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Wednesday, July 14, 2021

इक बगल में ...

आना कभी
तुम ..
किसी
शरद पूर्णिमा की,
गुलाबी-सी 
हो कोई जब
रूमानी, 
नशीली रात,
लेने मेरे पास
रेहन रखी 
अपनी 
साँसें सोंधी
और अपनी 
धड़कनों की
अनूठी सौग़ात।

दिन के 
उजाले में
पड़ोसियों के
देखे जाने
और फिर ..
रंगेहाथ हमारे 
पकड़े जाने का
भय भी होगा।
शोर-शराबे में, 
दिन के उजाले में,
रूमानियत 
भी तो यूँ ..
सुना है कि
सिकुड़-सा 
जाता है शायद।

दरवाजे पर 
तो है मेरे
'डोर बेल',
पर बजाना 
ना तुम,
धमक से ही
तुम्हारी 
मैं जान
जाऊँगा
जान ! ...
खुलने तक 
दरवाजा,
तुम पर
संभाले रखना 
अपनी जज़्बात।

यक़ीन है,
मुझे कि तुम
यहाँ आओगी
सजी-सँवरी ही, 
महकती 
हुई सी,
मटकती
हुई सी,
फिर अपनी 
बाँहों में
भर कर 
मुझको,
मुझसे ही
लिपट जाओगी,
लिए तिलिस्मात।

पर मुझे भी
तो तनिक
सजने देना,
तत्क्षण हटा
खुरदुरी बढ़ी 
अब तक की दाढ़ी,
'आफ़्टर शेव' 
और 'डिओ' से 
महकता हुआ,
सिर पर उगी
चाँदी के सफ़ेद
तारों की तरह,
झक्कास सफ़ेद 
लिबास में खोलूँगा 
दरवाजा मैं अकस्मात।

जानता हूँ
कि .. तुम 
ज़िद्दी हो,
वो भी
ज़बरदस्त वाली,
जब कभी भी
आओगी तो,
जी भर कर प्यार 
करोगी मुझसे,
सात फेरे और
सिंदूर वाले
हमारे पुराने
सारे बंधन
तुड़वा दोगी
तुम ज़बरन।

जागने के
पहले ही
सभी के,
हो जाओगी
मुझे लेकर
रफूचक्कर,
तुम्हारे 
आगमन से
प्रस्थान 
तक के 
जश्न की 
तैयारी
कितनी 
भी हो
यहाँ ज़बरदस्त।

यूँ तो 
इक बग़ल में 
मेरी सोयी होगी
अर्धांगिनी
हमारी,
हाँ .. मेरी धर्मपत्नी ..
तुम्हारी सौत।
फिर भी ..
दूसरी बग़ल में
पास हमारे
तुम सट कर
सो जाना,
लगा कर
मुझे गले 
ऐ !!! मेरी प्यारी-प्यारी .. मौत .. बस यूँ ही ...


【 बचपन में अक़्सर हम मज़ाक-मज़ाक में ये ज़ुमले बोला-सुना करते थे ..  "एक था राजा, एक थी रानी। दोनों मर गए, ख़त्म कहानी " .. ठीक उसी तर्ज़ पर, अभी उपर्युक्त बतकही पर मिट्टी डाल के, उसे सुपुर्द-ए-ख़ाक करते हैं और ठीक अभी-अभी "इक बगल में ..." जैसे वाक्यांश/शीर्षक को मेरे बोलने/सुनने भर से ही, मेरे ज़ेहन में अनायास ही एक गीत की जो गुनगुनाहट तारी हुई है .. जिसके शब्द, संगीत, आवाज़ और प्रदर्शन, सब कुछ हैं .. लोकप्रिय पीयूष मिश्रा जी के ; तो ... अगर फ़ुरसत हो, तो आइए सुनते हैं .. मौत-वौत को भूल कर .. वह प्यारा-सा गीत ...
 .. बस यूँ ही ... 】

( कृपया  इस गीत का वीडियो देखने-सुनने के लिए इसके Web Version वाला पन्ना पर जाइए .. बस यूँ ही ...)






Monday, June 15, 2020

तुम्हारी आखिरी सौतन ...

प्रकृति की दो अनुपम कृति- नर और नारी। जन्म से ही आपसी शारीरिक बनावट में कुछ क़ुदरती अंतर के बावजूद अपने बालपन में .. दोनों में कोई भी भेदभाव नहीं होता .. साथ-साथ खेलना-कूदना बिंदास, मिलना-जुलना बिंदास होता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, जीव विज्ञान के अनुसार हार्मोन्स में बदलाव के साथ-साथ ही शारीरिक बनावट के अंतरों की गिनती भी बढ़ती जाती हैं .. साथ ही, आपसी मिलने-जुलने में संकोच भी, पर मन में समानुपातिक आकर्षण बढ़ता जाता है।
उम्र की उस किशोरावस्था के शुरूआती दौर में हम अपने प्रिय- प्रेमी या प्रेमिका, को ये विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं कि तुम ही मेरा पहला प्यार हो। हमारी चाह भी होती है कि हम दोनों ही एक दूसरे के लिए पहला ही चाहत या प्यार हों, ताकि गर्व के साथ गा कर सुना सकें कि .. "कोरा कागज़ था ये मन मेरा, लिख दिया नाम उस पे तेरा" ... ( पुरानी फ़िल्म "आराधना" के एक गीत का मुखड़ा )।
                                        पर ठीक इसके विपरीत, यही जब उम्र के आखिरी पड़ाव में आते-आते, हम अपने प्रौढ़ावस्था में जीवन-साथी को ये विश्वास दिलाते नहीं थकते कि तुम ही मेरा आखिरी प्यार हो। चाहते भी हैं कि मेरा जो हमसफ़र है, उसी के दामन में दम निकले ताकि हम रुमानियत के साथ गा सकें कि .. "आखरी हिचकी तेरे ज़ानों पर आये, मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ" ...  ( क़तील शिफ़ाई जी की लिखी और जगजीत सिंह जी की गायी गज़ल "अपने होठों पर सजाना चाहता हूँ" का एक अंश)।
इस तरह हर इंसान के मन में पहला और आखिरी का ये ऊहापोह चलता रहता है ताउम्र .. शायद ... । बड़े ख़ुशनसीब होते हैं वो इंसान, जो किसी का पहला और आखिरी यानि दोनों ही प्यार बन पाते है या फिर जिसे पहला और आखिरी प्यार के रूप में एक ही शख़्स मिलता है।
अब आज का बकबक बस इतना ही ... और इन से भी इतर एक सोच/विचार के साथ आज की रचना/विचार पर आपकी एक नज़र की तमन्ना लिए .. बस यूँ ही ...

