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Friday, October 4, 2019

रामलीला है शुरू होने वाली ...

दशहरे में इस साल भी हो रही होगी वहाँ रामलीला की तैयारी
सोचा घूम आऊँ गाँव का मेला भी साथ-साथ अबकी बारी
सबसे मिलना-जुलना भी हो जाएगा ..
थोड़ा हवा-पानी भी बदल जाएगा
जब चढ़ने गया रेल ... देखा जान-सैलाब का रेलमपेल
रेलगाड़ी की श्रेणियों - सामान्य से लेकर प्रथम श्रेणी तक - जैसी ही
है .. मानो समाज में जनसमुदाय के वर्गीकरण का खेल
साथ ही देखा कि स्टेशन के बाहर और प्लेटफार्म की दीवारें
राज्य की प्रतिनिधित्व करती लोक कलाकृत्ति से थी सुसज्जित
पर अंदर डब्बे के टॉयलेट की दीवारों पर उकेरी चित्रकारी
कर रही थी कभी उत्तेजित .. तो कभी लज्जित

अब मुख्य मुद्दे पर आ जाए बात .. तो है अच्छी
संक्षेप में कहूँ तो बस .. रामलीला है शुरू होने वाली
मैं उन दर्शकों के भीड़ का हूँ एक हिस्सा .. जहाँ हुई है ये इक्कट्ठी
मंच के पीछे नेपथ्य में चल रही है कलाकारों की तैयारी
हनुमान बना है बमबम हलवाई हथेली पर है खैनी मल रहा
राम बने रामखेलावन भईया का होंठ है बीड़ी का सुट्टा मार रहा
सीता बनी ... नहीं - नहीं बना ..
गाँव का ही गोरा-चिट्टा चिकना-सा लौंडा
रमेश ... जो है चबा रहा पुड़िया पर पुड़िया गुटखा
लक्ष्मण बना समसुद्दीन दर्जी किसी से मोबाइल पर है कह रहा -
 " शब्बो ! अब शुरू होने वाली है रामलीला .. तुम आ गई हो ना !? तुम देखोगी तो मैं अपना अभिनय अच्छा से कर पाउँगा अदा
वर्ना हो सकता है कोई डायलॉग ही भूल जाऊँगा "
रामदीन बना दशरथ अपनी घनी मूंछों पर सफ़ेद चढ़वा कर चूना
है अपने चेहरे पर बुढ़ापा का रंग दे रहा
क्योंकि क़ुदरत ने नहीं चढ़ाई है अभी उसके मूंछों या बालों पर
अपनी सच्ची और पक्की सफ़ेदी
सब के सब व्यस्त हैं .. सब के सब मस्त हैं ...
रामलीला के कलाकार भी .. जमा हुए सारे दर्शक भी ...
दर्शकों में भी कई सेवन करते हुए सिगरेट , बीड़ी या खैनी
हैसियत और लत के मुताबिक हैं दिख रहे अपनी-अपनी

मंच का पर्दा उठता है थोड़ी देर बाद ही
आगमन होता है राम का .. साथ में सीता और लक्ष्मण भी
सभी श्रद्धा से नमन करते हैं अपने-अपने सिर को झुका
उस राम के आगे .. हाँ .. हाँ .. उस राम के आगे ...
जो अभी-अभी मंच के पीछे बीड़ी का सुट्टा था मार रहा
मेरा अबोध मन तभी कुलबुलाया
और मुझे से ही तड़ से जड़ दिया एक सवाल बच्चों-सा
ना .. ना .. कौन बनेगा करोड़पति वाला नहीं
बस .. कर दिया एक सवाल बच्चों-सा
मचलता-सा पूछा - ......
" हम सभी क्या प्रत्यक्षतः -- भारतीय रेल के प्लेटफार्म की तरह
या फिर रामलीला के मंच की तरह और ...
अप्रत्यक्षतः -- मन में रेल के डब्बे के टॉयलेट पर उकेरी चित्रकारी
और रामलीला वाले मंच के नेपथ्य की तरह
अक़्सर दोहरी ज़िन्दगी नहीं जीते हैं क्या !?
एक नहीं ... कई-कई दोहरी ज़िन्दगी नहीं जीते हैं क्या !???


