 से 11 जब तुम पास ही बिस्तर पर लेटे
खोई रहती हो कानों में ब्लू-टूथ लगाए हुए
"यादों का इडियट बॉक्स विद नीलेश मिश्रा" में
उसकी रुमानियत भरी कहानियों में कम और ...
कुछ थोड़ा ज्यादा ही उसकी खनकती आवाज़ों में
उस वक्त तुम्हारे इस स्टुपिड की उंगलियाँ रहती हैं
खोई-खोई खुले-बिखरे पर घने बालों में तुम्हारे
साथ में सोंधाती रहती है शैम्पू मिले सुगंध से मेरी साँसें...

अक़्सर फ़ुर्सत के पलों में अपने मोबाइल से
यू-ट्यूब में ढूंढ-ढूंढ कर निकालती हो
जब कभी कुमार विश्वास की कविताओं वाली
कई सारी वीडियो एक के बाद एक
पर उसकी कविताओं से थोड़ी कम
और मनमोहक अदाओं से ज्यादा जब-जब
चमक उठती हैं तुम्हारी शोख़ी भरी निगाहें
उस वक्त तलाशता रहता है तुम्हारा यह स्टुपिड
ख़ुद को उन चमक भरी तुम्हारी निगाहों में
टटोलते हुए तुम्हारे बचपन में तुमको लगाए गए
चेचक के टीके की दाग़ वाली स्लीवलेस से झाँकती तुम्हारी बाँहें...

निहारती हो सोशल मिडिया में जब-जब चिपके हुए
कई मनमोहक स्टेटस वाले चन्द चॉकलेटी चेहरे  
उन्हीं की दो-चार पंक्तियों पर जबरन चिपकायी हुई 
या कुछ उम्रदराज़ पर ... मनचले शायरों की रूमानी शायरी
कुछ अपने मनपसन्द ग़ज़लकारों की ग़ज़लें
या फिर ठहरती हो पढ़ने कुछ पोस्ट भी अतुकान्त रचनाओं वाले
मिले फ़ुर्सत के पलों में मानो गुम हो उनमेंं डूब-सी जाती हो ..
मन ही मन मुदित हो मंद-मंद मुस्कुराती हो
अपनी गुदगुदाती प्रतिक्रियाएं और लाल दिल वाली स्माइली
उछालने की ख़ातिर मोबाइल की स्क्रीन पर उंगलियाँ दौड़ाती हो
उस वक्त बस डूब-सा जाता है ये तुम्हारा स्टुपिड
तुम्हारे चेहरे की रुमानियत भरी झील की गहराइयों में ...