तुम्हारी आखिरी सौतन ...
ऊहापोह .. उधेड़बुन .. तुम्हारे .. सारे के सारे
कि "तुम मेरा पहला प्यार, मेरी पहली प्रीत हो की नहीं?"
आओ .. दूर कर दूँ आज मैं, तुम से दूर .. बहुत दूर जाने के पहले,
आओ ना पास .. आओ ना पास .. आओ ना पास ...
माना .. है लाख शराबबंदी बिहार में, तो भला क्यों होना निराश ?
आओ ना .. मिलकर 'कॉकटेल' बनाते हैं आज की शाम एक ख़ास,
जिनमें होंगी मिली, बस मेरी साँस और .. तुम्हारी साँस ...
आओ ना पास .. आओ ना पास .. आओ ना पास ...

मेरा पहला प्यार, पहली प्रेमिका तो तुम हो ही नहीं,
ये बतलायी थी तुम्हें मैं ने पहली ही रात .. है ना याद ?
पर पहली प्रेमिका मेरी .. जिसका ज़िक्र किया था तुम्हें उस रात
वो भी तो दरअसल है ही नहीं पहली .. समझी ना पगली ! ...
ना .. अरे ना, ना .. पड़ोस वाली वो शबनम भी नहीं
और ना ही कॉलेज वाली वो मारिया।
तो फिर जानती हो ? .. थी कौन वो ? .. मेरी पहली प्रेमिका ? ..
सोचा .. सुलझा ही दूँ आज तुम्हारे मन की पहेलियाँ ..
वो थी .. मेरी माँ .. मेरी अम्मा ...
कोख़ में जिनकी सींझी थी, नौ माह तक ये मेरी काया।

अब सोचो ना जरा .. प्यार करते हैं जब भी हम दोनों
या गले मिलते हैं हम दोनों जब भी,
पल के लिए भी तो .. हैं पलकें हमारी मूँद जाती।
वैसे भी, कभी भी, किसी भी गहराई में उतरो तो ..
बारहा आँखें हैं मूँद जाती, पलकें हैं मूँद जाती ..
चाहे हो वो गहराई किसी नदी की, आध्यात्म की
या फिर रूहानी या जिस्मानी प्यार की।
है ना ?.. मानती हो ना ? .. तुम्हारी भी तो हैं अक़्सर मूँद ही जाती।
अब .. जब कोख़ में जिनके, मैं नौ माह तक आँखें मूँदें अपनी,
खोया रहा, सोया रहा बिंदास .. करते हुए उनके स्पन्दन का एहसास।
स्पर्श किया पहली बार जिनके तन को, मन को, स्तन को,
वही तो थी माँ मेरी, अम्मा मेरी, पहली प्रेमिका मेरी।

सोचा था .. बनोगी तुम मेरे जीवन की आखिरी प्रेमिका,
पर शायद .. लगता है .. ऐसा भी नहीं हो सकेगा।
देखो ना ! .. देखो जरा .. वो दूर खड़ी मुस्कुरा रही है,
पास बुला रही है .. मुझे भी तो अब भा रही है।
उसकी मदहोश अदाओं में, निगाहों में, मैं भी मदहोश हुआ जा रहा हूँ।
हद हो गई .. वो लगाने को गले, है बेताब हुई .. है क़रीब आई जा रही,
देखो ! वो आ ही गई .. है अब तो अपनी बाँहों में भरने ही वाली,
अरे-रे .. संभलना मुश्किल हो रहा अब तो ...
मदहोशी में है आँखें मेरी मूँदी जा रही।

जानकर अपनी आखिरी सौतन का नाम, अब जल तो ना जाओगी ?
सौतनडाह से मत जलो अब, अब तो है जलने की मेरी बारी।
है मौत ही मेरी .. तुम्हारी आखिरी सौतन .. मेरी आखिरी प्रेयसी,
देखो, देखो .. वो पास आ गई .. मुझको है तुमसे छीनकर ले जा रही,
बस देखती रह जाओगी तुम खड़ी .. बेबस .. लाचार,
बन सकी ना जो कभी मेरा पहला प्यार .. ना ही आखिरी प्यार ..
पर बहरहाल .. एक बार .. बस एक बार,
दूर .. मेरे बहुत दूर चले जाने के पहले .. तुम आओ ना पास ...
आओ ना पास .. आओ ना पास .. आओ ना पास ...