Thursday, October 3, 2019

नवरातरा (नवरात्रि) चल रहा है ... (लघुकथा).

" गुडगाँव वाला 'नयका' (नया) फ्लैट मुबारक़ हो पाण्डे जी ! उहाँ (वहाँ) तो गृहप्रवेश करवा दिए ... भोज-भात भी हो गया। हिआँ (यहाँ) गाँव में पार्टी कब दे रहे हैं !? "

" जब बोलिए तब ... पीछे कौन हटता है भला श्रीवास्तव जी ... बोलिए ! " -
- मुँह में भरे गुठखे के पीक की पिचकारी चलाते हुए पाण्डे जी बोले।

" पर पाण्डे जी आप तो जानते ही हैं कि हमको 'उ' घास-फूस .. मने (मतलब) 'उ' .. 'वेजीटेरियन' आउर (और) नाबालिग वाला नहीं ... 'एडल्ट' वाला पार्टी चाहिए अलग से। समझ रहे हैं ना !? " -
- अर्थपूर्ण नजरों से फूहड़-सा ठहाका लगा कर श्रीवास्तव जी पाण्डे जी को देख रहे थे। पाण्डे जी का ठहाका भी श्रीवास्तव जी के ठहाके के साथ युगलबंदी करता हुआ प्रतीत हो रहा था। दोनों के तोंद जोर-जोर से हिल-हिल कर एक-दूसरे के खाते-पीते घर के होने का सबूत दे रहे थे।
इसी बीच पाण्डे जी के मुँह का चबाया हुआ लारयुक्त गुठखे का पीक हल्का-सा उनके कुर्ते पर टपक पड़ा था। रुमाल से पोंछते हुए वे कुछ ... मादर.... भैण.... जैसा कुछ बड़बड़ाए थे।

" श्रीवास्तव जी ! अभी तो नवरातरा (नवरात्रि) चल रहा है ...
आउर (और) आपको तो पते ही है कि आजकल तो लहसुन-प्याज भी बंद है भाई ! सुध (शुद्ध) भोजन-भजन चल रहा है माता रानी के नाम पर। माईये (माता रानी- दुर्गा जी) के किरपा (कृपा) से ही ना "कमाई" वाला थाना में 'पोस्टिंग' हुई है। चार-पाँच दिन और रुक जाइए ... फिर जईसा (जैसा) और जहाँ कहिएगा, हमसे एक जोरदार पार्टी ले लीजिएगा। आपको 'एडल्ट' वाली पार्टी ही चाहिए ना !? जहाँ चलियेगा, ले चलेंगें। चाहे 'सोनागाछी' .. आ (या) चाहे मन करे तो 'कमाठीपुरा' चलेंगें। बस ई (ये) नवरातरा ख़तम (ख़त्म) हो जाए (जाने) दीजिए। आप भी क्या याद किजिएगा ... अइसे (ऐसे) भी बिहार में तअ (तो) सुरा मिलेगा नहीं .. तअ सुरा और '.......' ... आयँ .. समझ रहे हैं ना !? ...  हम का (क्या) कहना चाह रहे हैं !? ... दुन्नो (दोनों) का लुत्फ़ उधरे लिया जाएगा। "

आगे बढ़ते हुए फिर पाण्डे जी बोले - "अब चलें शहर जा रहे हैं , बड़का 'मॉल' से बाक़ी रह गया  पूजन-सामग्री आउर नवमी के दिन कुंवारी-कन्या के खिलावे-पिलावे (खाना-पानी) ला (के लिए) जरुरी सामान ले कर आते हैं। मलकिनी (पत्नी) एगो (एक) पुर्जा पकड़ा दी हैं। "

दोनों के फूहड़ और टपोरी ठहाके की अलयबद्धता और कहीं दूर किसी पंडाल के ध्वनिविस्तारक यन्त्र से कान तक आते लयबद्ध मंत्रोच्चार गडमड होते प्रतीत हो रहे थे - ...  " या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ... नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ... हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा ..... ".